Saturday, March 5, 2011

‘चाणक्य’ था अर्जुन


अर्जुन सिंह सालों तक...कांगे्रस के थिंक टैंक माने जाते थे। जब से उन्होंने कांग्रेस को ज्वाइन किया, उसके बाद से उस अर्जुन ने कभी पलट कर नहीं देखा। इंदिरा गांधी फिर राजीव गांधी....और अंत में सोनिया के खासम खास में रहे हैं। हालांकि आखिरी दौर में इस अर्जुन को थोड़ा नजरंदाज किया गया, लेकिन अर्जुन कांग्रेस के लिए किसी चाणक्य से कम नहीं था। किसी भी मुद्दे पर हो, वह बेबाक था, सालों कांग्रेस की वफादारी की, कभी उस पर संकट नहीं आने दिया। कांग्रेस की बड़ी-बड़ी मुश्किलों को उसने आसानी से हल कर दिया। अर्जुन की तरकश में हर समस्या का बाण था, कई बार उन्होंने सत्ता के ताबूत में कील ठोंक दी थी, विरोधी तो अर्जुन के सामने आने से कतराते थे। सही मायने में कांग्रेस का यह चाणक्य था। अपनी बुद्धि से विरोधियों के हौसले पस्त कर देता था। हां गांधी कुनबे ने उसे काफी मान दिया था और हर बार वो उसकी टीम का हिस्सा रहे थे। उनके जीवनकाल का सबसे बड़ा कलंक अगर कुछ है तो भोपाल त्रासदी, क्योंकि उसके छींटे अर्जुन सिंह की कमीज पर हमेशा नजर आए। लोगों ने उन्हें हमेशा दोषी ठहराया है। हां, उन्होंने हमेशा कोशिश की कि इससे वो पाक साफ साबित रहे हैं, लेकिन हालातों ने उन्हें छुटकारा नहीं लेने दिया। जवान अर्जुन से अधिक बुजुर्ग अर्जुन काफी खूंखार थे, उस समय इनकी बुद्धि और चातुर्यता का हर कोई कायल था। कांग्रेस में कई बड़े फैसले इन्होंने ही सुझाए, और इनके बिना कोई बड़ा निर्णय तक नहीं लिया जाता था। वारेन एंडरसन, राजीव गांधी और अर्जुन सिंह की तिकड़ी विवादों में आई थी, लेकिन उसे भी इस अर्जुन ने पार लगा ही दिया। अंतिम समय में कुनबे के मोह ने इसकी वफादारी में कुछ घोट दिखाई थी, मगर इसका भी तो दोष नहीं था, क्योंकि कांग्रेस ने भी इससे मुंह मोड़ना शुरू कर लिया था। आज अर्जुन हमारे पास नहीं हैं, कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी क्षति है, वह भी लगभग दो सालों से, क्योंकि अर्जुन सिंह से उनका नाता दो सालों से छूटा हुआ है। इतिहास भले ही अर्जुन को भोपाल कलंक के रूप में याद करे, लेकिन इन्होंने हर बार विरोधियों को धूल चटाई। जैसा नाम वैसा ही काम था। ठीक अर्जुन की तरह। हर तरकश में इतने तीर की विरोधी को हार माननी ही पड़ती थी। कई बार इनके साथ कुछ गलत जरूर हुआ, लेकिन इन्होंने हर बार उसे ठीक कर लिया। उस दौर में लोग सोचते थे आखिर एक इंसान में इतनी चाणक्यता कैसे हो सकती थी। उनके इसी बुद्धिबल के कारण उन्हें चाणक्य माना जाता था। आज वह हमारे बीच में नहीं हैं, यह एक युगपुरुष की कमी की तरह हमें खलेगा। सालों तक उनकी जगह भरना मुश्किल रहेगी, यह कमी कांग्रेस को खल भी रही है, जिस तरह मप्र में सालों राज करने वाली कांग्रेस पिछले दस सालों से यहां पर पैर नहीं जमा पा रही है। वह अर्जुन के कारण ही है। दिग्गी को जो मैदान मिला था, वह अर्जुन का तैयार किया हुआ ही था। इसलिए उन्होंने भी दस साल तक यहां राज किया। इसके बाद से जो सूपड़ा साफ हुआ, वह आज तक दम नहीं भर पाया है। जिस तरह से यहां पर कांग्रेस के हालात हैं, उसे देखकर तो यही लग रहा है कि अगले दस सालों तक कांग्रेस यहां नहीं आ सकती है। क्योंकि अब अर्जुन...नहीं रहा, और इनकी जगह कोई ले नहीं सकता। यह दुनिया का अटल सत्य है कि जो आया है वह जाएगा, और एक न एक दिन उसकी जगह भी भर जाएगी, लेकिन उसके लिए समय कितना लगता है, यह निश्चित नहीं है। इसलिए अर्जुन का जाना मप्र से कांग्रेस का गढ़ ही उखड़ जाना है, यह तो तभी हो गया था जब कांग्रेस ने उनसे बेरुखी दिखा दी थी। इसलिए उनका मन भी राजनीति में नहीं लगता था, क्योंकि उम्र के साथ हालात बदल गए थे, अब वे अर्जुन तो थे, लेकिन चाणक्य नहीं थे, और फिर लंबी पारी खेलने के लिए उनके पास समय भी नहीं था। इसलिए उन्होंने किनारा कर लिया था। उम्र और बीमारी उन पर हावी हो गई थी और अंतत: वो विलीन हो गए। लेकिन वह अर्जुन हमेशा उनके चाहने वालों के साथ विरोधियों के बीच में कायम रहेगा।

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