Saturday, May 14, 2011

सत्ता त्याग ही नहीं बलिदान भी मांगती है...


सत्ता वह सुख है, जो सबकुछ लूट लेती है या फिर लुटा देती है। लेकिन इसका रसपान उन्हें ही नसीब हुआ है, जिन्होंने हमेशा त्याग किया और मौकों पर बलिदान दिया है। बेशक कुछ सालों के लिए उन चटोरों के भी हाथ लग जाती है, जो चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं, या उन्हें मिल जाते हैं जिनकी किसमत अचानक गोता खा ले। मगर इसे संभालने की कूबत उनमें नहीं होती है। हां, यह सही है कि सत्ता हमेशा सही हाथों में नहीं रह पाई है, इससे अकसर इसका गलत इस्तेमाल ही हुआ है। वक्त के किसी भी दौर में या पड़ाव में हम पाएंगे कि जिसे भी सत्ता मिली है, उस पर हर कोई सांप की तरह कुंडली मारे नजर आया है। हर किसी ने अपने कब्जा जमाने की पूरी कोशिश की है, लेकिन यह खूबसूरत है तो कातिल भी है, और धोखा देना तो इसकी फितरत में ही है, लेकिन जब भी इसे बलिदान मिलता है, उसके पास सत्ता जरूर आती है। ठीक वही हुआ है, ममता के साथ। रेल में अपना जादू दिखाने के बाद अब उन्होंने बुद्धदेव भट्टाचार्य की दुकान को पूरी तरह से ताला लगा दिया है। लगभग दो दशक बाद यह उलटफेर करने में कामयाब हुई, लेकिन लाल किला अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। बंगाल में बहुत सारी दिक्कतें हैं, और नक्सली घटनाएं तो चरम पर हैं, कई बार तो वहां की सरकारोें की मिलीभगत भी इसमें शामिल लगती है। लेकिन कोई भी देश हो या शहर या फिर कॉलोनी या घर....हर कोई शांति से रहना चाहता है, शांति से जीना चाहता है। कोई उसकी शांति में दखल देता है तो वह एक सीमा तक सहन भी करता है, लेकिन जब सब्र का बांध आम आदमी तोड़ देता है, तो फिर बड़े से बड़े पहाड़ों को भी डोलना पड़ता है, उन्हें भी अपना कद छोटाकर जनता को आगे जाने देना पड़ता है। ममता ने लंबे समय से त्याग किया, बलिदान किया, यह वहां की जनता ने समझा और लाल किले को ढहाने में ममता को पूरा साथ मिला। नतीजा सामने है, सालों से बंगाल में वाम मोर्च का काला जादू कहीं फुर्र हो गया। वैसे भी जब रोशनी की किरण आती है तो सारे जादू जल जाते हैं, खाक हो जाते हैं। इस तरह दीदी ने वहां नई उम्मीद जगाई है, वहीं तमिलनाडु में हर कोई करुणानिधि के परिवार से पीड़ित है। इस परिवार ने पूरे तमिल राज्य की वॉट लगा रखी है। कभी बेटा, कभी बेटी तो कभी खुद पिता...घोटालों का ऐसा खेल चला कि सब कुछ गड़बड़झाला हो गया। इस कुनबे की सड़ांध से पूरे तमिल में गंध आने लगी थी, लेकिन अब कुछ बदलाव हुआ है। जयललिता की ललकार ने करुणा को हिलाया ही नहीं, बल्कि जड़ से उखाड़ फेंका है। यहां भी इस घोटालेबाज परिवार का सफाया हो गया है। इसने भी खूब भ्रष्टाचार को बढ़ाया है, हालांकि पुराने पाप और पेट कभी नहीं छुपता है, उसी तरह एक-एक कर सारी चीजें परत दर परत उखड़ती जा रही हैं। वहीं बात असम की, तो वहां पर सब सामान्य ही रहा। जिन्होंने दस सालों से सत्ता चला रखी थी, उनका कार्य काफी प्रभावशाली रहा, जिससे जनता का भरोसा उन्हेंमिला और सत्ता का स्वाद फिर उन्हीं की जुबान लेती दिखाई देगी। बात आगे की हो तो फिर पुदुचेरी में कांग्रेस का सफाया हो गया। हालांकि यहां 30 सीटें ही थीं, लेकिन कांग्रेस यहां प्रभाव डालने में पूरी तरह से असमर्थ साबित हुई, जिससे सत्ता दूसरे को मिली। इसके अलावा केरल में ओमान चांडी पर विश्वास किया है जनता में। फैसला काफी महत्वपूर्ण और पार्टियों को चेतावनी देने वाला है, क्योंकि जिस तरह से जनता बदलाव कर सत्ता से बेदखल कर देती है, उससे पार्टियों को सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि अगली बारी यूपी, एमपी जैसे कई राज्यों की है, जहां पर मनमानी की जा रही है। इसमें यूपी में तो अंधा कानून है, और अपराधियों के जल्वे बरकरार है, कौन कहां, क्या गुल खिलाएगा, कुछ भी नहीं कहा जा सकता है, सत्ता की इस आंधी को हमेशा संभालना चाहिए, क्योंकि अभी नहीं संभले तो फिर समय नहीं बचेगा।

Tuesday, May 3, 2011

आतंक का अंत या विद्रोह के वार


लादेन मारा गया...लादेन मारा गया...वो खूंखार आतंकवादी मारा गया। वह अपराधी मारा गया, जिसने वर्ल्ड टेÑड सेंटर को उड़ाया था। जिसने सालों साल अमेरिका की नाक में दम कर रखा था। आज अमेरिका ने लंबी लड़ाई के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया। अब कोई डर नहीं, क्योंकि आतंक का वह खौफनाक चेहरे को समुंदर में डुबों दिया गया। वाह...अमेरिकियों के लिए इससे बड़ा दिन और क्या हो सकता है, क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ उन चंद सौ लोगों की नहीं थी, जिनके लोग वहां मरे थे, बल्कि यह लड़ाई उन सभी लोगों की थी, जो आज तक पूरे विश्वभर में कहीं न कहीं आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं। अमेरिका हो या फिर हिंदुस्तान। कसाब से लेकर लादेन तक। हर चेहरे में खौफ साफ नजर आता है। साथ ही दर्द भी झलकता है कि इन्होंने हमारे अपनों के खून को लहूलुहान किया है। इनके कारण न जाने कितने घरों की खुशियां छिनी हैं। न जाने कितने परिवारों के आंसू आज तक सूख नहीं पाए हैं। कितनी मांओं की आंखें अभी भी पथराई हुई हैं। दुनिया ने आतंकवाद का सिर्फ एक रंग ही देखा है। वह है लाल रंग, जिसमें सिर्फ लहू ही बरसता है। शायद आज उन परिवारों को इंसाफ मिला है, जिसकी लंबी लड़ाई में अमेरिका सालों से जूझता आ रहा है। मगर हम कितने बेबस हैं, क्योंकि हमारी आब्रू पर जिसने हमला किया है, वह अब तक जिंदा है। हमारे वो बेचारे सिपाही, जिन्होंने अपनी जानें दे दी, वो तो शहीद हो गए, लेकिन उनके आरोपियों को हम आज भी सजा नहीं दे पाएं। कितनी विडंबना है यह, कि हमारे देश में हम अपनों के ही कातिलों को सजा नहीं दिला पाए हैं। अब सवालों के घेरे और शर्म भरे चेहरे साफ दिखाई देते हैं। सीख लेनी ही है तो अमेरिका से लो, जिसने सालों बाद दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतार दिया। सालों तक कभी जमीन के गर्भ में सो गया तो कभी पहाड़ों की गुफाओं में दफन हो गया। कभी मरने की खबर आती तो कभी दहशत का वीडियो। ये सारे देखकर हर देशवासी के दिलों में उबाल आता था, और आंखों से अंगारे झलकते थे। हां, शायद हमारी जड़ों में ही दम नहीं है, या फिर सुरक्षा और सरकार दोनों की खोखली साबित हो रही हैं। जिस तरह से पूरा खेल खेला गया है, वह हमारे देश को लाचार साबित कर रहा है। देखा जाए तो हम उनकी खातिरदारी में जुटे रहते हैं, जो हमारे जान के दुश्मन रहते हैं। माफी हमारी आदत है, लेकिन यहां माफी नहीं डर दिखाई दे रहा है। डर विपक्ष में है, डर सरकार को है। समाजसेवियों के मन में है। हर कोई इस बिल्ली के गले में घंटी नहीं बांधने का साहस नहीं कर पा रहा है। खौफ भी ऐसा है कि मानों उस राग को कोई छेड़ना ही नहीं चाहता, इन्हें इनकी कुर्सियां प्यारी हैं, इसका भय है कि कहीं कुछ हो गया तो जनता भड़क जाएगी और सरकार के नीचे से कुर्सी का टेक निकल जाएगा, उस स्थिति में हम क्या करेंगे। वाकई यह बड़ा निदंनीय और चिंता का विषय है, क्योंकि जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा है, जिस तरह से आतंकवादियों को अपना मेहमान बनाया जा रहा है, वह बहुत ही दु:ख की बात है। इन पर कौन रोक लगाएगा, कौन जनता की आवाज को देश की आवाज बनाकर इस जख्म से निजात दिलाएगा। अब तक सब खोखला साबित होता दिखाई दे रहा है। अब तक लग रहा है कि हां हम लोग बिलकुल बेफिक्र हैं, और यहां पर हर कोई बस तिजौरियां भरने में जुटा है। अब तो क्रांति का स्वर उठने दो, अब उठो...जाग जाओ, क्योंकि अभी नहीं जागे तो फिर समय नहीं मिलेगा, समय नहीं बचेगा। अब तो कुछ करना होगा, देश को बचाना होगा, क्योंकि देश में आतंकवाद कभी भीतर ही भीतर खोखला न कर दे। हमारे सामने कई तीर खड़े हैं, अगर कब हमारे दो टुकड़े करके चले जाएंगे, हम भी नहीं बता पाएंगे।