Wednesday, April 28, 2010

वोट के पहले गड़बड़ हुई गोट


कट मोषन में जब वोट पड़े तो देषभर में उसका बवाल हुआ, लेकिन झंझट हो गई झारखंड के लिए। वहां का कोयलावीर ष्षिबू इतनी आसानी से बेवकूफी कर बैठेगा, यह तो विरोधियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा, लेकिन जब सत्य को किसी प्रमाण की जिस तरह जरूरत नहीं होती, उसी तरह यहां पर भी है। जब गीदड़ की मौत आती है तो वह ष्षहर की ओर दौड़ता है उसी प्रकार जब आदमी की मौत आती है तो वह अपने ही बुद्धि की श्रेष्ठता के जाल में जकड़ जाता है। ष्सोरेन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, उन्होंने वोट तो दे दिया, मगर उसकी गोट नहीं जमा पाए। सबसे अधिक झारखंड पर राज करने वाला यह दबंग नेता, अपने पैर पर इस तरह से कुल्हाड़ी मार लेगा, या कुल्हाड़ी पर ही पैर मार देगा, इसका अंदाजा एक दिन पहले तक किसी ने नहीं लगाया था, मगर दादा तो सत्ता के मद में चूर थे, जिसमें साथ था भाजपा का और चले गए यूपीए के पाले में। अब दुष्मन का साथ देने का मन इन्होंने पहले से बनाया था या मानवीय भूलवष ऐसा हो गया, इसके पत्ते अभी तक खुले नहीं है, लेकिन जो कुछ नजर आ रहा है उससे तो षिबू की नांव सरिता में हिचकोले लेती नजर आ रही है। भाजपा के विरुद्ध होकर न तो उनके पास कांग्रेस का हाथ है और न ही भाजपा का साथ। जालिम जब सितारे गर्दिष में हो तो सनम भी साथ छोड़ देता है, उन्हीं हालातों से षिबू की गाड़ी गुजर रही है, ऐसे में झारखंड की कुर्सी की जद्दोजहद और सीएम का पद एक बार फिर संषय की स्थिति उत्पन्न करने वाला हो गया है। हालांकि षिबू ने यह तो कह दिया है कि वो इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं, मगर उन्हें उम्मीद है कि कहीं न कहीं कांग्रेस उनके साथ अवष्य खड़ी होगी। और अगर ऐसा हो गया तो निष्चय ही षिबू को जितना फायदा भाजपा से नहीं हो रहा था, उतना कांग्रेस के साथ से हो जाएगा। क्योंकि जब लहरों के साथ तैरते हैं तो रफ्तार बढ़ जाती है। षिबू की रफ्तार भी बढ़ सकती है। मगर कांग्रेस की चुप्पी ने सारे रहस्यों पर परदा डालकर रखा और पूरे घटनाक्रम पर एक रहस्य बरकरार है। आने वाले दिनों में झारखंड में क्या झंझावत होती है, इसके लिए सिर्फ इंतजार करना ही एक रास्ता दिखाई दे रहा है, क्योंकि राजनीति में हर कुछ संभव है, यहां कोई किसी का परमानेंट न तो दोस्त होता है और न ही दुष्मन। आने वाले दिनों में भी कुछ इसी कहावत की तर्ज पर फैसले दिखाई देंगे।

Monday, April 26, 2010

हम भी लुटे सनम, तुम भी लुटे



एक ही शहर के दो बलशाली कभी आपस में नहीं भिड़ते हैं, वो या तो दोस्त बन जाते हैं या फिर कुछ सीमाएं खींच देते हैं, ताकि लड़ाई की आंच एक-दूसरे पर नहीं पड़े, क्योंकि इन्हें राज करना है तो आपस में नहीं, बल्कि इनसे छोटों को डराना ही इनका धर्म बन जाता है। यह फॉर्मूला आज का नहीं है , बल्कि छोटे से लेकर बड़ा हर कोई इसे अपनाता है, अगर इसमें कहीं भी चूक होती है तो परिणाम दोनों के अस्तित्व को मिटा डालते हैं, ठीक वैसे ही, जैसे दो शेरों को घमासान में एक की चित तो तय है, यही कुछ हुआ, आईपीएल-3 ग्राउंड के बाहर। यहां के दो शेरों ने अपनी आदत के अनुरूप नियमों को तोड़ने की हिमाकत कर डाली, और जब नियम टूटते हैं तो बिजली गिरती है, और यह अपने साथ कई और को निस्तेनाबूद कर डालती है। यही हुआ इस बार भी मिस्टर मोदी और शशि साहब के बीच। इन दोनों के युद्ध ने मोदी को मार डाला वहीं थरूर का गुरुर भी चकनाचूर हो गया। यहां दोनों को अंदाजा भी नहीं था होगा, कि उनकी इस हरकत से बात इतनी बढ़ जाएगी कि दोनों को अपने पदों का त्याग देना नहीं पड़ेगा, बल्कि इन्हें निकाला जाएगा।
अब हैसियत भी गई और हिम्मत भी, दोनों को भुगतना पड़ी शर्मिंदगी, और बेबसी। इनकी हालत पर ये दोनों एक दूसरे को यही कह रहे हैं कि सनम हम भी लुटे और तुम भी लुटे। मगर इन सब के पीछे देखा जाए तो यह पूरा खेल पैसों की पिच पर खेला जा रहा था। मैदान पर तो दिखने में लग रहा था कि चौके-छक्के लग रहे थे, लेकिन अंदर पैसों का खेल शबाब पर चल रहा था, पर कितना भी हो, पाप की गगरी एक न एक दिन अवश्य फूटती है और वही हुआ, सारी चीजे एक-एक कर सामने आती गई और बिगड़े बादशाह को पदच्युत कर दिया गया। अब न तो मोदी है और न ही शशि थरूर है, आईपीएल की बागडोर भी दूसरा कोई संभालेगा, और विदेश राज्यमंत्री का पद भी। दो अलग-अलग प्रतिभाएं और लोग होंगे, जिनके कंधों पर मजबूत और महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी रहने वाली है, तो यहां चिंताजनक एक और बात है कि आखिर आने वाले दो नए लोग क्या वास्तव में उस पद के लायक होंगे। हां, हो सकता वो महत्वपूर्ण भी हों, पर अगर दर्द और टीस तो इस बात की है कि कहीं ये उससे भी अधिक भ्रष्ट निकल गए तो जिसके लिए यह पूरी कार्रवाई हुई वो सब व्यर्थ हो जाएगा, क्योंकि जिस तरह शेर के मुंह में अगर खून लग जाता है तो फिर उसके विचारों को बदला नहीं जा सकता, उसी प्रकार माया का मोह भी लोगों से नहीं छूटता है, और यहां तो दौलत बह रही है, इसे कौन नहीं चाहेगा कि वह अपना बना ले, भई दौलत चीज ही ऐसी है, जो बड़ों-बड़ों के इमान को डिगाने का दम रखती है, अगर यहां भी कुछ ऐसा हुआ तो निश्चय ही आईपीएल या अन्य क्रिकेट की संस्थाओं में अगले कुछ सालों में नए खुलासे होंगे, फर्क यह रहेगा कि चेहरे बदले हुए होंगे, लेकिन चीजें वहीं रहेंगे, दौलत और शोहरत की लूट आज भी हुई और कल जो आएंगे वो भी इसी परंपरा को आगे लेकर जाएंगे। जगत में विरले ही होते हैं जो इस मोहपाश से छूट पाते हैं, इसलिए यहां पर समस्या बहुत विकट है और इसका परमानेंट सॉल्यूशन नहीं खोजा जा रहा है, जो बेहद चिंताजनक साबित होगा, और देश में भ्रष्टाचारों की जमात बढ़ती जाएगी, और इसे कौरव-पांडवों के युद्ध की तरह रोका नहीं जा पाएगा।

Sunday, April 25, 2010

खेल से खिलवाड़...अब फंसे जालसाज



इस गरमी में मैदान से लेकर एसी रूम तक दहक रहे हैं, जहां आईपीएम के इस फटाफट तमाशा क्रिकेट में मैदानों के बाहर दनादन छक्कों से गरमी पैदा हो रही है, वहीं स्टेडियम के बाहर बैठे एसी रूमों में इनके कर्ताधर्ताओें के पसीने छूट रहे हैं। इनके होश चौके-छक्के या विकेट देखकर नहीं उड़ रहे हैं, बल्कि इनकी कारसतानियों के खुलासे ने इन्हें आतंकित कर रखा है। कलियुग के इस महान खेल को खेलकर ही मोक्ष पाया जा सकता है, इस विश्वरूपी स्टेडियम पर, धरती के समान पिच, जिसमें शरीर एक बल्लेबाजी है, जीवन बॉल है। अब अगर चौके-छक्के पड़ रहे हैं तो समझों खुशियां हैं, वहीं विकेट परेशानी है और हिट विकेट आत्महत्या, जबकि स्टंपिंग कत्ल के समान है, इस घोर पापी युग में जन्नत का द्वार इसे मान लिया गया है, क्योंकि भावनाओं से बढ़कर न तो कोई खुदा होता है और न ही कोई स्वर्ग। पर इस खेल में सबकुछ होता है, खिलाड़ी भगवान तो, ईश्वर से प्रार्थनाएं भी...मगर जब इसके पाक ुअस्तित्व पर जालसाजों की काली छाया पड़ती है तो मन द्रवित हो उठता है। लगता है कि खेल से खिलवाड़ किया जा रहा है, करोड़ों लोगों की भावनाओं को कुछ राक्षस अपने रीछ जैसे पैरों के नीचे कुचल रहे हैं, तब लगता है कि इससे मन खिन्न कर लिया जाता है , लेकिन महामाया ही ऐसी होती है जो आपको मोह छोड़ने ही नहीं देती है। मगर गीता के उपदेशों में भी है कि धैर्य रखो... एक-एक जालसाज सामने आ जाएगा। इस महाकुंभ में जमकर पैसों की बरसात हुई, सभी ने अपने घरों की टंकियों को इस पैसे से भरा, लेकिन जब यह उथलाया तो सारी हकीकतें परत-दर-परत एक-एककर उखड़ने लगी। सारी सचाइयां सबके सामने आ गई। यहां के हैवानों के कारनामों ने किसी को भी अचंभित नहीं किया, लेकिन आहत जरूर कर दिया है। मगर मोदी एंड थरूर फिल्म का यह अभी एंड नहीं है, बल्कि ये तो ट्रेलर है, पिक्चर तो अभी पूरी बाकी है। जहां पहले ही हॉफ में एक हैवान की बली चढ़ गई, वहीं आधी फिल्म में तीन सालों से हीरों बने दूसरे हैवान पर भी गाज गिरने की तैयारी जैसी होने लगी है, मगर सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जो निकले हैं, वही इस कलियुग क्रिकेट की महानता नहीं शर्मनाक के अंधेरे गर्त में ले जाने के लिए काफी हैं। यहां न तो सिर्फ मोदी कंपनी है और न ही थरूर। फिल्म में अन्यों ने भी सहायक भूमिकाएं निभाई हैं, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इन दोनों के अलावा कुछ अन्य ने भी इस महाकुंभ में महाघोटाला किया है, उन्होंने जमकर बरसते हुए पैसों को दोनों हाथों से लोका है, तो दोष किसका, किसी का नहीं, सिर्फ दर्द और धोखे का ही खेल बचा है, जिसमें समझदार अपनी झोलियां भर रहे हैं। तो सवाल यह है कि आखिर इससे निजात कैसे पाई जाए, तो कोई जवाब न तो सरकार देगी और न ही क्रिकेट की कोई संस्था। मगर इसका हल ढूंढ़ना भी जरूरी है,और इसके लिए सरकार को आगे आकर कोई ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनानी चाहिए, जो इस क्रिकेट के कलंक को धो सके। उस पर लगने वाले लांछनों से इसे बचाया जा सके। इस विचार पर यदि गंभीरता से न सोचा गया तो निश्चय ही इस क्रिकेट में एक दिन भूचाल आ जाएगा, तब न तो इसे प्रेमी मिलेंगे और न ही प्रशंसक। अब कोई विश्वव्यपाी क्रिकेट क्रांति की जरूरत है, जो इस आतिशी और मनोरंजन वाले खेल को बचाने में सहायक हो सके, अन्यथा यह बात यहीं रुकी तो इसकी मर्यादा तो भंग होगी ही साथ ही इसका पतन भी हो जाएगा।

Friday, April 23, 2010

मैं आपकी दूसरी बीवी बोल रही हूं



हैलो...हां हैलो... कौन बोल रहा है, जी मैं बोल रही हूं... मैं कौन, इतनी जल्दी ही भूल गए, कल रात को तो बड़ा प्यार जताने आए थे और आज भूल गए....तो सुनो मैं तुम्हारी दूसरी बीवी बोल रही हूं, हां बोलो क्या बात है...इन बातों को इन दोनों की बात ही नहीं, कोई और भी सुन रहा है। भई आजकल तो यही पंगा परवान चढ़ने को तैयार दिखाई दे रहा है। क्योंकि फोन अब बेवफाई करने पर मजबूर हो उठे हैं, मगर इन्हें बेवफा भी नहीं कहा जा सकता, बेचारे इनकी मजबूरी के पीछे तो कोई तीसरा पहरा है। यह पहरा है सरकारी एजेंसियों का।
ये एजेंसियां आपको बिना बताए, आपकी भीतरी जिंदगी में झांक रही हैं। उनकी उन बातों को उजागर करने की एक कोषिष है, जो वो अंदरूनी तौर पर करते हैं। यहां सवालों के ष्षंका-कुषंका बहुत मन को व्याकुलता की ओट में लेकर पहुंच जाते हैं, मन की वल्गाएं तन जाती हैं, लेकिन विचार को वैराग्य प्राप्त नहीं होता है। और मन उथले और गंदले पानी की तरह हिलता-डुलता रहता है। इस तरह का काम मन को कभी-कभी व्याकुलता की कगार पर खड़ा ऐसा प्रतीत करता है, जैसे मानों नग्न देह पर कोई कोडे़ बरसा रहा हो। यह ठीक है कि कुछ लोगों का तक है कि इससे भ्रष्टाचार रूकेगा और यह प्रयास बहुत ही कारगार सिद्ध होगा। मगर हमारे एक दोस्त, जो राजनीति में काफी रुतबा रखते हैं, बेचारे उनका क्या होगा।
ठसमें कोई संदेह नहीं है कि वो कभी भ्रष्टाचार की गंगा में कभी तैरने का प्रयास करते हैं, वह तो इस पवित्र नही ंके गंदे हिस्से वाले जल से सदैव सैकड़ों मील दूर से ही नमस्ते करते हैं ।मगर समस्या यहां नहीं, समस्या उनके दूसरे वालू पहलू पर है।
यह भी जरा पर्सनल है, लेकिन समस्या विकट है तो आपको बताना भी जरूरी हो गया है। दरअसल हमारे मित्र को सिर्फ एक ही ष्षौक है और वो है मुहब्बत, मगर जालिम जमाने ने कभी भी इस जग में आषिकों को सुकून से रहने नहीं दिया है।
मुहब्बत की जंग सदियों से चली आ रही है, पर फैसला अभी तक नहीं हो पा रहा है। फिर इसके लिए ये कौन सी बेड़ियां जिम्मेदार हैं, यह आज तक नहीं जान पाए। खैर, यहां तो हमारे दोस्त को परेषानी हो गई है, वह यह कि बेचारे अभी तक तो अपनी मेहबूबाओं से तो भाभीजी को किसी तरह चकमा दे देते थे, मगर अब तो वो कभी भी सार्वजनिक हो सकते हैं। कई बार काम बीच में ही छोड़कर वो उनके घर पहुंच जाते थे, लेकिन अब तो नजर रहेगी, इसके लिए वो बेचारा सुबह से व्याकुल है और कई बार उसने अपने फोन की घंटियां मेरी ओर कई बार घुमाई। सुबह तो फोन नहीं उठाया, लेकिन जब दोपहर में उससे बात हुई तो वह काफी घबराया हुआ था और उसने कहा कि देखो भाई मैं सरकारी एजेंसियां फोन टेप कर रही हैं, मैंने जवाब दिया तो क्या किया जाए, मैं तो व्याकुल हो गया हूं, क्यांे...अरे यार तुम्हारी दूसरी भाभी...नहीं यार ये बातें अब फोन पर नहीं कर सकता हूं, कहीं कोई सुन रहा है, इसका डर मन को अंधेरी खाई में किसी रस्सी द्वारा उलटे पांव लटका रहा है, मेरे देास्त ने तो अपनी व्यथा मुझे बता दी, तभी उससे फोन रखकर मैं अपनी सिगरेट उठा ही रहा था कि मेरी बीवी का फोन आ गया। अब क्या था, मुझे दोस्त की बात याद आ गई और बीवी को किसी भी प्रकार की प्यार भरी बातें करने से पहले ही मैंने रोक दिया, मैंने उससे कहा कि हम ष्षाम को बात करते हैं।
इस बात पर वह नाराज हो उठी, मगर उसकी नाराजगी ष्षाम को दूर हो जाएगी, लेकिन कम से कम इस बात की खुषी तो है कि समय रहते हमें पता तो चल गया कि फोन पर आषिकी न झाड़ी जाए तो ही बेहतर होगा।

Monday, April 19, 2010

मोदी ने मार डाला


इस कुर्बानी नहीं, लेकिन आत्महत्या कहना ही बेहतर होगा, जिस तरह विचारों की वल्गाओं को वे अपने ट्विटर के माध्यम से कभी कसते थे तो कभी उन्हें ढील देते थे। इस तरह सालों तक राजनयिक की नाबाद पारी खेलने वाले थरूर के विचारों की आग उन्हें ले डूबी। हर बात में विवादों के पर्याय बने मि. थरूर जब से इंडिया में सियासत की डोर लेकर चल रहे थे तो उन्होंने हर मौके पर उसे हिलते-डुलते ही पाया। फिर चाहे सरकारी खर्च में आलीशान होटल का मामला हो या फिर विमान की पिछले भाग में बैठने वालों को कैटल क्लास कहा हो। फिर ट्विटर के नए-नए रहस्यों से इन्होंने हर बार एक नए विवादों को जन्म दिया। मामला कुछ शांत नहीं हुआ, ठीक उसी तरह जिस तरह किसी वीर को युद्धभूमि में पराक्रम दिखाए बिना रोक नहीं सकते थे, उसी प्रकार उन्हें व्यवहार को भी बदला नहीं जा सकता था। इन सब के बाद वे अपनी नई भूमिका में आए, उन्होंने सियासत से खेल के मैदान में बैटिंग करने उतरे। उम्र के इस पड़ाव में मगर वो यह भूल गए कि जब क्रिकेट के मैदान में उतरा जाता है, तो पूरी सावधानी के तहत, अन्यथा यहां आने वाली बाउंसरों से बल्लेबाज घायल हो जाता है। यही हुआ, आईपीएल के सबसे बड़े और मंझे हुए खिलाड़ी मोदी ने जब बाउंसर फेकी तो थरूर उसे संभाल नहीं पाए और हिट विकेट होकर स्वयं का विकेट गवां बैठे। उनकी पारी का अंत हो गया। मैदान में एक बार कोई आउट हो और एंपायर ने उसे करार दे दिया तो इस फैसले को कोई नहीं बदल सकता है, वही हुआ इनके साथ। अपने व्यवहार के कारण सोनिया के लिए परेशानी का सबब बन चुके थरूर से उन्होंने तौबा कर ली। इस तरह थरूर एपिसोड तो समाप्त हो गया, लेकिन मोदी एपिसोड अभी बाकी है। हालांकि आईपीएल की यह पिक्चर अभी खत्म नहीं हुई है, अभी क्लाइमेक्स की उम्मीद हम कर सकते हैं, क्योंकि टूर्नामेंट खत्म होने के बाद निश्चय ही ललित ने जो ललकार भरी थी, उससे थरूर तो थर्रा उठे पर बीसीसीआई कुछ अहम फैसले जरूर ले सकता है। इसलिए अभी इसे खेल में कौन जीतेगा और कौन हारेगा, इस पर सिर्फ कयास के अश्व ही दौड़ाए जा सकते हैं, इस पर महल नहीं बनाए जा सकते हैं, क्योंकि यह जमीन पोली है। रही बात राजनीति की तो उन्होंने इस्तीफा देकर सोनिया की टीम को राहत की सांस दी है, क्योंकि तगड़े विपक्ष ने संसद की कार्रवाई भंग कर डॉ. मनमोहन और मैडम सोनिया के लिए मुश्किल भरे हालात पैदा कर दिए थे, ऐसे में अगर वे कठोर निर्णय न लेते तो आगे कांटों भरे रास्ते बन सकते थे। इस पूरे घटनाक्रम में दो बातें सामने आई हैं, पहली तो यह कि किस तरह अपने पद का लाभ लेकर अपने वालों को उपकृत किया जाता है, वहीं दूसरी बात यह कि आखिर देश की निश्चछल सरिता को हमेशा भ्रष्टाचार का केमिकल हमेशा जहरीला करने पर तुला रहता है। तो दोष कहां है और इसे कैसे दूर किया जाए, इस पर न तो किसी का ध्यान जा रहा है और न ही कोई इस पर चिंतित नजर आ रहा है। हर कोई झोलियां भरने में तुला है। देश के क्या हालात हो गए हैं, यहां की जनता किन परिस्थितियों में जी रही है, इससे किसी को क्या लेना देना। बड़े बादशाहोें और मठाधिसों ने सरकार को अपनी माशुका और राजनीति को अपनी रखैल बनाकर रखा है। वहीं यह रखैल कब किसको ले डूबेगी यह भी निर्धारित नहीं है, क्योंकि सदियों से औरत का चरित्र और मर्द का मन कोई नहीं जान पाया है, फिर रखैल का तो काम ही यही होता है। यहां दल्लों की भरमार है, जो न्याय और सत्य का सौदा करने में भिड़े हैं। इस पूरे प्रकरण ने माहौल तो बनाया है, साथ ही जनता का विश्वास भी डिगाया है, क्योंकि बात जब क्रिकेट की आती है तो पूरा देश भावना की उस चरम गिरफ्त में होता है, जिस गिरफ्त में कर्ण का सूर्य को अर्घ्य देना रहता था, लेकिन वहां पवित्रता और श्रद्धा का बंधन होता है, यहां भावनाओं का और संवेदनशीलता का, पर इन्हें इन धूर्त थरूर और मोदी सहित कई लोग लोलुपता और लालसा के चक्कर में गाहे-बगाहे बेचते रहते हैं। अब इस एपिसोड में अगर और कुछ नए विवादों का जन्म होता है तो इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि यहां माल और मालामाल सहित सारे बड़े बादशाह उपस्थित हैं, किस ओर पलटी लेंगे, उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।

Sunday, April 18, 2010

राजनीति का अगला सम्राट कौन?


सपनों के पंखों पर सवार होकर हर किसी के इरादों ऊंचे आकाश् में उड़ने की लालसा पाले बैठा है। हर कोई विजयी रथ पर सवार होना चाहता है और इस देश के सुंदर रथ पर सवारी करना चाहता है। मजबूत इरादे, बड़े-बड़े घरौंदे वाले लोग राजनीति के इस खेल में अपने आप को श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ की की कतार में खड़ा करने में लगा है, लेकिन राजनीति की उठापटक में कौन 19 है और कौन 20, इसका तो निर्णय जनता के अधिकार में है। मगर जनता की बुद्धि को भी कई बार प्रभावित करने की कोशिशें इन नकली नेताओं की रहती है। साजिश का ये वो कारनामा कर दिखाते हैं, कि आम आदमी की बुद्धि तो वहां तक पहुंच ही नहीं पाती है। अब सवाल यह है कि आखिर 15वीं लोकसभा में तो यूपीए को विजय होने का गौरव मिला, वह भी अपनी शर्तों के आधार पर, लेकिन जहां तक बात यह है कि अगली लोकसभा में देश की दशा और दिशा क्या होगी। इसके लिए मंथन की आवश्यकता है। क्योंकि देश को विकास के रथ पर दौड़ाने का वादा करने वाली सरकार कहीं न कहीं स्वयं को उस कसौटी पर उतार नहीं पा रही है, जितनी उससे उम्मीदें की गई थी। हां यह सच है कि सोनिया निर्मित सरकार ने हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ प्रतिष्ठा अवश्य दिलाई है, लेकिन यह उन लोगों के लिए व्यर्थ ही है, जो दो जून की रोटी के लिए मोहताज रहते हैं, जो उठते तो भूखे पेट हैं और सोते भी उसी तरह हैं, आखिर उन्हें देश की विकास दर या आर्थिक लाभों के लिए दी जाने वाली सेवाओं से क्या लाभ। ऊपर से जिस तरह महंगाई ने समुद्री बिफरा रूप दिखाया है, उसने उस गरीब के पेट से लेकर पांव तक की हड्डियों को दिखा दिया है। इसलिए अगर सही बिंदुओं पर इस सरकार का मूल्यांकन किया जाए तो इसका रिपोर्ट कार्ड 10 में से 6 के आसपास ही बनता है, तो चलो इस सरकार को हम खारिज कर देते हैं, लेकिन रहा सवाल अगर इसे खारिज कर दिया तो फिर अगला कौन? आर्थात् जिस तरह से बिना पानी के प्यास, सांसों के बिना जिंदगी, नदी के बिना नांव, कॉपी के बिना पेन असहाय और व्यर्थ रहते हैं, उसी प्रकार देश की हालत है, क्योंकि यहां पर अगर दूसरे विकल्प की बात की जाए तो वह दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस में एक राजकुमार जो देश की उम्मीदों के पंखों पर सवार है, उससे बड़ी आशाएं हैं, खासकर गरीबों को, हालांकि वह कितना सफल होता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन सवाल यह है कि अगर मौजूदा सरकार अपना शत-प्रतिशत नहीं दे पा रही है तो दूसरे विकल्प का रास्ता साफ होना चाहिए, अन्यथा कुंठा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिस प्रकार एक वीर को जब उसके पुरुषार्थ के अनुसार मौका नहीं मिले तो वह कुंठित मन हो जाता है, वही स्थिति देश की हो गई है, यहां पर न तो कोई पक्ष है और न ही कोई विपक्ष। हर कोई सिकंदर बनने की होड़ में लगा है, सम्राटत्व का ताज रखने की कोशिश में जोड़-तोड़ कर रहा है, ऐसी स्थिति में में किस पार्टी और किस नेता पर विश्वास किया जाए, या फिर देश की राजनीति को उसी के हाल पर छोड़ दिया जाए, मगर ऐसा कर दिया गया तो इस देश को तबाही की गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता है। यहां भ्रष्टाचार की नदियां बह रही हैं और उसमें बड़े-बड़े मगरमच्छ भी गोते लगा रहे हैं, ऐसे में मासूमियत के साथ आम जनता फंसी हुई है, वह अगर इस नदी से बच भी जाए तो इन नदियों में मौजूद जिंदा मौत से आखिर कैसे बच पाएंगे। अब ऐसे में देश के सामने बड़ी विकट समस्या आ गई है, क्योंकि यहां पर कोई भी राजनीति का अगला सम्राट नजर नहीं आता है। हर कोई टुकड़े-टुकड़े में पार्टियों को जोड़कर राजनीति के दांव-पेंच खेलने के लिए तैयार भी है और मजबूर में।
दूर-दूर तक ऐसा सम्राट कोई नहीं नजर आता, जिसे कहा जा सके कि हां यह है राजनीति की सच्ची मिसाल, उसका सच्चा सम्राट।

Thursday, April 15, 2010

आतंकवाद पर भारी ग्रीन हंटर


मुंबई हमले के बाद अगर छोटे-मोटे हमलों को छोड़ दें तो निश्चय ही आतंकवाद पर थोड़ा काबू पाया जा सका है। भले ही इसकी दहशत हमारे दिलों में अभी भी बरकरार है, लेकिन इसे अब उतनी भयावहता से अंजाम नहीं दिया जा रहा है, इसके लिए सरकार मुस्करा भी रही है, मगर इस समस्या से बढ़कर एक नई समस्या आ गई है। यह हमारी घरेलू समस्या ही है, इसे ग्रीन हंटर का नाम दिया जा रहा है। आर्थात् नक्सलवाद। घरेलू हालातों द्वारा पैदा हुई इन परिस्थितियों से जन्मा यह रोग दहशत की नई दास्तान लिखने में जुटा है, देशभर के सामने अचानक से आई इस समस्या के लिए भारत के पास कोई रणनीति नहीं है। राज्य इसकी गेंद केंद्र के पाले में डाल रहा है तो केंद्र इसे राज्य में सरका रहा है। आखिर समस्या की जड़ कोई नहीं पहचान पा रहा है और जबरिया रूप से भयानों का भयंकर मायाजाल कसा जा रहा है। जहां पी चिदंबरम नक्सलवाद की खिलाफत करने में जुटे हैं, लेकिन उनके ये प्रयास सिर्फ कैमरे के सामने हैं, वहीं दूसरे नेता उन्हें आड़े हाथों में ले रहे हैं। मगर चिदंबरम की जो नीति है, उसे पूरी तरह से खारिज मान लेना चाहिए, अब केंद्र आखिर कौन सी नीति में जुटा है कोई नहीं जानता। जिस तरह से दंतेवाड़ा पर उन्होंने जवाब दिया है, उसने भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर रख दी है। बात यही नहीं थमती है , क्योंकि इन ग्रीन हंटरों ने बकायदा प्रेस विज्ञपप्ति से कहा कि हम मौजूद हैं, हम मजबूत हैं ... उनका यह कहना निश्चय ही चिंता का विषय है। भले ही लाल गढ़ की लड़ाई सरकार ने जीत ली हो, लेकिन अभी तक नक्सली अजगर हजारों जानें को निगल चुका है, इसके बावजूद सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है, वह दूसरे मुद्दों को तवज्जो देने में जुटी है, इस पर नक चढ़ मंत्री शशि थरूर जैसे कई विवादों को तूल दिया जा रहा है, यह राजनीति की विडंबना है कि यहां इस तरह की कारगुजारियोें को बर्दाश्त किया जा रहा है। इस मौके पर ऐसे नेताओं को तो तुरंत बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए, साथ ही इस तरह की कोई भी हरकत करे तो उसे देशद्रोह की श्रेणी में खड़ाकर सजा देनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जा सकता है तो फिर देश की दशा नहीं सुधर सकती है, क्योंकि यहां एक से बढ़कर एक लोग बैठे हैं, भ्रष्टाचार की गंगा को आगे ले जाने में। फिलहाल तो इस ग्रीन हंटर के आॅपरेशन को इतना बुलंद और चाकचौबंध तरीके से करने की जरूरत है, क्योंकि हमला पीठ पीछे से नहीं किया जा रहा है, बल्कि सामने आकर हो रहा है। खुलेआम पुलिस पर हमला बोला जा रहा है, जिसे एक विकट रूप मानना होगा, क्योंकि उनके इरादे इतने बुलंद हो चुके हैं कि अब वे रक्षा करने वालों को भी नहीं छोड़रहे हैं, तो आखिर वे उन मासूमों को कैसे बख्शेंगे, जिनके दिलों में डंडे का खौफ रहता है। यहां की समस्या को इतना आसान न लेते हुए पहले इस समस्या या कहें कि इस बीमारी के कीटाणु को पहचान कर उसके लिए टीका बनाना होगा, क्योंकि यहां समुंदर का पानी तो है, लेकिन वह खारा है, जो किसी काम का नहीं होता है। सरकारी नीतियां भी कुछ इसी तरह की चल रही हैं। इसलिए उन्हें बदलकर कुछ नए प्रयोग करने की आवश्यकता है, तभी इसका कुछ हो सकता है, अन्यथा यह समस्या अभी भारत के कुछ राज्यों में ही है और आने वाले दिनों में यह पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगी, तब न तो 10 जनपथ सुरक्षित रहेगी और न ही संसद। अब तक चैन से बैठने वाले नेताओं और जिम्मेदार लोगों अभी जाग जाओ, कहीं देर न हो जाए, तब पछाताने से कुछ नहीं होगा।

Wednesday, April 14, 2010

शोएब हैदराबादी



मियां अब तो शोएब हैदराबादी हो गए हैं, कुछ हो न हो, लेकिन उन्होंने सानिया निकाह कर जो प्रसिद्धि मिली है, उतनी तो वे अगर पाकिस्तान क्रिकेट में 300 रन भी एक पारी में बना देते तो नहीें मिलती। अब तो वे भारत के दामाद जी हो गए हैं, भले ही उनके देश से हमारे देश के रिश्ते बेहतर न हो, लेकिन अब तो उनका सम्मान करना हमारी मजबूरी भी है और हमारा कर्त्तव्य भी। जिस तरह बेटी के पति को ससुराल में सम्मान दिया जाता है, उतना सम्मान भले ही देने में हमारा देश अंदरूनी तौर पर हिचकिचाए, मगर सामने तो प्रदर्शन करना ही होगा। वहीं सानिया के इस बेदर्द फैसले ने हमारे युवराजों का दिल पूरी तरह से तोड़ दिया है। जिन लोगों ने इनसे कभी दिल्लगी की थी, आज वह दिल की लगी हो गई है। अब तो ये सभी इश्क में हारे आशिकों की तरह उन्हें बस दुआ ही करेंगे, ताकि दूसरे मुल्क में भी जाकर उनकी महबूबा आबाद रहे, खुशहाल रहे। बात दिल से निकलकर दिमाग की करें तो यहां पर क्या शोएब अपनी बीवी को कुछ महीनों बाद भी वही इज्जत देंगे, बस उनसे इतनी इंतजा है कि वो सानिया का ख्याल रखें, मगर पाकिस्तान के रहने वाले और अभी अभी शोएब मलिक से शोएब हैदराबादी बने मलिक के दिल की मल्लिका ने अपने शौहर को बुलंदी पर पहुंचा दिया है। शोएब भइया आप तो पहले भी इंडिया में अपनी ससुराल बसा चुके हैं, क्या आपको इंडिया की जारा ही ले जाना भाता है। हम तो सिर्फ फिल्मों में ही आपकी जारा को ले जाते हैं, मियां आप तो हकीकत में हमारी जारा लेकर चले जाते हैं। आप भी कितने खुदकिस्मत थे कि हमारे यहां आप की शादी को लेकर इतनी हो-हल्ला मची कि इतना तो मुंबई पर आतंकी घटना को लेकर भी नहीं मचती है। खैर, आपका तो अपके दिल की दिलरूबा मिल गई, पर अब इसके आगे क्या वही हालात पैदा होंगे, जिनमें पाकिस्तान और हिंदुस्तान के रिश्तों की तस्वीर नजर आती है। हां, इतना तो तय है कि अगर आप दोनों सुकून से अपनी जिंदगी बिता लेते हैं तो फिर हम यह मानकर चल सकते हैें, कि दोनों देश व्यर्थ में ही लड़ रहे हैं और सियासत के लोग चटखारे ले रहे हैं, लेकिन आप के मिले हुए दिल अगर टूटते हैं तो फिर कोई जवाब नहीं रहेगा। फिलहाल तो आप का रिश्ता उन लोगों से भी जुड़ गया है, जो कहीं न कहीं सानिया को अपने दिलों में जगह देते हैैं। अब तो पूरा मुल्क आपको मुबारकबाद देते नहीं थक रहा है, और हम भी आपको आपके रिशेप्शन के लिए बधाई प्रेषित कर रहे हैं। अब आपकी महफिल में चार चांद लगाने के लिए कई हस्तियां आपको बधाई दे रही हैं, पर सानिया जिन लोगों ने आपको दिलों पर बैठाया, उनकी आपसे यह इंतजा है कि मैडम कम से कम अपने आशिकों के लिए कुछ तो कह दो, अभी तक आपका कठोर रुख देखकर तो यही लग रहा है कि मलिक की मलिका बनने के बाद तो आप अपनों को भुला बैठी हैं, हां प्यार बड़ा ही लोभी होता है, इसमें कोई राय नहीं होती है, मगर जाने से पहले इन आंसू बहा रहे युवराजों से प्यार दो मीठे बोल जरूर बोलना। अब तो हैदराबादी शोएब, पाकिस्तान जाने की तैयारी करने में भी जुट गए हैं, आपका आगे का जीवन खुशियों भरा रहे, बस खुदा से यही दुआ करना चाहेंगे।

बड़े लफडे हैं इस खेल में



आईपीएल हमेशा से किसी न किसी कारण से चर्चा का विषय रहा है, फिर चाहे महंगे खिलाड़ियों की खरीदी से या फिर कभी-कभी मैच पहले से डिसाइड होने के। क्रिकेट का यह नया लीग बूढ़ों की बादशाहत से लोगों को आकर्षित करता रहा है तो वह कई बार नए टैलेंट को उभार कर देश के पटल सहित विश्व क्रिकेट पटल पर सामने आया। वहीं सेलिब्रिटीज का जुड़ना और ग्लैमर का तड़का भी सभी को अपनी ओर खींचता रहा है। चीयर्स लीडर पर भी काफी हो हो-हल्ला मचा, हर बार कुछ न कुछ इस खेल में घटित हुआ है। यहां हरभजन और श्रीसंत का विवाद तो विदेशों और देशी खिलाड़ियों में खेल भावना सभी को इस खेल से दिल्लगी लगाने पर मजबूर करती आई है। पहले संस्करण में देश की धरती पर धूम मचाने वाला यह खेल दूसरे संस्करण में विदेशी धरती पर पहुंच गया, लेकिन तीसरी बार तो इसने फिर अपनी जमीं पर धूम मचा दी। अभी तक सब ठीक हुआ, दो टीमें बढ़ी, तो इन दो राज्यों कोची और पुणे के लोगों में खुशी का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा था, लेकिन अभी जो खबरें सामने आ रही हैं, उसने एक बार फिर आईपीएल को इंडियन पंगा लीग की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। इसमें मोदी और शशि थरुर सामने आ रहे हैं, इन दोनों की भूमिका पैसों को लेकर काफी संदिग्ध नजर आ रही है। रोन्देवो के अलावा एक महिला के इसमें पार्टिशिपेसन की बात हो रही है, जो शशि की मित्र के रूप में नजर आ रही है। अब मोदी और शशि में अचानक मतभेद क्यों पैदा हुए हैं, इसके बारे में कोई खबर नहीं है, लेकिन कहीं न कही यह पूरा मामला पैसे के विवाद को लेकर है। यहां सिफारिशों के चलते मोदी की लीग को घाटा उठाना पड़ रहा है आर्थात् करोड़ों रुपए एक ऐसी महिला को जाएगा, जो इसमें एक पैसा भी इन्वॉल्व नहीं कर रही है। हालांकि बीसीसीआई के साथ ही आईसीसी भी इस विवाद में कूद पड़ा है। साथ ही राजस्थान भी इसमें आ गया है, ऐसी स्थिति मेें शशि का कुछ हो न हो, लेकिन मोदी पर गाज गिरती जरूर नजर आ रही है। मोदी ने ट्विटर पर शशि के ट्विटर का जवाब देखकर राजनीति से लेकर क्रिकेट के गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। पूरे दिन मोदी बनाम शशि का मामला परवान चढ़ता नजर आया, हालांकि पूरे विवाद का निपटारा तभी खत्म होगा जब पूरी स्थिति स्पष्ट होगी, लेकिन यहां पर अगर कोई पहाड़ के नीचे दबकर मरेगा तो वह है मोदी। मोदी खतरे में नजर आ रहे हैं, आईपीएल जैसे-जैैसे अपनी आखिरी अवस्था में पहुंच रहा है, उसी तरह विवाद भी गर्मा रहे हैं। तीसरा संस्करण कोई भी जीते, लेकिन यहां इसके मास्टर मोदी हारते नजर आएंगे। उनकी वेदना वे ही जाने, लेकिन गौर करें तो क्रिकेट के इस नए सम्राज्य में पंगा पूरी तरह से व्याप्त हो गया है। दर्शकों से जबरदस्त पैसा वसूला जा रहा है। करोड़ों कमाए जा रहे हैं, लेकिन खेल के साथ विवाद अगर पनपते हैें तो इसका खामियाजा कहीं न कहीं क्रिकेट के इस नायाब खेल को भुगतना पड़ सकता है। इस पैसा उगाऊ क्रिकेट अगर यही हालात बने रहे तो आगे आने वाले दिनों में पैसा नहीं बरसेगा, क्योंकि यह क्रिकेट फिर दर्शकों को तरसेगा।

Sunday, April 11, 2010

...तो क्यों मौत स्वीकारते हैं


ईश्वर की सबसे खूबसूरत कृति है मानव, आखिर इस सत्य से हम हमेशा से ज्ञात रहे हैं। हमने स्वयं की जिंदगी पर हमेशा गर्व करना सीखा है, दूसरों ने भी हमें आशावान बनने की सलाह दी है, हर तरफ खुशियों भरा संसार है, फिर दु:ख की ऐसी कौन सी आग होती है, जिसमें हम जीवन को जिंदा जलाने के लिए तत्पर हो जाते हैं। आखिर वह कौन सी मजबूरी हो जाती है, जो इंसान को खुद का कातिल बनाने से भी नहीं हिचकिचाती। अगर मनोस्थिति पर गौर करें तो पहली नजर में सिर्फ यही सवाल गूंजता है कि अपनी जान के दुश्मन केवल वे ही लोग होते हैं जो या तो सनकी हो या फिर दिमाग से थोड़े फिरे। जिन्हें जिंदगी से कोई प्यार नहीं, लेकिन मन तो तब क्षुब्ध हो जाता है, जब समाज के वे लोग जो समझदारों की श्रेणी में आते हैं, वो अपनी जिंदगी की ज्योत को जलने नहीं देते। आखिर समाज का यह कौन सा रूप है, जिस पर हम विजय नहीं कर पा रहे हैं। जिंदगी को यूं ही जाया किया जा रहा है, लोगों की मानसिक स्थिति इतनी दुर्बल हो गई है कि वे जरा सी बात पर जिंदगी गंवाने से भी नहीं हिचकिचाते हैं। एक समय खबरें आती थी कि पूरे परिवार ने एक साथ आत्महत्या की, तब उनकी मजबूरी यह होती थी कि वो जीवन जीने में असमर्थ थे। वे इतने गरीब थे कि जीवन समाप्त करना ही उनका छुटकारा था, मगर जब यह बीमारी उस वर्ग तक आ गई, जिसके पास दौलत भी है और शौहरत भी है, तो वह क्यों मौत को गले लगा लेती हैं। यह सवाल पुलिस से लेकर परिजन और डॉक्टरों के सामने एक चुनौती बनकर खड़ा हुआ है और वे इससे बचने के कोई व्यापक रिजल्ट नहीं निकाल पा रहे हैं। यहां मकसद यह नहीं है कि कितने लोगों ने फांसी लगाई या फिर आत्महत्या की, बल्कि उद्देश्य यह है कि जीवन के इस अनमोल मोती को यूं ही क्यों फेंका जा रहा है। जब कुदरत ने इतनी प्यारी जिंदगी दी है तो उसे हंसते हुए क्यों न गुजारी जाए। यह माना कि हर किसी की जिंदगी में जहां खुशियां हैं तो गम भी साए की तरह मौजूद रहते हैं, तो फिर जब खुशियों को हम हंसते हुए स्वीकारते हैं तो आखिर गमों को क्यों गले नहीं लगाते। यह भी तो प्रकृति के जीवन का एक हिस्सा है। जरा आंख बंद कर एक बार उस नजरिए से इस संसार को देखने की कोशिश तो करो, दुनिया हसीन बन जाएगी। फिर न तो कोई मुश्किल आएगी और न ही कोई परेशानी। तब आपको जिंदगी से प्यार हो जाएगा और दूसरों को भी प्यार करना सिखा देंगे। यह जीवन जीने का ढंग होना चाहिए। समाज को एक सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता है, जिसमें हर कोई इस जीवन को बेहतरी के साथ जिए। तो क्यों न आज हम एक बार इस जिंदगी को कुदरत का तोहफा मानकर उसे अलग दिशा देनी चाहिए। समाज के सामने आई इस सबसे बड़ी बीमारी को जल्द से जल्द दूर करने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास किए जाने चाहिए। साथ ही यहां परिवार की भूमिका सबसे अधिक और महत्वपूर्ण है, सामूहिक और संयुक्त परिवार को आपसी संवेदना का ताना-बाना कुछ इस तरह से बुनना होगा कि संबंधों का सुरक्षा कवच जीवन लीला समाप्ति के विचार को कभी जीतने न दे।

Tuesday, April 6, 2010

सानिया तुम सचमुच चली जाओगी


सानिया तुम सचमुच चली जाओगी
ल्गातार आ रही खबरों से दिल टूट रहा है। जैसे-जैसे सानिया ष्षोएब के साथ नजर आती हैं, मन के उूपर सांप लोट जाता है। आखिर दिल का मामला है, जो भला अपनी सपनों की रानी को किसी और की बाहों में कैसे देख सकते हैं। अभी तक पूरे वाकिये पर निगाह डालें तो सामने आ रहा है, कि सानिया भले ही ष्षोएब की हो रही हैं, लेकिन उनसे मुहब्बत करने वाले तो अपने दिलों का दर्द लिए फिर रहे हैं। पाक से ष्षोएब आ तो गए हैं, लेकिन हर जवां दिल चाहता है कि वे यहां से उनकी महबूबा को न ले जाएं। सानिया तो उन्हें अपना हमसफर मान चुकी हैं, तभी तो किसी की सुन नहीं रही, लेकिन सानिया जी ष्षोएब धोखेबाज है, वह कभी भी तुम्हारी जिंदगी से खिलवाड़ कर सकता है, इस बात का ष्षायद तुम्हें इल्म नहीं है, लेकिन तुमसे मुहब्बत करने वाले तो तुम्हारी फिक्र रखते हैं। अब रही बात ष्षोएब के साथ तुम्हारे खुष रहने की तो यह सिर्फ चार दिनों की चांदनी ही रहने वाला है और फिर वही काली रात। ये ष्षोएब हमारी मुहब्बत को सरहद पार ले जा रहा है, तो आखिर कैसे हम बचाएं। उसे बहुत समझाया, बहुत मनाया, हाथ पकड़कर रोका, लेकिन वो बेवफाई पर उतारू थी, और उसने दिलों पर तलवारें चलाकर कत्लेआम मचाया। तब भी यह दिल है कि मानता नहीं और यह उसे ही प्यार करने में लगा हुआ है। ये कैसी मुहब्बत है समझ नहीं आ रही है, क्योंकि इष्क में तो यह सुना था कि लोग बर्बाद हो जाते हैं, उनका प्यार सलामत रहे और वह खुष रहे, इसके लिए अपनी जिंदगी को जहन्नुम बनाने से भी नहीं कतराते हैं। मगर यहां तो उल्टी गंगा ही बह रही है, यहां तो कैसे भी सानिया को इस ष्षादी को रोकने के लिए तिकड़म हो रहे हैं, मगर बेदर्द सानिया नहीं मान रही हैं। वो तो मलिक के दिल की मालकिन बनी हैं और मलिक को अपने दिल का मालिक बनाएं हैं, इसके आर-पार उन्हें कुछ न तो दिखाई दे रहा है और न ही वे देखना चाहती हैं। इस समय कोई उन्हें कुछ समझाने की कोषिष भी करता है तो वे उसे अपना जानी दुष्मन मान रही हैं। उन्हें लग रहा है कि आखिर क्यों ये सरहदें उनकी मुहब्बत के रास्तें में अंगार बिछाए बैठी हैं। खैर उनका कहना भी जायज है, मगर मैडम यहां आपकी भलाई के लिए सभी बैठे हैं और वो चाह रहे हैं कि आप आपकी पूरी जिंदगी में कभी भी एक आंसू न गिराए, मगर जो रास्ता आपने अख्तियार किया है, उससे यह जान नहीं पड़ता है। इसलिए आप अभी संभल जाओ तो बेहतर होगा, अन्यथा खूब आंसू बहेंगे और फिर कोई कंधा नहीं मिलेगा जिस पर सिर रखकर तुम रो सकोगी।

. हमारा वीर जारा ला सकता है,उनका नहीं


मुल्क पार मुहब्बत की अड़चनें
. हमारे देष का वीर पाकिस्तान से जारा तो ला सकता है, लेकिन पाकिस्तान का कोई मुहम्मद हमारी मेहंदी को ले जाए तो यह हमें बर्दाष्त नहीं होता है
सानिया को षायद अपने प्यार को पाने में उतनी तकलीफें आ रही है, जितनी उन्हें सोहराब मिर्जा से सगाई टूटने पर नहीं आई होंगी। दरअसल इस बार उनकी मुहब्बत का दुष्मन यह मुल्क ही बन गया है। क्योंकि यहां बात धर्म की नहीं बल्कि मुल्क की आ गई है। स्वाभिमान की आ गई है, इज्जत की आ गई है, मर्दत्व की आ गई है। हमारे देष का वीर पाकिस्तान जाकर जारा तो ला सकता है, लेकिन वहां का वीर हमारे देष की जारा लेकर जाए यह हमें कतई मंजूर नहीं है। फिर चाहे तारा सकीना को ले या फिर कई और हीरों पाक की प्रेमिका से मुहब्बत फरमाएं और उन्हें हराकर अपने घर लेकर आ जाएं। यही हो सकता है, अगर इसके विपरीत नदी या हवा बहने की कोषिष करती है, तो उसमें सैकड़ों अड़चनें खड़े करने के लिए तैयार रहते हैं। बाल ठाकरे से लेकर हर वो ष्षख्स जो सुलतानी बुद्धि या फिर खुद को पाक से बड़ा मानता है, वह यही कहेगा कि सानिया आखिर कैसे पाकिस्तान जा सकती है। साथ ही यह देष के मर्दत्व पर भी एक प्रहार होगा, क्या देष के किसी मर्द में इतनी ताकत नहीं है कि वो सानिया का दिल जीत सके। आखिर वह ष्षोएब कैसे हमारे घर की आबू्र को भगा कर ले जा सकता है। यहां बात घर-घर से ष्षुरू होने वाली है, क्योंकि यहां कोई मुहब्बत का दुष्मन नहीं है, बल्कि अपने गर्व की रक्षा करना चाह रहा है। अगर सानिया उस देष चली गई तो यही होगा कि पाक से कोई नौजवान हमारे देष के सैकड़ों युवाओं को पछाड़ते हुए हीरोइन को उड़ा ले गया। यहां एक और फिल्म बन जाएगी, जिसमें सानिया-षोएब का उल्लेख होगा, हां यह है कि यह फिल्म पाकिस्तान में अधिक मषहूर होगी, यहां तो उसे सिनेमाघरों में ही जला दिया जाएगा या फिर कोई इस पर कार्य करने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। हिना फिल्म की हिना हो या फिर हिंदुस्तान की कसम की हीरोइन, हर बार हमारा हीरो रहा है और वहां की लड़की रही है। आर्थात् भारत में लड़के पक्ष को विजेता माना जाता है और उनके यहां से लड़की लाएं, मतलब उन पर फतेह कर वापस आए हो। इसलिए हो-हल्ला नहीं मचता, लेकिन इस बार तो हमारे घर की दुल्हन है और वहां का दूल्हा। साथ ही यह दुल्हन कोई आम दुल्हन नहीं है, बल्कि जवां दिलों की धड़कन है, तो कैसे कोई हमारी धड़कनों को चुुरा सकता है। आखिर हमारा वीर ही पाक से जारा लाएगा, हमारे घर से मेहंदी को कोई मुहम्मद नहीं ले जा पाएगा, यह हमने नियम बना दिया है और इसकी रक्षा के लिए हम युद्ध के स्तर तक भी जा सकते हैं। इसलिए इन वीरा-जारा के मसले पर इतना बवाल मचाया जा रहा है, मगर आगे क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन जारा...सानिया जी थोड़ा सतर्क जरूर रहिएगा।