Sunday, March 6, 2011
परीक्षा का प्रेशर फट न पड़े
परीक्षाओं की गरमी मौसम में भी नजर आ रही है। धूप जिस तरह से मार्च में तपने लगी है, उससे दिन बेगाने से हो गए हैं। आलस्य ने ऐसा दामन पकड़ा है कि कुछ करने का मन ही नहीं हो रहा है। ऊपर से परीक्षा का प्रेशर हॉर्न दिमाग को संतुलित ही नहीं होने दे रहा है। पढ़ाई का डर, साल भर मेहनत की, लेकिन अभी मन बैठा जा रहा है कि कहीं वो तो न आ जाए जो हमने कहीं याद ही नहीं किया हो। कोर्स से बाहर का आ गया तब क्या होगा। रातों की नींद उड़ी हुई है, पढ़ते-पढ़ते टेबल पर गिर पड़ रहे हैं, कमबख्त तीन-तीन घंटे पढ़ाई की टेबल पर बिता देते हैं, बाद में ऐसा लगता है कि कुछ भी याद नहीं किया। न जाने क्या हो रहा है, नींद में ऐसा लग रहा है मानों हम पेपर दे रहे हैं और पेपर में कोई भी सवाल नहीं आ रहा है। गणित से लेकर इंग्लिश सभी ने डराना शुरू कर दिया है। टीचर्स का रोल खत्म हो गया है, मम्मी-पापा पढ़ने के लिए बोल रहे हैं। रातों में दोस्तों से पूछ रहे हैं कि यार तूने वह चेप्टर खत्म कर लिया है, जब वह हां कह देता है तो मन की शंकाएं और बढ़ जाती है, लगता है कि हम ही पीछे हैं, बाकी सब तो बाजी मैदान में मारने के लिए तैयार हैं। आखिर करें तो क्या करें। ऊपर से बीमारी ने हमारा दम निकाल दिया है। बार-बार सिर दु:ख रहा है, बुखार हो रहा है। पढ़ते नहीं बन रहा है, करें तो क्या करें। जीवन में उदासी छा रही है। पेपरों का यह भूत तो लगता है कि दम ही निकाल देगा। एक-एक दिन भारी पड़ रहा है, दिल कहता है कि जल्द से जल्द पेपर हो जाए, भले ही रिजल्ट जो भी हो, लेकिन इतना मन तो नहीं घबराएगा। हमारा तो जीवन ही बेकार हो गया है, पूरे साल पहले पढ़ाई करो, फिर परीक्षा के प्रेशर को हैंडल करो, दिमाग कुकर की तरह सीटी मारने लगता है, कहीं प्रेशर नहीं रिलीज हुआ तो हम फट न जाएं। सभी अखबार और टीवी वाले मानसिक रूप से प्रबल रहने की सलाह दे रहे हैं, जो देना काफी आसान है, वह भी जानते हैं कि परीक्षा में पास होना काफी कठिन है। मन में चिड़चिड़ापन हो रहा है, सब कुछ बेगाना सा हो गया है। हम तो मजबूर भी लग रहे हैं और मजदूर भी। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि भाड़ में जाए यह परीक्षा, हम तो नहीं पढ़ेंगे। पर पापा-मम्मी को देखकर लगता है कि कितनी मुश्किलों से वो हमारी फीस भरते हैं। आज तो कुछ करना ही होगा। कुछ अलग नया, ताकि जीवन बढ़िया हो जाए। वरना आज अगर परीक्षा से डर गए तो जीवन में कई बड़ी परीक्षाएं आएंगी, क्या तब भी हम ऐसे ही हमारे पैर खींच लेंगे, अपना मुंह चुरा लेंगे। आज की इस परीक्षा में पास होना ही है। हां यह सही है कि दबाव खूब है, परीक्षा का भी और आसपास का भी। क्योंकि लोग इसके परिणाम पर ही हमारा आकलन करेंगे। फिर चाहे हमने सालभर कितनी ही मेहनत क्यों न की हो, अगर इसमें असफलता हाथ लगती है तो लोग उसे इसी नजरिए से देखेंगे। उन्हें लगेगा कि हम मानसिक रूप से कमजोर हैं। और परीक्षा में पास नहीं हुए। हां तब हम उनके सामने आंख नहीं मिला पाएंगे, वह भी इसलिए कि हम परीक्षा के अंतिम क्षणों में बेहतर परिणाम नहीं दे पाए। यह यही नजारा है और यही जिंदगी है, जिसमें हम फेल हो जाते हैं। परीक्षा का दबाव हमें हैंडल करना ही होगा, साथ ही इन विपरीत परिस्थितियों में हमें ‘दबंग’ बनकर निकलना होगा, ताकि कोई यह न कह सके कि यह वहीं है जो हार गया। हार पर हंगामा होता है, लेकिन इस समय उन्हें भी ध्यान रखना होगा जो हार जाएं, क्योंकि यह हार आखिरी हार नहीं है। इसके बाद भी कई मौके आएंगे। आखिर जिंदगी को समाप्त करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए अगर पेपर बिगड़ भी जाए तो चिंता की कोई बात नहीं है। जीवन जियो, जिंदादिल तरीके से, क्योंकि यह बेहतर है। यहां आत्महत्या या कोई दूसरा कार्य करने की जरूरत नहीं है। अब बस इस परीक्षा के प्रेशर को आसानी से हैंडल करो, फिर छुट्टियों को जमकर इंजॉय करो, जिंदगी तुम्हारी है, इसे पूरा जियो।
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