Monday, December 28, 2009

जागों रे जागों

मन में उफान, जज्बे में आसमान। आगे बढ़े तो चट्टानें छोटी पड़ जाए, पर्वत चढ़े तो उूंचाई कम पड़ जाए। हौसले ऐसे हैं कि आकाष सलामी देता है, सपने इसके पूरे हो, यह पूरी कुर्बानी देता है। यह है हमारा उूर्जा से लवरेज युवा। उलझते, सुलगते, झुलसते मुद्दे रहते हैं, इसके पास। दुनियां को जीतने के लिए देष को इनसे बड़ी आस है । तब क्यों न हम इनके कंधों पर ऐतबार करें, इन्हें ही जब बागडोर दे दी है तो पूरे विष्वास से इन पर भरोसा करें। जो हालात हमारे हैं, वो काफी अच्छे तो नहीं कहे जा सकते हैं, लेकिन हमारे युवा के सैलाब को दूसरे देष भलिभांति जान चुके हैं। हम बहुत अधिक युवा संपन्न देषों की राह पर खड़े हैं तो क्या ऐसे में फर्ज हम युवाओं का नहीं है। हमसे जो उम्मीदोें को पाला गया है, क्या उसके लिए हमें आगे आना नहीं चाहिए। देष के हाल-ए-हकीकत से हर कोई वाकिफ है। यहां दुर्दषा दुर्दांत बनती चली जा रही है। अपराध की चादर ने आकाष तक को ढंकने की नाकाम कोषिष कर चुकी है। झूठ का तिकड़मी जाल पूरी ताकत के साथ फैल रहा है। लूट-घसूट समाज में बुरी तरह अपने पैर फैला चुकी है। हर तरफ तबाही ही तबाही नजर आती है। तो ऐसे में हम क्या किसी मसीहा की तलाष करेंगे, जी नहीं। बल्कि मसीहा हमारे बीच में ही है। वह भी एक नहीं हजार नहीं लाख नहीं करोड़ों की संख्या में। जरूरत है हमारे जमीर को जगाने की, अंदर के इंसान को इंसान बनाने की। यहां कोई दावा नहीं और कोई वादा नहीं। कोई छल नहीं और कोई लालच नहीं।सबकुछ विष्वास की परखनली से टिम-टिम बूंद की तरह निकलेगा। वह युवा ष्षक्ति ही है जो समाज को एक नई दिषा दे सकती है। उस डूबती वैतरणी को पार लगाने में यही ष्षक्ति समर्थ है। यहां न तो देषभक्त बनने की बात हो रही है और न ही डींगे हांकने की। यहां सिर्फ इतना कहना है कि ईमानदारी से कार्य कर देष के विकास को पहले रखा जाना चाहिए। अगर यह करना सीख गए तो हमारे देष को युवा पर लग जाएंगे और वह आकाष की लंबी उड़ान बिना थके भर सकेगा। सैकड़ांे समस्याएं कदम-कदम पर मुंह उबाए खड़ी हुई हैं। इसका न तो कोई परमानेंट इलाज किया जा रहा है और न ही लगता है। इसकी कौन लेगा जिम्मेदारी। कोई नहीं। हर कोई अपनी रोटियां सेंकने में और दाल दलने में लगा है। समाज में अंधेरा हो रहा है या उजाला किसी को क्या लेना देना। तो ऐसे में कौन जागेगा, आप को जागना होगा ।हम युवाओं को जागना होगा। अगर हम थोड़ी सी भी अपनी जिम्मेदारियों को समझ गए तो निष्चय ही इस देष की काया पलट सकती है। इसका नक्षा चेंज हो सकता है। इसलिए देष की उम्मीदों को युवाओं के सहारे की जरूरत है। इसमें अगर उन्होंने अपनी उूर्जा दिखा दी तो देष के विकास में चार चांद लग जाएंगे। बस इसी आग की जरूरत है। सफलता सामने पड़ी है, लेकिन उसे पकड़ने मत दौड़ों, बल्कि खुद के कद को इतना बढ़ा लो कि वह खुद-ब-खुद तुम्हारी पहुंच में आ जाए।

Thursday, December 17, 2009

नया साल, बुरा हाल


दिसंबर की ष्षुरुआत से ही नए साल का इंतजार हो रहा है। लोगों ने अपने प्लान बना लिए हैं। कइयों ने इंजाॅयमेंट के तरीके देख लिए हैं तो कई इसे बनाने में अब भी जुटे हैं। कुछ ने नए संकल्प भी ले लिए हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए बड़ी ही षिद्दत के साथ भिड़ भी गए हैं। मगर नए साल का बुरा हाल अभी से नजर आ रहा है। देष में अब भी सारी परेषानियां बीमारियों के रूप में नजर आ रही हैं। हर कोई लूट-घसूट में लगा है। कहीं रिष्तों को ताक पर रखा जा रहा है तो कहीं इन्हें तार-तार किया जा रहा है। दुष्मन के साथ दोस्त भी दगाबाज हो गए हैं। भ्रष्टाचार की श्रंखलाएं चालू हो गई हैं। विकास की लीलाएं दिखाई जा रही हैं, मगर कृत्य अपराधियों के हो रहे हैं। हर तरफ वादों पर वार किए जा रहे हंै। देष की स्थिति उस मछली की तरह हो गई है, जिसका ताल जहरीला हो गया है। अब अगर अंदर रहती है तो जहर वाला पानी उसकी जान ले लेगा और बाहर निकलने की कोषिष करती है तो अपने आप मौत अपने आगोष में ले लेगी। देष अपराध की चादर में लिपटा हुआ है, अपराधियों से जगह और जमीन पटी पड़ी है। झूठ का साया हर जगह विद्यमान है। गैरत मर गई है, सचाई को कहीं दफना दिया गया है। इंसानियत का गला घोंट दिया गया है। दुर्दषा दुर्दांत हो गई है, विकास की वैतरणी तो भंवर में फंसी हुई है, जिसे कोई सहारा पार नहीं लगा सकता है। हर तरफ ज्वालामुखी और आतंक फैल गया है, न तो कोई आदर्ष है और न ही कोई सिद्धांत। अफसरषाही पूरी तरह से अपने पैर जमा चुकी है, जो लोगों पर मठ्ठई का हथौड़ा चला रही है। आतंक ने अपनी जड़े काफी अंदर तक मजबूत कर ली है। अमेरिका ने जिस तरह से अपने आतंक पर काबू पा लिया है, हम आज तक उस दर्द से कराह रहे हैं। इसके नाम पर लाखों रुपए बर्बाद किए जा रहे हैं, न तो कोई प्लान है इसके लिए और न ही नीति। सरकार भी बड़ी-बड़ी बैठकें कर लोगोें को फुसला लेती है। विपक्ष को टरका देती है और विरोधियों को बहला देती है। समस्या वहीं की वहीं और क्या पता साल के पहले दिन ही यह अपना स्वरूप या कहें कि रौद्र रूप दिखा दे। जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं होगा। सिवाय सरकारी जवाब कि हम कार्रवाई कर रहे हैं, जांच हो रही है, जो भी दोषी होगा, उसे बख्षा नहीं जाएगा। आखिर कब तक यह रवैया चलेगा। बहुत कुछ होता है तो हमारी लाचारी और व्यवस्था की कमजोरी को पाकिस्तान के सिर मढ़ दिया जाता है। पूरे आरोप उस पर चले जाते हैं। देष की जनता कोे उसके विरुद्ध आतंकित और इतना भड़का दिया जाता है कि देष का बच्चा भी पाक को मारने के लिए बंदूक ताने खड़ा रहता है। हम क्या कर रहे हैं। माना की पाक इस तरह की करतूतों को अंजाम देता है, लेकिन उन्हंे रोकने के लिए हमारे जो प्रयास हो रहे हैं वो कहां हैं। आखिर जिस सुरक्षा व्यवस्था पर हम लाखों, करोड़ों रुपए बर्बाद कर रहे हैं, उसमें पाकिस्तान हर बार सेंध लगा देता है। यह पाकिस्तान का दुसाहस नहीं उसकी ताकत का पैगाम है, जिसके आगे हम लोग नतमस्तक हैं। एक अरब की आबादी से अधिक हैं, हम। ऐसे में क्या हमारी सुरक्षा उन मुट्ठीभर लोगों के हाथों में हैं जो हमेषा छिपते फिरते हैं। जिनके पास न तो रहने के ठिकाने हैं और न ही ठीक से खाने को। ये हमेषा गुफाओं में घुसे रहते हैं, ऐसे लोग हमारी सुरक्षा व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करते हैं तो यह हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। साथ ही षर्म की बात यह है कि हमारी इतनी बड़ी सुरक्षा व्यवस्था इन चंद लोगों के सामने भीख मांगते नजर आती है। आखिर क्या कारण हैं कि हम इनके आगे लाचार हैं। वहीं सुरक्षा की अगली कड़ी पर आए तो हमने इतना भ्रष्टाचार का कीचड़ जमा कर लिया है कि वह अब हमारी ही जिंदगी लीलने में लग गया है। वहीं नक्सलवाद की समस्या ने सिर उठा लिया है, इसके बावजूद हम षांत अवस्था में हैं, क्योंकि जिनके हाथों में व्यवस्था है उन्हें न तो कोई परेषानी हो रही है और न ही नक्सलवाद उनके सामने मौत बनकर खड़ा है। इसलिए इसके सुधार का बीड़ा नहीं उठाया जा रहा है। जिस दिन यह सामने से आकर किसी वीआईपी और वीवीआई के घर में दस्तक देगा, तब जाकर इस पर गहन विचार किया जाएगा। क्षेत्रियता का फन फुफकार मार रहा है, लेकिन हमारा ध्यान सिर्फ सत्ता के गठजोड़ और उसका गणित बिठाने में लगा है। तो इसके लिए किसे दोष दिया जाए। ये तो हैं मुख्य समस्याएं, जिनसे हमें सीधे काल मिलता है। ये समस्याएं तो जानलेवा हैं, लेकिन सेकंडरी समस्याएं भी हमारे देष में इतनी हेैं, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। तो उन्हें सुलझाने की जिम्मेदारी किसकी है, कोई नहीं जानता है। जिस तरह से भुखमरी, गरीबी, कैंसर, एड््स, ह्दयरोग, निरक्षरता, अपराध। ऐसी सैकड़ों समस्याएं हैं। इन पर कैसे अंकुष लग सकता है। और अगर इतनी समस्याआंे से ग्रसित है यह देष तो विकास की सरपट दौड़ कैसे दौड़ सकता है, क्योंकि यहां तो उसे चलने में ही मवाद बह रहा है, दौड़ने में तो जान निकल जाएगी। जब तक इन पर काबू नहीं पा पाएंगे, हम न तो सुरक्षित हो पाएंगे और न ही विकसित। यही ढर्रा चलता जाएगा। सरकारें बदलेंगी, लोग बदलेंगे, लेकिन व्यवस्थाएं यहीं रहेंगी। हर कोई अपना हित साधकर यहां से निकल जाएगा। देष उसी हाल में कराहता रहेगा और एक दिन तड़प-तड़पकर जान दे देगा।

Wednesday, December 16, 2009

कोपेनहेगन में क्या किया?


ग्लोबल वाॅर्मिंग पर जिस तरह से वाॅर्निंग दी जा रही है, उसने लोगों को संषय में डाल रखा है। उूपर से कोपेनहेगन जैसे कई बड़े-बड़े सम्मेलन आयोजित किए जा रहे थे। बातें भी ऐसी, मानों इस बार इनमें हल ढूंढ ही लिया जाएगा। लेकिन सारे प्रयास विफल हो गए। न तो कोई ग्लोबल वाॅर्मिंग का रास्ता निकल पाया है और न ही कोई भावी योजना बन पाई है। जिस तरह मालदीव में समुंदर के भीतर संसद लगाकर चिंता जताई थी। इसके बाद नेपाल ने माउंट एवरेस्ट पर संसद लगाई। तो लगा कि पूरी दुनिया ग्लोबल वाॅर्मिंग के संकट को मानकर बैठी है। और हर देष अपने स्तर पर प्रयास करने में जुटा हुआ है, जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। हर कोई एक- दूसरे की जिम्मेदारी बना रहा है, लेकिन मषाल को हाथ में रखने से इसलिए डरा जा रहा है कि कहीं यह अपना हाथ ही न जला दे। विकासषील देष और विकसित देषोें के बीच हर बार बड़े-बड़े सम्मेलनों का आयोजन होता है, उसमें बड़ी-बड़ी बातें भी होती हैं, लेकिन आज तक एक का भी नतीजा नहीं निकल पाया है। फिर चाहे वह ग्लोबल वाॅर्मिंग की समस्या हो या आतंकवाद की। इस तरह की नौटंकी सिर्फ दिखाने के लिए की जाती है, इसका हकीकत से कोई न वास्ता होता है और इसका न ही कोई रास्ता होता है। इस बार भी कुछ अलग नहीं हुआ। जिस उम्मीद से कई हजार लोग कोपेनहेगन में जुटे थे वह मामला वहीं का वहीं नजर आ रहा है। सम्मेलन पूरी तरह से फ्लाॅप ष्षो हो गया है। करोड़ों रुपए इसमें लगाए गए थे। देषभर से डेलिगेट्स आए थे, लेकिन नतीजा फिर सिफर ही रहा । इस तरह से जितने भी अंतरराष्टीय सम्मेलन होते हैं, वो हाथी के दांत की तरह होते हैं जो सिर्फ दिखाने के लिए होते हैं। जब उसकी जमीनी हकीकत पर आया जाता है तो स्थिति बिलकुल बदली होती है। वही यहां पर भी हुआ। भारत जैसे कई देषों पर पहले तो जिम्मेदारी का दारोमदार डालने की कोषिष की गई, इसमें विकसित देषों ने अपने हाथ उठा लिए और सोचा की सबकुछ इनके माथे ही डाल दो, लेकिन विरोध के बाद कुछ सही निर्णय लिए गए। अभी तक कोपेनहेगन से कोई उम्मीद निकल कर नहीं आई जिससे यह कहा जा सकता हैक् कि इस बार ग्लोबल वाॅर्मिंग का संकट टल गया है। अब अगर इस तरह की बड़ी योजनाएं फेल हो जाएंगी तो निष्चय ही यह कहा जा सकता है कि आगे क्या होगा। आम आदमी, जो हर समय एक नई मुसीबत में फंसा रहता है वह कैसे इस समस्या पर सोचेगा। वह कैसे इसके सुधार के लिए कोई प्रयास करेगा, क्योंकि उसके आसपास न जाने कितनी समस्याएं हैं जो उसका जीना मुहाल करे, ग्लोबल वाॅर्मिंग जैसा संकट तो उसकी जिंदगी से काफी दूर है, लेकिन दूसरे संकट तो उसकी जिंदगी के मुहाने पर खड़ा है। ऐसे में भला उसे इससे क्या औचित्य। इन हालातों में समस्या जटिलता की पराकाष्ठा पर पहुंच जाती है। इसलिए जब तक देषों के बीच की खाई नहीं पटेगी और सभी एक सुर में काम नहीं करेंगे, इसका हल निकलना नामुमकिन है।

Tuesday, December 15, 2009

हारते तो मुंह भी न दिखा पाते

चार सौ 14 रन देखकर अगर कोई इतरा रहा है, उसकीतारीफों के पुल बांध रहा है। कोई कह रहा है कि टीम ने क्या बल्लेबाजी की है और कैसे श्रीलंकाई चीतों को पटकनी दी है, तो यह सिवाय जज्बात और भारत प्रेम के अलावा कुछ भी नहीं है। क्योंकि जिस तरह से श्रीलंका की टीम खेली है उसने यह जता दिया है कि हमारे पास एक हजार रन का टाॅरगेट होने के बावजूद हम नहीं जीत पाएंगे। हम यह नहीं कह सकते हैं कि हम इस टाॅरगेट पर सुरक्षित खड़े हैं। टीम ने रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया था। अगर ऐन वक्त पर लंका ने थोड़ी गलती न की होती तो इस पहाड़ पर उसने फतेह पा ही ली थी। टीम अगर यह मैच हार जाती तो वह इतिहास में दर्ज होने के साथ कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचते। जिस कातिलाना अंदाज में आज वीरू ने अपने तेवर दिखाए थे, उसने टीम को चोटी पर पहुंचा दिया, लेकिन बाद की बल्लेबाजी को देखकर यही कहा जा सकता है कि अगर टीम में युवराज न हो तो बाद में एक भी ऐसा कोई बल्लेबाज नहीं है तो आतिषी अंदाज में बल्लेबाजी कर सके। अगर युवराज होते तो निष्चय ही 414 का यह आंकड़ा साढ़े चार सौ भी पहुंच सकता था। टीम में सचिन, धोनी और वीरू के अलावा किसी भी बल्लेबाज ने अपने कद के अनुसार बल्लेबाजी नहीं की। हर कोई आया और चलते की हैसियत से बल्लेबाजी कर रहा था। न तो किसी को पता था कि क्या करना है और न ही कोई समझने की कोषिष कर रहा था। जिसकी जैसी मर्जी हो रही थी बल्ला घुमा रहा था। पड़ी तो बाउंडी मिल गई, चूका तो कैच दे बैठा। कोई बोलने वाला भी नहीं था। माहौल ही ऐसा बना दिया, कि लगा ही नहीं कि क्रिकेट मैच खेला जा रहा हो। ऐसा लग रहा था कि पास-पड़ोस का मैच चल रहा हो और पास में ही बाउंडी हो। जब तक टीम इंडिया ने बल्लेबाजी की, हमें लगा कि वाह हमारी टीम क्या खेल रही है, लेकिन जैसे ही उसी पिच पर लंका ने खेलना ष्षुरू किया तो समझ में आ गया कि हमारी वास्तविक औकाद क्या है। आखिर हममें कहां-कहां से छेद हैं। संगाकार और दिलषान ने जिस बेहतरीन अंदाज में खेला उसने यह बता दिया कि वो बाहरी पिचों पर भारतीय ष्षेरों की माद में घुसकर उन पर किस तरह से हमला कर सकते हैं। पूरी टीम ने बेहतरीन खेल खेला। भले ही लंका मैच हार गया, लेकिन उनका साहस काबिले तारीफ था, जो असंभव चढ़ाई को देखकर हारा नहीं और उस पर लगातार चढ़ने का प्रण बनाकर बैठ गया। कहीं भी ऐसी कोई गलती नहीं कि लगा हो वह उतावला हो गया हो या हिम्मत हार कर बैठ गया हो। वहीं इसके विपरीत टीम इंडिया को अगर तीन सौ का स्कोर भी मिल जाता है तो वह अपना आपा खो देती है। इस खेल ने लंका का मानसिक संतुलन बता दिया है साथ ही यह भी बता दिया है कि उसमें कितनी कूबत है। वहीं एक और चीज गंभीरता से उभर कर आ गई है। वह यह की टीम इंडिया को अगर 2011 का विष्वकप का ताज पहनना है तो निष्चय ही उसे अपनेे आपको बहुत जल्द बदलना होगा। क्योंकि अब उसके पास आत्ममंथन के लिए अधिक समय नहीं बचा है। टीम बुरी तरह हालांकि खेल रही है, लेकिन उम्मीद का दामन थामे रखना हम भारतीयों के खून में ष्षामिल है। हमें अब भी उम्मीद है कि टीम 2011 का ताज पहन लेगी। लेकिन मौजूदा दौर में टीम की गेंदबाजी और मध्यक्रम की बल्लेबाजी के हाल है उसे देखकर तो वह सपने सपने जैसी बात ही लगती है। क्योंकि विष्वकप के महाकुंभ में बड़े से बड़े दिग्गज आएंगे और जी जान लगा देंगे कि किसी भी तरह से कप उनके यहां आए। ऐसे में भारत की चुनौती कहीं भी नहीं ठहरती है। क्योंकि उनके सामने अगर इसी तरह का लचर प्रदर्षन रहा तो बुरी तरह से पराजय का सामना करना पड़ेगा। इसलिए जो गललियां हो रही हैं उन पर अभी विचार करने की आवष्कता है और उस पर फटाफट निर्णय होना चाहिए। ताकि कुछ रिजल्ट दे सकें। अन्यथा हर बार की तरह इस बार भी विष्वकप को हम अपनी आंखों के सामने किसी और को चूमता देखेंगे और सिवाय दुःख के हमारे पास कुछ भी नहीं रहेगा। जिस ष्षानदार ढंग से आॅस्टेलिया और दक्षिण अफ्रीका की टीमें विष्व क्रिकेट में अपनी दावेदारी पेष कर रही हैं, उसने इन दोनों को ताज के बहुत नजदीक खड़ा कर रखा है। ऐसे में किसी दूसरे देष का इनसे ताज छीनना ष्षेर के मंुह से मांस खींचने के समान है, इसलिए यहां गौर करने वाली यह बात है कि किसी तरह से हम कुछ देषों को मान लो परास्त कर भी दे ंतो इन्हें परास्त करने के लिए हमें अपने खेल के स्तर को इनके पास लाना होगा। इसके लिए न सिर्फ मेहनत की जरूरत है, बल्कि एक बेहतर प्लानिंग की। इसलिए यहां पर जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है कि किसी भी कीमत को प्रदर्षन के उस स्तर तक लेकर जाना है, जहां से इन टीमों को षिकस्त दी जा सके। अगर यह करने में कामयाब हो गए तो एक बार फिर भारतवासियों के हाथों में कप होगा और गर्व से सिर उूंचा हो जाएगा। तब हम वास्तविक चैंपियन कहलाएंगे।

Monday, December 14, 2009

वतन में आने के जतन

अगर पेड़ से उसकी जड़ों को काट दिया जाएगा, तो न तो ज्यादा दिनों तक पेड़ जीवित रह पाएगा और न ही जड़े अपना अस्तित्व रख पाएंगी। दोनों एक दूसरे के लिए कड़ी का काम करती हैं। इसलिए इन्हें दूर नहीं करना चाहिए। उसी प्रकार मां से बिछुड़ कर उसका बेटा, भाई से भाई। हर जगह खून तो उबाल लेता ही है। और वह अपने को देखकर तड़प भी उठता है। यहां न तो कोई बाजार होता है और न ही कोई बनावटीपन। सब एक वृक्ष की जड़ों की तरह जमीन के भीतर जुड़े हुए रहते हैं। इसी प्रकार वतन से दूर हुए लोग कुछ आपसी जरूरतों के चलते दूर तो हो जाते हैं, लेकिन अपने दिल को यहीं छोड़ देते हैं जो रह रहकर उसे भारत की याद दिलाता रहता है। देष-विदेष में भारत के ढाई करोड़ लोग रहते हैं, लेकिन इनके सीने में कहीं न कहीं भारतीय जज्बात उमड़ते हैं, दिलों में धड़कन भी भारतीय रहती है। हालांकि आपाधापी में ये स्वयं को भूल जाते हैं, लेकिन जब भी अकेले में स्वयं को खोजने की कोषिष करते हैं, इन्हें इनका अस्तित्व भारत से ही जुड़ा मिलता है। यह प्रक्रिया सतत् चलती रहती है। व आसमान की बुलंदी पर भी पहुंच जाए, या भारत से सैकड़ों मिल दूर सात समुंदर पार हो, जब भी उसका मन उदास होता है, उसे अपना वतन ही याद आता है। वतन की चमक न तन से जाती है और न ही मन से। आज भले ही हम अपनों से दूर चले आए हों अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, लेकिन जब भी सिसकन उठती है, उसी भारत की ही उठती है। यहां का हर पल, हर मौसम और त्योहार हमारे दिलों में सैकड़ों गुबार उठाता है। मन करता है कहीं से कोई ष्षक्ति मिल जाए और भारत होकर आ जाउूं। यह कोई एक नहीं, बल्कि हर हिंदुस्तानी दिल कहता है।
तो जब ये दिल हिंदुस्तानी है और हिंदुस्तान के लिए, अपनों के लिए तड़पता है तो हम क्यों उसे छोड़कर चले जाते हैं। इसके पीछे ज्यादा गहराई नहीं है, लेकिन कई बार हमारे हालात हमें मजबूर कर देते हैं कि हम बाहर जाकर कुछ करें, हमारी जिंदगी जहन्नुम बनी रहती है, उससे निजात पाने के लिए इस तरह के कदम उठाए जाते हैं। सैकड़ों लोग हालात के मारे और वक्त के हारे रहते हैं जो दूर देष जाने का कदम उठाते हैं। जो मर्जी से जाते हैं उनका तो ठीक, लेकिन जिन्हें हालातों के चलते अपने मुल्क से अलविदा कहना होता है, निष्चय ही वो बहुत ही दुःखद होता है। उनके जिस्म एक मुल्क में जान दूसरे मुल्क में रहते हैं। विभाजन के दर्द को देखें तो ऐसे कई परिवार मिल जाएंगे, जिन्हें कब्र नसीब हो गई, लेकिन परिवार से मिलने का मौका नहीं मिल सका। इस दर्द को वो भगवान और अल्लाह के पास लेकर चले गए। कई बार तो हालात यहां तक हो गए कि उनकी अर्थी को कांधा किसी बाहर वाले ने दिया और कब्र को किसी और ने दफनाया। यह है विभाजन का दर्द, अपनों से बिछड़ने का गम। विभाजन की यह त्रासदी और और मर्जी से दूर जाने में दर्द में भले ही अंतर आ जाता है, लेकिन वतन में आने और यहां रहने की तड़प में हर दिल मचलता है। तो हम क्यों अपने दिल की क्यों नहीं सुनते हैं, तोड़ सारे बंधन, छोड़ दो सारे माया-मोह। और आ जाओ अपनी जमीं पर, अपने वतन पर। क्योंकि यह देष हमारा है और यहां की माटी हमें कर्ज उतारने के लिए पुकार रही है।

Wednesday, November 18, 2009

Sunday, November 15, 2009

Tuesday, November 10, 2009

Monday, November 9, 2009

आतंकवादी राज


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Sunday, November 8, 2009

स्टोरी आईडिया

बच्चे बन रहे पहलवान
- दरअसल आज कल ८ से ११ साल की उम्र के बच्चे जिम कर रहे हैं।
इस पर हम स्टोरी कर सकते हैं।
- हमें ३-४ बच्चों को सर्च कर उनसे पूछ सकते हैं की इस उम्र में जिम की क्या जरूरत ।
- जिम में बात की जा सकती है। ३-४ लोगो की राए ले सकते हैं
- दोक्टेर्स से बात हो सकती है। क्योकि इस उम्र में जिम नुक्सान भी कर सकती है
- इनके गोल क्या हैं इस पर भी बात कर सकते है

यह हैं हरल्ले सूरमा

Friday, November 6, 2009

स्टोरी आईडिया

विंटर फ़ूड खाओ दूद
- इस समय विंटर में फ़ूड को लेकर क्या परिवर्तन आए हैं । या क्या परिवर्तन करना चाहिए । इस पर एक स्टोरी की जा सकती हैं ।
- इसमे डॉक्टर से बात की जा सकती है, उन लोगों , महिलाओ से बात कर सकते हैं जोदेत पर हैं।
- उनसे भी बात हो सकती हैं जो नया टाइम टेबल बना रहे है ।
- हर आगे के लिए डॉक्टर से बात कर राइ दी जा सकती है।
- कुछ फोटो करवाकर बेहतर प्रेसेंट किया जा सकता है।

shiv ke kanth se jahar


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Monday, November 2, 2009

haar par hangama hoga


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Saturday, October 31, 2009

yuva raaj


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Thursday, October 29, 2009

Monday, October 26, 2009

Sunday, October 25, 2009

Friday, October 23, 2009

Thursday, October 22, 2009

Friday, October 2, 2009

Tuesday, September 15, 2009

Friday, September 11, 2009

Thursday, September 10, 2009

Wednesday, September 9, 2009

bharat ek roop do

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Friday, September 4, 2009

guru

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Wednesday, September 2, 2009

Friday, August 28, 2009

Thursday, August 20, 2009

कृषि बारिश और सूखा



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Sunday, August 2, 2009

स्वयेम्बर में चुना वर



राखी का ड्रामा ख़त्म...अब नौटंकी शुरू होगी


पिछले दो माह से colour channel पर चल रही अब तक की सबसे बड़ी नौटंकी का अंत हो गया या शुरू । राखी sawant ने kaliyug के इस swamver में अपना वर chun लिया है।


वर banne का सौभाग्य paya है canada के elesh ने। अब ये उनका saubhagya रहेगा या durbhagya बन jayeg ye to aane वाला समय ही तय करेगा। filhaal to राखी ने स्वयेम्बर rachakar इतिहास to bana ही लिया है। aab राखी itihaas महिला हो गई हैं । क्योंकि unhe स्वयेम्बर वाली दुल्हन के लिए याद किया जाएगा। मगर बाज़ार में पैसे की keemat कुछ भी के tark पर color channel ने darshko के सामने badiya autanki pesh की। लोग इस शो में दुल्हन से इन doolho को bachao की guhar लगा रहे थे। वे राखी के इस शो की khoob burai कर रहे थे bavjood इसके उसे देख रहे थे। यही channel valo को chahie था। बिन phere हम तेरे वाली इस दुल्हन elesh को मिल to गई । ladoo भी kha लिया मगर elesh का घर अब charcha में रहने वाला है। kyoki राखी को sambhalna उनके बस की बात नही। ये kachi kali नही है। बल्कि tekhee chhuree है। सोचो sagai के बाद अब राखी उसका टेस्ट कैसे lengi ।


elesh उनके लिए chai layenge maidam chai उठा के phek dengi । miya नीचे soyenge kyoki राखी आज की naari है । अगर वे कभी कहेंगे की मेरी tai कहाँ है। to राखी kahengi मैंने नही ले राखी ....तुमने mujh पर shak किया। jhagda शुरू। कभी elesh ने tv on किया to राखी bolengi सारे channel मई deekhati hu। jhagda शुरू । किसी दिन elesh को gussa आ गया to क्या होगा। भूल कर elesh ये गलती मत कर baithna । kyoki राखी इसके बाद tumhara huliya bigad देगी । तुम पर rape का केस , gharelu hinsa। moder का chharj , मानsik pratadna जैसे anginat kesh हो जायेंगे। इसके बाद आप lagao cort के chakkar । यही नही हो सकता है saja भी हो jae। ये to कुछ नही आगे और है जिसमे आपको dhamkiyan भी मिल सकती है। हो सकता है gunde आप को पीट भी दे। apki जिंदगी के sare कष्ट राखी maidam से मिल सकते है। इसलिए इन्हे gale में bandhane की जरूरत नही।

Sunday, July 26, 2009

ये महबूब की मेहनत है


सानिया मिर्जा का नाम लेते ही युवावो के चेरे खिल जाते है। सनसनी सानिया का शादी से पहले बुरा दौर चल रहा था।

उन्होंने लाखों का दिल तोड़ते हुए सोहराब के साथ शादी रचाने का फ़ैसला लिया। ये ख़बर सुनते ही लड़को के दिल तार-तार हो गए. उन्हें लगा की बेवफा निकली सानिया जो किसी सोहराब के साथ चली गए।

मगर कहते है महबूब की मोहबत्त में कशिश हो तो उसका रंग अपने आप दिखने लगता है। सान्या के लिए भी उनके सोहराब अपना काम धंधा छोड़कर मैदान में पहुँच गए थे. इस तारा महबूब , मेहंदी और मैदान की कहानी बन गए. सोहराब ने मैदान में खूब प्रक्टिस करते हुए देखा. और उनकी मेहनत रंग लाई ।

सानिया ने अमेरिका के लंक्सिग्तों में खेली गए प्रतियोगिता जीत ली। भाई महबूब की मोहाबत का रंग है. अगर महबूब के मैदान पर रहने से इतना ही फर्क पड़ता है तो हमारे क्रिक्केत्रो को भी कुछ सीख लेनी चाहिए।

सहवाग के साथ तो महबूबा साथ ही रहती है। इसे तरह दो चार खिलाड़ी और है जिनका महबूब साथ रहता है. इस्ससे प्रदर्शन उनका सुधरा भी है. मगर दिक्कत धोनी, यूवराज जैसे कुंवारों को खड़ी हो जायेगी बेचारे किस-किस को साथ लायेंगे. एक को ले गए तो दूसरी मोह्हबत खफा हो जायेगी. बेचारे ये क्या करे. शायद सानिया को देखकर कुछ खिलाड़ी परमानेंट मुहब्बत की जुगाड़ कर ले. इसे बहने देश खेलो में कम से कम हारेगा तो नही.

Saturday, July 25, 2009

बारिश की शादी माशा अल्लाह


भाई हमारे प्रिय मित्र की शादी नही हो रही थी

वे दुल्हन के लिए बेताब हुए जा रहे थे. उनकी बेचैनी भाई हमसे देखिनही जा रही थी।

वे बार बार हमसे बोलते यार हमरी उम्र निकली जा रही है , हमारी शादी होगी भी या नही।

हमारे पास सिवाए आशा के और कुछ बी नही रहता । हम उसे सांत्वना देते रहते है. उनकी शादी की चिंता हमें भी है, क्योकि हम भाई दोस्त है उनके ।

इस सावन में उनके लिए एक रिश्ता आया। उनके साथ हमारी भी बांछे खिल गई. क्यो न खिले मेरे यार की शादी की बात है. मैं पहुँच गया उसके घर।

लड़की वाले उसे देखने आए । उनकी तरफ़ से हा हो गई , मेरे दोस्त से पूंछा क्या आप लड़की को देखना चाहेंगे. दोस्त ने कहा हां...फिर क्या था मैं मेरा दोस्त और उसकी फॅमिली पहुँच गए लड़की वाले के घर।

अब लड़की और लड़के को अकेला छोड़ दिया एक दूसरे से बातें करने के लिए । हम भी साथ थे. इसलिए की kahin दोस्त की जुबान न फिसल जाए और मुश्किल से आया यह रिश्ता टूट जाए. भाभी जी ने पूछा की aap क्या कर रहे है. दोस्त ने जवाब दिया आपको देख रहे है. वे सकपकाई और chup हो गई. हमने दोनों की khamoshi को तोड़ते हुए बात को किसी तरह बनाया. बात पक्की हो गई. ish बरसात में श्ड़ी शादी ........दोस्त खुशी के मारे डूबने लगा. शादियों की तय्यारी शुरू हो चुकी थी।

अब बारात का दिन आ गया। उसकी शादी से इन्द्र भी खुश दिखाई दे रहे थे इशलिये तो भयंकर barsa रहे थे. भाई बरसते पानी में dullah तैयार हुआ. बरात निकली. दुल्हे के करीबी होने से हमें बाजू वाली सीट मिली. सावन बिफर रहा था. barati घबरा रहे थे. doolah के दिल में खुशियाँ अंगडाई ले रही थी. मगर भरी बारिश के चलते हमारी gadi फँस गई . doolahe valee गाड़ी पीछे थी और बाराती आगे. बारिश में मोबाइल भी काम नही कर रहे थे. ab समस्या vikatt हो गई. गाड़ी बुरी तरह फँसी थी. भाई धक्का लगाने की नौबत आ गयी. दुल्हे महाशय तो उतरे नही. हमें ही उतरना पड़ा. मगर अकेले के बस की बात कहा थी. gadee ने आगे कदम नही badhaya to dulhe जी gadii से utar कर धक्का लगाने लगे. dhhaka lagate lagate कब उनका सूट-बूट mitti palid हो गया पता ही नही chhala. हम दोनों ese लग रहे थे mano gare में loatkar आए हो . किसी तरह ससुराल पहुंचे to लड़की vallo को to छोडिये ख़ुद अपने vaalle pahchanne से इनकार कर बैठे. दोस्त ने कहा हम दुल्हे है. लोग मारने पर उतारू हो गए. हमें भी गुस्सा आ गया. पास में ही gaddhe में पानी भरा था . हमने फ़ौरन दोस्त के मुंह पर वह गन्दा पानी दाल दिया. kichad धुल गया. फिर क्या था सबने haton haat लिया. मगर vo bhulaye नही bhoola jub शादी में doolhe को ही pahchaanne से इंकार कर दिया. किसी तरह कपड़े बदले फिर jakar mandap नसीब हुआ. वाह रे शादी...अब मैंने यह तय कर लिया की baarish में शादी न करूंगा और न ही करने दूँगा.

Friday, July 24, 2009

पटना ने देश के मुंह पर पोती कालिख

कैसे कहूं की मेरा देश महान
क्योकि देश की सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देने वाले इस देश में जो हुआ , वो हमें तालिबान जैसे दुष्ट देशों के पड़ोस में खड़ा कर देता है । पटना में दिन दहाड़े एक लड़की के कपड़े फाड़े गए । वो तो दोषी है ही जिन्होंने ये कृत्य किया है । मगर सबसे बड़े दोषी वो है जो इसे नपुंसक की भातीं देखते रहे । सरेआम उस लड़की को नंगा किया गया । उसके बचाओ में एक आवाज़ भी नहीं उठी । वाह रे मेरे देश के वीरो । जरा सी बात पर देश पर मर मिटने की सौगंद लेने वालो , यहाँ तुम्हारी वीरता नहीं जगी । तुम्हारे अन्दर का इन्सान कहाँ मर गया । डूब मरो चुल्लू भर पानी में . घर जाकर अपनी घर की औरतों की चूडियाँ पहन लो । क्योंकि जिस कृत्य को अपनी आंखों के सामने देखकर ए हो उसे सुनकर वे कभी गर्व नहीं कर सकती हैं ।
यह पटना की इस घटना ने देश पर कालिख पोत दी है । यह बता दिया है की हम कितने कमजोर है, स्वार्थी हैं। आज बात दूसरे की थी , पर पड़ोसी का घर जलता है तो आग की लपते अपने घर को भी तहस नहस कर देती है। यह कल आपके साथ भी हो सकता है । तब आप भी किसी दूसरे से कोई उम्मीद न रखे । फिलहाल इस घटना ने देश को शर्मसार कर दिया है ।

Wednesday, July 22, 2009

झूठिस्तान का झूठ

क्या कहने पाकिस्तान के , इसके पास तो हर मर्ज की दावा है
हर सवाल का जवाब है। कोई बातो से लडे तो ये वाचाल है, कोई हतियारो से लडे तो यह तैयार है, कोई आरोपरोप लगाये तो यह महा आरोपी है । हर चीज़ में इसका कोई जवाब नही। कश्मीर से लेकर लाहौर तक पाकिस्तान के बोलबाले । हम कितनी दोस्ती दिखा डे मगर ये तो गद्दारी ही करेंगे। अब नया शिगूफा सुनो । महाशय कह रहे है की लंका टीम पर हमला हिंदुस्तान ने किया है। वाह झूठिस्तान जी आपके क्या कहना । गाज कूद पर गिरी तो दुसरे पर आरोप लगा रहे हो। इतनी बार आपको माफ़ किया , उसका ये सिला दे रहे हो। आखिर कब तक तुम्हे हम माफ़ करेगे । सुधर जाओ नही तो दुनिया के नक्शे पर भी नही दिखोगे

Tuesday, July 21, 2009

दरिया की दास्ताँ


मेरे आँचल में सारे तीरथ धाम है !

मै पापियों का भी सत्कार करती हूँ प्यासों के कंठ को तर करती हूँ

उन्हें मुक्ति भी मेरे आगोश में आकर मिलती है

मै गंगा माँ हू मुझे बहुत सम्मान दिया जाता है। मेरी पूजा भी की जाती है

मुझे देश का मान भी बताया जाता है ।

मैं ऋषियों की आस्था हूँ । वो मुझे अपनी मुक्ति का मार्ग मानते है ।

मैं आपकी सदा रक्षा करती हूँ ।

बदले में मै आपसे सिर्फ़ इतनी गुजारिश करती हूँ

की मुझे मलीन मत करो

क्योकि मुझे मलीन करोगे तो मेरे भक्तो और पुत्रो को परेशानी हो जायेगी

उनके स्वश्थ ख़राब हो जाएगा ।

बीमारिया उत्पन्न हो जाएँगी ।

लोग मुझमे स्नान नही कर पाएंगे ।

अगर एसा हो गया तो भगीरथ का वो प्रयास निरर्थक हो जाएगा जो उसने सदियों पहले मुझे इस धरती पर लेन के लिए किया था. वो सबसे पुराणी परम्परा टूट जायेगी जिस पर विश्वास कर लोग स्वर्ग स्वप्न देखते हैं । मैं अपने लिए नही बल्कि आपके पुरखो की आत्मा की शान्ति के लिए , आपके कल्याण के लिए , इस जग के हित के लिए आपसे इन्त्जा करती हू की मुझे मैली मत करो । मेरे पानी में ऐसी कोई चीज न डाले जो मेरे दामन को दागदार न करे। मै आपसे कुछ ज्यादा करने के लिए नहीं कह रही हू। बस एक आदत सुधर लो। मुझे इस गन्दगी से बच्लो । अगर ऐसा हो गया तो इस देश की शान बढ़ जायेगी.




Monday, July 20, 2009

मदमस्त मौसम

सावन की रिमझिम फूहार, मयूरी मन में चली ये बयार

क्यो न आज सावन को जिया जाए, बरसती बूंदों का मजा लिया जाय

बूंदों की साजिश में, मन ने की गुजारिश

क्यों न इस मतवाली पवन में कुछ देर के बूंदों को मुट्ठी में कैद किया जाए

मौसम की रूमानियत देखकर मन उमंगी हो गया

सावनी दिल मचल उठा ,आज dosto के sath barish में बचपन की मस्ती की जाए फिर क्या था, पहनी हाफ नेक्कर और लिए आठाने -बाराने की चिल्लर और कूद पड़े तलईया me . laga aaj sawan me bachpan ji liye .......