Sunday, March 13, 2011
धोनी ने डुबो दी लुटिया
हमें हमारी बल्लेबाजी पर पूरा भरोसा है, साथ में यह संशय भी रहता है कि धोनी की यह बिग्रेड ताश के पत्तों की तरह कब ढेर हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। टीम में एक से एक दिग्गज हैं, इसके बावजूद हम हार जाते हैं। हां पहले ताकत की बात कर लेते हैं तो सचिन और सहवाग की तूफानी शुरुआत देखकर दक्षिण अफ्रीका जापान के जलजले सा महसूस कर रहा था। वह सोच रहे थे कि आखिर जब स्टेन का वार और मोर्केल की रफ्तार नहीं चली तो फिर टीम इंडिया को कैसे रोका जाए। चार सौ का आंकड़ा स्मिथ की आंखों में भी तैर रहा था। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर मैच में वापस आया कैसे जाए। टीम में वीरू के आउट होने के बाद रनों की रफ्तार में अंकुश जरूर लगा, लेकिन सचिन और गंभीर ने बकायदा अपनी पारियों को बड़े स्कोर में तब्दील किया। बात यहां तक थी, जब तक सबकुछ अच्छा चल रहा था। सचिन का सैकड़ा पूरा हुआ। इसके दो ओवर बाद सचिन का विकेट चला गया। अब क्या था, टीम इंडिया लगता है कि आज चार सौ के मूड में ही नजर आ रही थी। हर किसी को सिर्फ बाउंड्री ही दिखाई दी। तो क्या था बल्ले खूब धड़ल्ले से चलाने लगे। पहले गंभीर गए, इसके बाद तो तू चल मैं आया। 27 रन पर नौ विकेट हो गए। एक समय चार सौ का आंकड़ा अब 300 भी नहीं पहुंच पाया। यहीं से शुरू हुई धोनी की गलती। यह जिम्मेदारी धोनी की भी तो बनती थी, उन्होंने तो बल्ले से जौहर दिखाना छोड़ ही दिया है और कप्तानी में ही मशगूल हो गए हैं। धोनी साहब यह मत भूलो कि सौरव दादा भी जब प्रदर्शन नहीं कर पाए थे तो उन्हें बाहर कर दिया गया था, जबकि उनका रिकॉर्ड आप से काफी बेहतर था। अब बोर्ड पर 290 का लक्ष्य। शायद यह लक्ष्य काफी बड़ा होता है, लेकिन गलती करने वाले हमारे धोनी थकेले कंधों पर बंदूक रखकर विश्वकप का सपना संजोए बैठे हैं। हां इन्हें विश्वकप मिले तो ठीक नहीं, तो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इनके घर तो धन से यूं ही भर जाएंगे, लेकिन उन सौ करोड़ लोगों का क्या है, जिन्होंने इन्हें अपने सिर का ताज बनाया है। अब महाशय धोनी का इसमें तर्क होता है कि आखिर लोग क्यों देखते हैं क्रिकेट, हम तो खेल की तरह खेलते हैं और इसमें हार जीत लगी रहती है। तो भाई धोनी आपको हमारी एक नसीहत मान लेनी चाहिए कि अगर आप का रवैया यह है और जनता के अरमानों की फिक्र नहीं है तो आप सन्यास ले लीजिए, क्योंकि जो खेल के लिए इस तरह की भावना रखते हैं, उस तरह के कप्तान की इंडिया को जरूरत नहीं है, और यह आपकी बपौती नहीं है, जो आप इसमें अपनी पसंद न पसंद जताएंगे। यह सार्वजनिक खेल है और इसमें हमारी सौ करोड़ जनता इन्वॉल्व है। अगर आप जीत नहीं सकते तो बाहर बैठिए, और भी हैं दीवाने जो यहां मिटने के लिए तैयार हैं। आप अगर विश्वकप का ताज नहीं दिला पाए तो आपको मक्खी की तरह हम खुद भी निकाल सकते हैं। वहीं गलतियों के बादशाह हमारे धोनी भूल ही जाते हैं कि वो कप्तान हैं और गेंदबाजों से उनका संपर्क नेटवर्क की तरह टूट जाता है। किसी भी गेंदबाज को गेंद थमा देते हैं, ऐसे समय में जरा ध्यान रखा कीजिए और जो हमें जिताए उसे गेंद दिया करो। भाई साहब नेहरा ने पूरे मैच में तीर नहीं मारा था और आपने उन्हें ही निशाना साधने के लिए दे दिया। ऐसे में चूक तो उनसे भी हुई और आपसे भी। आगे की कठिन लड़ाई अभी बाकी है और अब आपके पास पछताने का विकल्प और मौका नहीं रहेगा। हां अगर ऐसे में भी टीम इंडिया को आप फाइनल तक नहीं ले गए तो फिर आवाम आपको बख्शेगी नहीं। इसलिए भारत की आवाज सुन लो और कोई कड़ा निर्णय जरूर लो, क्योंकि यह नहीं किया तो फिर 28 सालों का यह सूखा कभी समाप्त नहीं होगा। हम कभी ताज नहीं जीत पाएंगे। अब आपके दस्तानों में गेंद है, उसे जिम्मेदार को ही दिया करो, क्योंकि आप जीतो या हारो आपकी फीस पूरी मिलती है और आप तो दिनभर मैच खेलते हो, इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हम इंडियन दर्शकों का तो दिल टूट जाता है और कभी-कभी रुठ भी जाता है, इसलिए अगर जीत दिलाओगे तो बादशाह कहलाओगे, नहीं तो धोनी कोई नाम था, यह भुलाने में हमें ज्यादा दिन नहीं लगेंगे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment