Wednesday, March 23, 2011
विकीलिक्स से ‘मन’ में घबराहट
जिस तरह से देश में राजनीतिक भूचाल आया हुआ है, वह हमारे नजरिए को प्रदर्शित करता है। वह यह दर्शाता है कि हम कितने कमजोर, लाचार हैं, जो शंकाओं को भी मान बैठते हैं और उस पर ही अपने निर्णय ले लेते हैं। जिस तरह से हमारे निर्णय और विश्वास के बीच एक धोखा दिखाई दे रहा है, वह हमारी सोच के आधार और बुनियाद को प्रदर्शित करता है। आज हम जिस तरह से विकीलीक्स के मामले में अपनी कार्यप्रणाली दिखा रहे हैं, वह हमें कमजोर साबित करता है। सालों पहले हम पर अंग्रेजों ने हुकूमत की, यह गुलामी की जंजीरें तोड़ने में हमें 200 साल लग गए। हमारे पास तब भी पर्याप्त साधन थे, हम चाहते तो पहली बार में ही उन्हें बाहर निकाल फेंकते, लेकिन हमने विश्वास और नजरिए के रिक्त स्थान को इतना खाली कर दिया, कि उसे भरने में 200 साल लग गए। हम बार-बार आपसी संकट में ही फंस जाते हैं। विवादों की डोर ऐसी शुरू होती है, कि वह हमें ही उलझाकर एक चक्रव्यूह में फांस लेती है। यह फांस हमें चुभती तो है, लेकिन हम यह दिखा देते हैं कि हम कर्ण की तरह सहनशील हैं, और क्षत्रिय धर्म की भांति हम इसे सह लेंगे। जीवन रफ्तार में यूं ही गाड़ी चलती रहती है। और उसे कोई भी आकर धका देता है। कोई भी हमारे बारे में कुछ कह देता है, और हम ही उसे मान लेते हैं। तब हम अपने मन की भी नहीं सुनते हैं। हम दिमाग से काफी बलिष्ठ हैं, और अगर किसी ने हमारे भीतर शंका का बीज डाल दिया तो हम उसमें ही घुलते रहते हैं। यह हमेशा से होता आया है। हम हमेशा परेशान रहें। दूसरों पर हम खुद से ज्यादा यकीन करते हैं। आखिर हम क्यों? अपने ही कूपमंडकत्व में रहते हैं। विकीलिक्स जैसी वेबसाइट की बुनियाद क्या है, और वह जो खुलासे कर रही है, आखिर उस पर कितना यकीन किया जाए, यह भी एक सवाल है। क्या हम इतने कमजोर हैं कि कोई भी बाहरी हम पर आरोप लगाकर चला जाए और हम उसे यकीन के तराजु पर तौले बिना ही उस पर अपना फैसला सुना दें। जिस तरह से देश में राजनीतिक भूचाल मचा हुआ है, वह हमारे नेताओं की दिमागी सोच पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है। वह यह भी सवाल उठाता है कि हम क्यों उस विकीलिक्स की बात पर यकीन करने में जुटे हुए हैं। हमारे देश में हालत यह आ गई है कि अगर कुछ और हो जाए तो सरकार भी गिर जाए, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आता है। मगर यह तो सही है कि न तो हमारा विपक्ष दोषमुक्त दिखाई दे रहा है और न ही पक्ष की यलगार में वो प्रचंडता बची है, जिससे यह कहा जा सके कि देश सुरक्षित दस्तानों में है। यहां तो लग रह है कि कब कौन सा विकेट गिर जाए, कहा नहीं जा सकता है। जिस तरह से यहां पर देश की बुनियाद को खोखला दिखाया जा रहा है, वह यह जताता है कि हम कितने कमजोर और मानसिक रूप से बीमार हैं। गैर हमें कुछ भी कह दें, हम उन पर यकीन कर बैठते हैं, अपनी मुहब्बत को उनके भड़काने पर जला देते हैं। बस यही चल रहा है देश में। पूरा विपक्ष विकीलिक्स के खुलासे के बाद से उबाल खा रहा है, हालत यह हो गई है कि देश के ‘मन’ को घबराहट हो रही है, और वो इस घबराहट को सफाई के रूप में पेश भी कर रहे हैं। इस संकट का कोई इलाज नहीं है, क्योंकि इसी फूट और राज की राजनीति में हम 200 साल उलझे रहे, और अब हमारे यहां जो राजनीतिक संकट या कहें कि सुनामी दिखाई दे रही है, वह विकीलिक्स की लाई हुई है। यह देश के माथे पर किसी कलंक से कम नहीं है, और हमारे नेता इस कलंक को धोने की बजाए उसका धब्बा गहरा और बड़ा करने की जीतोड़ मेहनत में जुटे हैं। अब दोषी किसे ठहराया जाए, क्योंकि यहां तो हमाम में सभी निर्वस्त्र हैं, और फिर इस स्थिति में किसी पर भी अंगुली नहीं उठाई जा सकती है, क्योंकि हाल वही हो जाएगा कि एक अंगुली उठेगी तो तीन तीन तुम्हें ही उलाहना देंगी।
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