Monday, August 2, 2010
बचा लो इस जन्नत को
- यह जन्नत भी है और जहन्नुम भी
अगर आप भगवान पर विश्वास करते हैं तो आपको शैतान पर भी विश्वास करना ही होगा...यह बात आज से कई साल पहले एक हिंदी फिल्म में कही थी, निश्चय ही यह सही है, क्योंकि जहां पॉजिटिव होता है, वहां निगेटिव भी होगा। यह वैज्ञानिक सत्य है और इसे कोई झुठला नहीं सकता है। यहां न्यूटन के तीसरे नियम पर भी प्रकाश डालना चाहूंगा, जिसमें लिखा हुआ है कि प्रत्येक क्रिया के बराबर विपरीत प्रतिक्रिया होती है, यह भी सत्य है, उसी तरह जहां खूबसूरती होती है कांटे भी वहीं होते हैं, यह प्राकृतिक रूप से भी सत्य है, क्योंकि गुलाब की हिफाजत के लिए कांटे हैं और कोई उसे आसानी से मसल न दे, लेकिन यहां तो बात कुछ और ही है...जी हां, हम बात कर रहे हैं इस धरती की जन्नत की। इस वाक्य से आप समझ गए होंगे कि हमारा इशारा किस ओर है, बिलकुल सही...कश्मीर की बात हो रही है जी...धरती की इस जन्नत में हर कोई जीना चाहता है, यहां रहना चाहता है, वो बहुत खुशकिस्मत हैं, जिन्हें यह नसीब हुआ है, वरना तो कुछ अभागे ऐसे भी हैं, जिन्हें इस जन्नत की जमीं नसीब ही नहीं हुई है। मगर इस जन्नत में ये क्या हो रहा है, यहां की खूबसूरती के पीछे का काला दाग उसे लील रहा है, यहां की वादियां जल रही हैं, घाटियों में आग निकल रही है, यह हाहाकार कैसा, यह विचलन कैसी, यह लोग क्यों बिलख रहे हैं, कहां तड़प रहे हैं, यहां की धरती लाल क्यों है, हवा बेचैन क्यों है, न जाने इस सन्नाटे के पीछे कैसी तबाही है, क्यों तड़प रहा है कश्मीर, क्या हो गया है इसे? आखिर क्या कारण हो गए हैं कि देश का यह टुकड़ा देश के दिल से टूट रहा है, लोगों को यहां पैदा होने पर दु:ख क्यों हो रहा है..., इन सवालों के जवाब मिलना तो मुश्किल है, लेकिन जो कुछ भी कश्मीर में हो रहा है , वह कहीं न कहीं देश और जम्हूरियत के हित में नहीं है। जिस तरह से लोग अपने फायदे के लिए यहां ज्वालामुखी भड़का रहे हैं, वह बेहद चिंता का विषय है, जिन लोगों के मासूम चेहरे बर्फ की तरह स्वच्छ दिखाई देते हैं, उनके अंदर इतना खौफनाक शैतान कैसे प्रवेश कर सकता है। अब तो यहां के हालात देखकर डर सा लगने लगा है, साथ ही हैरत भी होती है कि क्या लोग इतने स्वार्थी भी हो जाते हैं, कि यहां तक गिर जाते हैं। जो आग इस समय जम्मू-कश्मीर में जल रही है, उसका अंत तो नहीं, बल्कि उसमें लगातार घी डाला जा रहा है, लोग मुहब्बत के इस शहर में नफ्रत की बीच बो रहे हैं और यहां अंगार पैदा हो रहे हैं। तो क्या हालात हमेशा ऐसे ही बने रहेंगे, निश्चय ही हम कितना ही लिख लें, जागरूकता लेकर आ जाएं, जब तक आवाम नहीं समझेगी, तब तक कुछ नहीं होगा, क्योंकि सियासत के यह सौदागर अपनी गद्दी के लिए इसे जलने के लिए आग में छोड़ देंगे और उनका कोई मिशन नहीं है कि यहां पर शांति आए। मगर देश की रक्षा तो हमारा ही फर्ज है और उस जन्नत को संभालना न सिर्फ उन कश्मीरियों की जिम्मेदारी है, बल्कि दिल्ली में बैठी सरकार का भी फर्ज है। जब गांधी परिवार को सत्ता का मोह नहीं है, सोनिया जैसी लीडर जो पद की लालसा नहीं रखती तो वे कश्मीर को लेकर कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाती, और देश में हिंदुत्व का झंडा लहराने वाली पार्टी इस कश्मीर में शांति के लिए कोई प्रयास नहीं करती। इसे तो सिर्फ फालतू लोगों को पीटकर अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करते आता है। यहां मैं सभी से गुजारिश करना चाहूंगा कि बचा लो इस जन्नत को, जो आज जहन्नुम बनने की कगार पर खड़ी है, यहां कोई अवतार नहीं होगा, जो भी करना है बस हमें ही करना है, आगे भी हमें ही आना होगा, कश्मीर में लगी आग को बस अब बुझाना होगा, वरना यह आग बढ़कर पूरे भारत को लील जाएगी।
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लेख का सुन्दर अभिव्यक्ति और प्रस्तुति...सुन्दर अति सुनदर है...मन की छू गया....हार्दिक आभार.....
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