Thursday, July 28, 2011

बदजुबान को छूट दी जाती है...


कहावत है कि कम बोलो अच्छा बोलो, और अगर ऐसा नहीं कर सकते हो तो चुप रहो, खामोशी में बड़ी ताकत होती है। यह अभी तक सर्वमान्य था, लेकिन अब तो वाचालों का जमाना आ गया है, जो बोलता नहीं है, वह हमेशा दु:खी रहता है और जो बोलता है, वही रेवड़ी ले जाता है। न बोलने वाले तो अपना हक भी खो देते हैं और जो बोलते हैं ,वह ही उन न बोलने वालों का हक उड़ा ले जाते हैं। अभी तक यह बातें आप समझ नहीं पाए होंगे, या फिर कयास लगाने में जुटे हैं, लेकिन अब बता दें कि यह पूरा का पूरा राजनीति के संदर्भ के साथ आम जीवन की बात को भी परदे पर बकायदा स्क्रिप्ट के जरिए उतारने की कोशिश की जा रही है। जिस तरह से प्राय: बयानों के ब्लास्ट होते हैं, उसमें कई घायल हो जाते हैं, लेकिन ये घायल जब निरुत्तर हो जाते हैं, तो जीत उसी की मानी जाती है, जिसने घायल किया हो। कांग्रेस के पास एक मदारी है, और उसका डमरू सोनिया गांधी के पास है। यह मदारी जब देखो तब ऊल-जलूल बयान दे देता है, कभी आतंकवादी तो कभी जोकर जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है। इस मदारी की मालकिन मैडम है, और वह इसे जहां देखो वहां पर भेज देती है। वहीं कई और भी बंदर हैं, जो डमरू नहीं दिल्ली के इशारों पर नाचते हैं, और उनसे संबंध बनाने के लिए ये न जाने क्या-क्या कर डालते हैं। इनकी हालत तो उनकी उतरैल तक पहनने की हो जाती है, मगर सार्वजनिक नहीं कर पाते हैं। कई बार तो पतलून साफ करने से भी नहीं हिचकते हैं। हां, ये लोग पब्लिक के बीच फेमस होने के चलते सभी चीजें छुपा जाते हैं। खैर... यहां सिर्फ एक ही पार्टी या एक ही व्यक्ति के पास बिच्छू नहीं है, बल्कि हर डाल पर उल्लू बैठे हैं और उनसे बचने के लिए न जाने कितने जोर लगाने पड़ते हैं। इनके बयानों को बारूद के ढेर तक ले जाने का कार्य इनका पिछलग्गू बना मीडिया करता है। वह बार-बार आग को हवा दे देता है , और विस्फोट के बाद कई बार विस्फोट करने की कोशिश करता रहता है। अब देखने की कवायद यह नहीं है कि हम क्या करते हैं, लेकिन इनकी निर्लज्जता देखकर अफसोस होता है कि क्या इस तरह के लोग भी हैं समाज में। हमने डेल्ही बेली पर राजनीति होते देखी है। वहां गालियों का विरोध किया गया था, कोई बात नहीं, ठीक है, लेकिन जब मंच से गालियां बकी जाती हैं, तो फिर वहां गरिमा नहीं खोती है। नेता अपने घर के अंधेरे को नहीं देखते हैं और दूसरे के घरों के अंधेरे पर सवाल उठाने लगते हैं। यह कोई एक पार्टी नहीं है, बल्कि हर पार्टी के पास ऐसे बिच्छू हैं और वह देर सवेर इस तरह की हरकतों को अंजाम देने से नहीं चूकते हैं। तब लगता है कि देश की राजनीति जो कभी गरिमा का पर्याय बनी रहती थी, आज न जाने कहां खो गई है, कहां गुम हो गई है। यहां भाषाई शत्रुता निभाई जा रही है, लेकिन इसे रोकने वाला कोई भी नहीं है। हर कोई जीवन को अपने तरीके से जीने की कोशिश कर रहा है, यह ठीक है, लेकिन ये लोग ऐसे हैं जो दूसरे के जीवन को भी प्रभावित करने से गुरेज नहीं करते हैं। बयानों से बखेड़ा खड़ा कर समाज में ज्वाला भड़काने की हर वो कोशिश करते हैं, जिससे की चिंगारी शोला बन जाए। कई बार ऐसा हुआ भी है, और कई बार ऐसा नहीं भी हुआ है। माना आज का युवा समझदार है, लेकिन ऐसा बहुत कम मौकों पर हुआ है। जिस तरह से हमने देखा है कि आदमी आदमी का दुश्मन है, लेकिन जिन्हें हम अपना भविष्य देते हैं, वही हमें डुबो रहे हैं। हर नेता भ्रष्टों का सरताज बनने की कोशिश कर रहा है। मुंह से आग उगलता है और तिजौरी भरता है। उनके पास सिर्फ यही काम है। तब देश का विचार आता है कि आखिर उसकी दिशा क्या है। जिस तरह से देश पर संकट है, उससे तो यही लगता है कि आखिर उसके तो उड़ने के पर इन लोगों ने पहले ही बांध दिए हैं। हम कौन सी तस्वीर पेश करना चाहते हैं, यह हम नहीं जानते। पर जिस तरह का माहौल देश में बना है, उसे देखते हुए सबसे पहले कोई ऐसा कानून बनाने की जरूरत है, जिसमें कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक इस तरह की भाषा का प्रयोग न करे। मानहानि के दावे को बढ़ाना चाहिए। माना मौलिक अधिकारों में अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता दी गई है, लेकिन यह विचार तो नहीं हो सकते हैं, और फिर विचार आप सार्वजनिक इस तरह की भड़काऊ भाषा के साथ प्रस्तुत तो नहीं कर सकते हो, क्योंकि जिस तरह से व्यवस्था के साथ नाता तोड़ा जा रहा है, वह चिंतनीय विषय है। हमारे राष्टÑपिता ने तो अंग्रेजों की लाठियां खाने के बावजूद भी कभी इस तरह से अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया। अहिंसा को हथियार मानने वाले हम कहीं अपनी सोच से परे तो नहीं हो गए हैं। हम सिर्फ बातें अहिंसा की करते हैं, लेकिन हिंसा में पूरा विश्वास करते हैं, और यह टूटे नहीं, इसके लिए कई बार प्रयास भी करते हैं। कभी-कभी हिंसा का टेÑलर भी दे देते हैं, जिससे परिस्थितियां विपरीत हो जाती हैं। खैर फिलहाल तो इन्हें नसीहत ही दी जा सकती है।

Wednesday, July 27, 2011

ब्यूटी विथ ब्रेन


ईश्वर जिसको भी देता है, उसे छप्पर फाड़कर ही देता है। यह कई मौकों पर साबित भी हुआ है और साबित होता रहेगा। एक बार फिर हम ईश्वरीय बातों से निकलकर सियासत के चक्रव्यूह में आकर बात करते हैं। वह भी भारत-पाक की सियासत के सिलसिले में, जहां कुटिलता के साथ ऊपरी दिखावा भी होना चाहिए। यहां हर एक कदम फूंक-फूंककर रखा जाना चाहिए। लंबे समय से हम अपने पड़ोसी के साथ एडजस्ट नहीं कर पा रहे हैं। आखिर पड़ोसी भी तो ऐसा ही है, बिना वजह हम पर हमले और विस्फोट करता रहता है। आखिर कब तक हम उससे रिश्तों की बात करेंगे, जब वह हमें खत्म करने पर ही आमादा है, तो ऐसी स्थिति में हमने भी तो हाथों में चूड़ियां नहीं डाल रखी है। माना की हम शांतिप्रिय हैं, लेकिन जब बात गर्व की है, सम्मान की हो, देश की आबू्र की हो तो फिर हम मरने से नहीं डरते। तो क्या हुआ कि हमारे बाद हमारे परिवारों को दु:ख होगा, तो क्या हुआ कि हमारे बाद उन्हें रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष करना पड़ेगा, तो क्या हुआ कि वो लोग दर-दर की ठोंकरें खाएंगे, लेकिन देश पर मर मिटने से पीछे हटने के लिए ये कारण पर्याय तो नहीं हैं। बात सियासत के शिखंडियों की, जो अपने-अपने फायदे के लिए झूले को इधर-उधर ढकेलते रहते हैं। यह तो हुई अभी तक की बातें, लेकिन पाक की सबसे लोकप्रिय विदेश मंत्री भारत में मेहमान हैं। अब उन्हें देखकर तो उनकी खूबसूरती का हर कोई कायल हो सकता है। 30-31 साल की यह महिला हिना रब्बानी...जिसे पहली बार देखो तो किसी पॉलिटिकल पार्टी की नहीं,बल्कि फिल्म की हीरोइन अधिक लगती है। वाह, खुदा भी किसी किसी पर कितना मेहरबान हो जाता है। मैडम के पास ब्यूटी की कमी नहीं है, माशाअल्लाह ब्रेन भी लाजबवा है...और तो और दौलत भी खूब है। पाक की यह विदेश मंत्री...न सिर्फ अपनी खूबसूरती से भारत को दीवाना बना गई, बल्कि पाक की ओर से उसने जो शिगूफे छोड़े, उसमें भारत उलझ कर रह गया। जब वह मिस्टर कृÞष्णा कहकर हमारे विदेशमंत्री को संबोधित कर रही थी तो फिर कृष्णा साहब के पास सिवाय मुस्कराने के और कोई चारा नहीं था। हां, कुछ लोग पहले आंक रहे थे कि इतनी कम उम्र की लड़की, और उसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई, कहीं वह फेल न हो जाए, लेकिन जिस तरह से उसने चीजों को हैंडल किया है, वह काबिल-ए-तारीफ है, और तो और उसने भारत के सामने यह विकल्प भी रख दिया कि बातचीत के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। लंबे समय से भारत कई बार अपनी जिदों पर अड़ जाता था। मुंबई हमले के बाद हमारे बीच काफी तनातनी थी, एक बार फिर बातचीत के जो द्वार खुले हैं, उसमें हिना पूरी तरह से भारी नजर आर्इं। हिना की बेबाकी और उनकी इंटेलिजेंसी का हर कोई कायल हो गया। उनकी बातें पाक में भी सुनाई दे रही होंगी और उन्हें भी अपनी कम उम्र की बेटी पर गर्व होगा, क्योंकि बकायदा उन्होंने दिखा दिया कि उन्हें धुप्पल या फिर सिफारिश में विदेश मंत्री का पद नहीं मिला है, बल्कि इसके लिए बकायदा उनमें कूबत है, हुनर है और इसी हुनर पर भरोसा कर के उन्हें विदेशमंत्री का पद दिया गया है। उनकी बातें सुनकर भले ही टिप्पणीकर या आलोचक उन्हें कम उम्र और अनुभवहीनता की सलाह दें, लेकिन यह उनके पर्सनल विचार होंगे और यहां जो लिख रहा हूं, वह भी मेरे पर्सनल विचार हैं, जिसमें मैंने पाया कि वास्तव में हिना ने बेहतर तरीके से नेतृत्व क्षमता दिखाई। हां, उनकी कुछ बातें अलग थीं, लेकिन नया कुछ भी नहीं निकला। इसे रुटीन मीटिंग ही कह सकते हैं, मगर इस्लामाबाद में 2012 में जो मुलाकात होगी, उसके बीच का जो समय रहेगा, वह हालात ही वहां की मीटिंग को तय करेंगे,और तभी समझ में आएगा कि आज जो मुलाकात हुई है, वह सिर्फ बातचीत की टेबल ही साबित हुई है, या फिर कुछ और। आने वाले समय में देखना होगा कि क्या हिना ने जो कहा है, उस बात पर पाक कायम रहता है, और तो और खास बात यह रहेगी कि क्या इस दौरान पाक सच्चाई और ईमादारी बरतता है, यह तो भविष्य के तीर हैं, जो पता नहीं लक्ष्य भेद पाएगा या नहीं। यह नहीं जान पाएंगे...दुनिया भी इन दोनों की बातों को टकटकी लगाए थी, क्योंकि अभी कुछ दिन पूर्व ही हिलेरी ने भारत दौरा किया था, और उनकी कुटिलता और मुस्कान के पीछे क्या छिपा है, यह समझ नहीं पाया। खैर...आने वाला समय ही बताएगा कि इन दोनों के बीच बंद कमरे में क्या हुआ और सार्वजनिक क्या हुआ...यह तो आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल तो जैसा बयान इन्होंने दिया है, उसे हम सच मानकर भविष्य की अटकलें लगाए रहेंगे। उम्मीदें पाले बैठे हैं, और यह उम्मीदें हकीकत से कितना वास्ता रखेंगी यह तो बात की बात ही है। हम तो सिर्फ यही कह सकते हैं कि हिना रब्बानी...कुछ-कुछ अमेरिका की हिलेरी क्लिंटन को टक्कर देंगी, क्योंकि उनकी तरह इनके पास भी ब्यूटी विथ ब्रेन है।

Tuesday, July 26, 2011

अंग्रेजों के हाथों आएंगे ताज गवाकर


धोनी ने जिस अंदाज में आगाज किया है, अब अंजाम तक वह नहीं पहुंच पा रहा है। विश्व का एकमात्र कप्तान जिसने ट्वेंटी-20 के साथ विश्वकप अपने हाथ में उठाया है, आज उसकी टीम का हालात बुरे हैं। इंग्लैंड में टीम इंडिया का प्रदर्शन लचर रहा। जिस अंदाज में हमने बल्लेबाजी की है, उससे तो लगता ही नहीं कि एक विश्व चैंपियन टीम खेल रही हो। यह वही टीम है, जो पिछले एक साल से टेस्ट क्रिकेट की बादशाहत कर रही है, लेकिन इंग्लैंड में जाते ही उसकी कमजोरियां सामने आने लगी। वह अपना बेहतर खेल नहीं दिखा पा रही है। सचिन हो या फिर लक्ष्मण...कोई भी अपने खेल के अनुरूप खेल नहीं रहा है। हां, सहवाग की कमी जरूर अखर रही है, लेकिन बाकी खिलाड़ी क्या कर रहे हैं। सिवाय राहुल द्रविड़ के कोई भी बल्लेबाज अंगे्रेजों के आगे टिक नहीं पा रहा है। आखिर विश्व चैंपियन को हो क्या गया है। माना अभी दौरा बहुत बड़ा है, और आगे मौके मिलेंगे, लेकिन भारत की हार तो तभी तय हो गई थी, जब उसने प्रैक्टिस मैच में शिकस्त झेली थी। हां, उम्मीद थी कि शायद पहले टेस्ट में बेहतर करेंगे, लेकिन एक बार फिर विदेशी पिचों की वही कहानी फिर सामने आ गई। हम घर के शेर हैं,और बाहर कचरे का ढेर हैं, कोई भी हम पर भारी पड़ जाता है। अगर हम पांचवें दिन बेहतर खेलते तो शायद मैच बचा सकते थे, हमारे पास नौ विकेट थे और कोई भी बल्लेबाज विकेट पर टिककर नहीं खेल पाया। खुद कप्तान धोनी की बल्लेबाजी पर एक प्रश्नचिह्न खड़ा हो रहा है। धोनी के धुरंधर भी धुआं हो रहे हैं और खुद माही भी अपने अंदाज में नहीं खेल पा रहे हैं। अगर धोनी की बैटिंग देखी जाए तो विश्वकप फाइनल को अगर छोड़ दिया जाए तो पिछले कई मैचों से उनका यही प्रदर्शन है। और अगर यही स्टाइल उनका खेलने का रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब भारतीय टीम फिर से पांचवें और छठे स्थान पर आ जाएगी। इसमें कोई शक नहीं है,कि आॅस्टेÑलिया और साउथ अफ्रीका जैसी टीमों से नंबर एक का ताज छीनकर भारत ने अपने खेल की धाक पूरे क्रिकेट जगत में जमाई है, लेकिन यह धाक सिर्फ एक या दो साल की ही दिखाई दे रही है। आखिर क्यों हम दुनिया का ताज सालों साल कंगारूओं की तरह नहीं रख पा रहे हैं। अगर अंग्रेजों ने हमारा ताज छीना तो निश्चय ही भारत की एक बार फिर खिल्ली उड़ जाएगी। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वही अंग्रेज हैं, जिन्होंने भारत पर सालों राज किया है,अब उनके खेल में उनको ही हरा कर हम उनके मुंह पर तमाचा मार सकते हैं। हम उन्हें बता सकते हैं कि मेहनत अगर की जाए तो हम उन्हें उनके घर में ही मार सकते हैं। अभी हमें अपनी क्षमता के अनुसार खेलना पड़ेगा। टीम इंडिया को कुछ कड़े फैसले लेने होंंगे और खासबात यह है कि जो फीट है, वही खेले, भले ही वह कितना अच्छा गेंदबाज हो या फिर कितना ही अच्छा बल्लेबाज। पुराने प्रदर्शन या फिर कद के हिसाब से खिलाड़ी को महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। फिलहाल तो टीम इंडिया को सरताज बनाने के लिए धोनी को एक बार फिर अपने लड़ाकों में मंत्र फूंकना पड़ेगा। अगर वो ऐसा करने में कामयाब हो गए तो फिॅर हमारा ताज सलामत रहेगा। हां, अभी इज्जत बचाने का मौका है, टीम इंडिया को कोई भी ढिलाई नहीं बरतना चाहिए, क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही सालों की मेहनत पर पानी फेर सकती है,और अगर एक बार यह ताज हमारे पास से गया तो फिर दोबारा इसे पाने में न जाने कितने साल लग जाएंगे। अभी एक टेस्ट तो हम हार चुके हैं, जितने भी टेस्ट बचे हैं, हमें उनमें ही कमाल करना होगा। टीम इंडिया को अपनी ताकत नहीं बल्कि शक्ति के साथ खेलना होगा। हमें वह पुरानी लय वापस लानी होगी, जो हमने विश्वकप के दौरान दिखाई थी। सचिन से लेकर सारे सीनियर खिलाड़ी और युवा चेहरों को जमकर खेलना होगा। विकेट पर टिकने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिखाना होगा। अब अगर यह करिश्मा करने में हम कामयाब हो गए तो फिर हम अंगे्रेजों को फिर उन्हीं की धरती पर धूल चटा देंगे। और वह जीत का जश्न बहुत यादगार रहेगा। अब वक्त है, रणनीति बनाने का, इंग्लैंड के गेंदबाजों का सामना करने का, उन्हें निपटाने का। इसमें धोनी की बहुत बड़ी भूमिका है, और वही रीढ़ की हड्डी हैं, वही उन्हें अपना खेल का स्तर भी सुधारना होगा, क्योेंकि वह नहीं सुधरा तो मामला थोड़ा गंभीर हो जाएगा। टीम इंडिया को कुछ बेहतर करना होगा, कुछ नए प्रयोग करने होंगे। ये धरती पुत्र धोनी...तुमसे कुछ मांग रही है, इस धरती का कर्ज तुम्हारे कंधों पर है, इसे जीतकर उतार दो। सिर्फ हम जीत मांग रहे हैं, और हमें कुछ नहीं चाहिए, बाकी हमारे दिलों के बादशाह तो आप हैं ही, और आप अगर जीतकर आए तो यह देश आपका शान से स्वागत करने को तैयार है।