Thursday, March 3, 2011

जुबां की वल्गाएं थामों


जुबान फिसलना आम बात है, लेकिन फिसलने के बाद पश्चाताप न करना, यह बहुत ही शर्मनाक कृत्य हो जाता है। माना कि गांडिव से निकला हुआ बाण और जिह्वा से निकले हुए शब्दों को वापस नहीं लिया जा सकता है, लेकिन माफी एक वह चाबी है जो हर ताले में लग जाती है, कम से कम 50 प्रतिशत माफी की गुंजाइश तो रहती ही है। यह हमेशा से चला आ रहा है कि बड़े बदतमीज बिना तोले मोले बोल देते हैं और इसके बाद उसकी भीषण प्रतिक्रिया होेने पर उन्हें पछतावा होता है। हां कई बार कुछ लोग हरकत में आने के लिए ऐसा बोल देते हैं, लेकिन यह बहुत कम ही होता है। फिलहाल जो सबसे बड़ा सवाल है कि प्रदेश के एक बड़े मंत्री बोल रहे हैं कि जिन किसानों ने आत्महत्या की है, वो या तो नशेड़ी थे या फिर पागल। गौर कीजिए इस तरह के बयान से उस किसान परिवार पर क्या बीती होगी, जिसने अपना कमाऊ पूत खोया होगा। उस बेटे पर क्या गुजरी होगी जो अपने पिता को अपना हीरो मानता था, लेकिन प्रदेश की सरकार ने तो ऐसा बयान देकर उन्हें ही दोषी ठहरा दिया है। अनजाने ही सही, यह एक प्रकार की अवमानना की श्रेणी में आना चाहिए। और अगर आप अपनी जुबान पर काबू नहीं पा सकते हैं तो इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है। वहीं पीएम साहब जो सिर्फ एक पुतला नजर आते हैं , उन्होंने बजट पारित होने के बाद बयान दे डाला कि हर किसी को तो खुश नहीं किया जा सकता है। आपका कहना ठीक है, लेकिन सार्वजनिक रूप से इस तरह के बयान देकर आप साबित क्या करना चाहते हैं। बयानों और जुबां फिसलने की यह कोई नई घटना नहीं है। कुछ दिनों पहले जयपुर के एक ग्राम पंचायत के नेता ने प्रतिभा पाटिल के विरुद्ध कुछ कह दिया था, अंजाम उनके सामने था। पार्टी ने उनसे इस्तीफा ले लिया। सदियों से यह चला आ रहा है, कभी बड़े नेता कुछ उल-जलूल बोल जाते हैं तो कभी छोटे नेताओं की जुबान फिसल जाती है। बातों के इस बवंडर को क्रिएट करना ही लोगों की आदत सी बन गई है। फिर उन्हें यह भी परवाह नहीं रहती है कि आखिर वो कर क्या रहे हैं। किसके बारे में क्या बोल रहे हैं। संसद में पहुंचकर वहां की मर्यादा को कई बार भंग कर दिया जाता है। हां, कुछ दिनों पहले तो बहुत ही हद हो गई थी जब केएस सुदर्शन ने सोनिया को हरामी कहा था। उन्होंने न जाने कितने और बयान दे दिए थे। बूढ़े बाबा ने जो जोशिले बयान बके थे, वह कहीं से भी उनकी गरिमा को शोभित नहीं करते थे, और लोगों में इसके प्रति गुस्सा ही नजर आया था। पद की गरिमा को भूलने वाले इन वाचालों पर वॉच करना जरूरी हो गया है। साथ ही कार्रवाई का अगर डंडा नहीं चलाया गया तो इसी तरह बयानों के बीमर फेंककर दूसरों को परेशान करते रहेंगे। साथ ही देश में बयानों का जो कीचड़ हो जाएगा, उसके छींटे अपने ऊपर ही आएंगे। जरा सोचिए, एक गरिमावान नेता के मुंख से किसी के लिए गालियां निकलें तो निश्चय ही इसे पहली नजर में आप शर्मनाक ही कहेंगे। उसकी निंदा ही करेंगे, लेकिन ये नेता हैं कि मानते नहीं। इन्हें तो जैसे पब्लिक के बीच इसी के लिए रखा जाता है, दूसरों की मां बहन करने के लिए ही खड़ा किया गया हो। जल्द इस तरह के बयानों की गाइडलाइन तय की जाना चाहिए। अगर वह तय नहीं की गई तो फिर आने वाली पीढ़ी के साथ बाहरी देशों में भी हमारे यहां का गलत संदेश जाएगा। आखिर हम चर्चा भी करते हैं तो हंगामा हो जाता है, पूरे विश्व की निगाहें हम पर हैं, ऐसे में हमारे छुटभैया नेता, और बड़े नेता मिलकर बयानों का वह समुंदर तैयार करते हैं, जो देश के मुंह पर किसी कालिख से कम नहीं होता है। सिलसिला यूं ही चलता रहा तो निश्चय ही आने वाले समय में हमें बयानों के भूतों से संज्ञान्वित किया जाएगा, जो हमारे लिए किसी शर्म से कम नहीं होगा। इसलिए अभी समय है संभल जाओ, अपनी जुबां पर काबू पा लो, नहीं तो देश की पीढ़ी ही ऐसे नेताओं को जूते मारेगी, अगर विद्रोह का वह दिन आ गया तो समझ लो ऐसे लोगों को देश निकाला हो जाएगा, समाज में उन्हें विरोध की आग में झुलसना होगा।

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