Friday, July 23, 2010

कौन वैश्या और कौन संत



यहां तो बाजार है, और यहां तरह-तरह के लोग रहते हैं। तो यहां भगवान धर्मात्मा भी लोगों को दिखाई दे जाते हैं, तो पापी भी पुण्य की वैतरणी को गंदा करने की जुगाड़ में जुटे रहते हैं। तो किसे मान लिया जाए कि कौन यहां संत है और किस पर सारा दोष मढ़ दिया जाए। यहां समाज का परिदृश्य किसी से छिपा नहीं है, क्योंकि बात जब होती है कि आखिर समाज की गंदगी है कौन, समाज को बिगाड़ किसने रखा है, किन कारणों से बॉलीवुड, राजनीति या अन्य किसी बिजनेस कंपनी में तरक्की के रास्ते तय किए जाते हैं। प्रथम दृष्टया तो यह कहा जाता है कि इन्होंने सीढ़ी का इस्तेमाल किया और इस इस्तेमाल में कहीं न कहीं वैश्या बनना पड़ा है। हां, यह जरूर हैं कि कुछ इस धंधे को सरेआम सबके सामने करती हैं तो वो वैश्याएं कहलाती हैं और जो इन्हें छिपकर करती हैं, वो इज्जतदार जिंदगी जीती हैं, चलों यह तो उन महिलाओं के लिए हो गया, जिन्हें इस तरह के कृत्य में उतरना पड़ता है, हां कई बार उनकी मजबूरी हो सकती है, और कई बार विलास जिंदगी के लिए वो ऐसा करती हैं, और कुछ की भूख इतनी ज्यादा रहती है कि वो इस तरह के धंधे को करती हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि यहां पर पग-पग में वैश्याएं हैं, अगर इसके समर्थन में लोग आते हैं तो यह भी कहा जाएगा कि यहां कोई संत नहीं है। हर कोई उस स्त्री का हनन कर उसे वैश्या बनाने पर तुला है, बस फर्क यह है कि कोई पैसों से उसे चादर में छिपा लेता है और कोई पैसा देकर उसे बदनाम कर देता है। वक्त बड़ा बदमाश और धोखेबाज होता है, यह जिंदगी के साथ कब बेवफाई कर दे, कोई नहीं जानता। यहां किसे वैश्या माना जाए, उसे जो सरेआम अपना जिस्म इसलिए बेचती है, क्योंकि उसे पैसा चाहिए। यहां नजरिए का फर्क है, क्योंकि वह इसे वैश्यावृत्ति नहीं, बल्कि वह उसे उसका कार्य मानती है और उसकी वकालत करते हुए कहती है कि आखिर किस तरह वह अपना कार्य बड़ी शिद्दत से करती है। उसके अनुसार कोई कार्य बुरा नहीं है, भले ही वह अपना जिस्म बेच रही है, लेकिन छुपा तो नहीं रही, साथ ही यह उन लोगों की भी मदद है जो कहीं न कहीं अतृप्त आत्माएं हैं... हालांकि समाज इसे बुरा कहता है, मगर ये बुरी नहीं हैं...वहीं छिपी हुई वैश्याएं...जो अपनी तरक्की की सीढ़ियां चढ़ जाती हैं...पर यहां तो कई बार उन्हें मजबूर किया जाता है और कई बार वो स्वयं ही बिछ जाती हैं। तो क्या इन्हें वैश्याएं कहेंगे। यह बड़ा सवाल है, सवाल यह भी है कि ये वैश्याएं कैसे हुई, क्योंकि इसके लिए तो वो दुर्दांत लोग जिम्मेदार हैं, जो इन्हें वैश्याएं बनाते हैं, उनके हस्तक्षेप के बिना ये वैश्याएं तो नहीं हो सकती, और न ही कोई जन्म से वैश्या पैदा होता है, इन्हें यह समाज ही वैश्या बना देता है, वह पुरुष इन्हें वैश्या करार करवाता है, क्योंकि इसके लिए वह ही जिम्मेदार है, जब तक वह इन्वॉल्व नहीं होता, महिला वैश्या कैसे बन सकती है। तो फिर यह समाज इन महिलाओें को ही वैश्या क्यों कहता है, या फिर उन पर ही लांछन क्यों लगाता है। आखिर उस पुरुष को कठघरे के घेरे में क्यों नहीं लिया जाता है, जो इसके लिए मूल रूप से जिम्मेदार होता है। इन तीनों मेें देखा गया है कि पुरुषा साफ रूप से संत बनकर निकल जाता है, जबकि रोग उसने ही किया है, और उस स्थिति तक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार भी वही है, दरअसल यह पूरा खेल पुरुषवादी समाज के चलते हो रहा है, जहां महिलाओं पर अत्याचार किया जाता है, अपना दोष तक उन पर मढ़ दिया जाता है और बाद में उन्हें दोषी करार कर उन्हें सजा भी दे दी जाती है। और महिलाओं को उन्हें मानना भी पड़ता है....तो प्रश्न आपके लिए है आप ही निश्चय कीजिए कि कौन वैश्याएं हैं, कौन संत है, और इन सबका कारण किसे दिया जाना चाहिए।

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