Wednesday, August 11, 2010
गर्दिश में हैं सितारे
किसमत ही है वह जो आदमी को राजा से रंक बना देती है, जमीं से आसमां तक पहुंचा देती है, कल तो जो गलियों की खाक छान रहा है, उसे बादशाह का ताज दिला सकती है। इसका कोई भरोसा नहीं है, क्योंकि यह कभी तो इतनी मुहब्बत लुटाती है कि दिल भर जाता है और कभी तो इतनी रुसवाई और बेवफाई देती है कि जिंदगी जहन्नुम से भी बद्तर हो जाती है। इसे भाग्य का फेर और समय का चक्र कहते हैं, और यह निरंतर बदलता रहता है। जिसके लिए यह होता है वह कालचक्र में विजेता बन जाता है और जिसके विरोध में घूमता है उसे कोई नहीं बचा सकता है। यह तेज भी है और तर्रार भी। इसके वार की आवाज नहीं आती है और इसकी रहमत को कोई चुनौती भी नहीं दे सकता है। जब यह मेहरबान होता है तो खुद जमीं और आसमां तुम्हारे कदम चूम लेते हैं और जब धोखा देता है तो दर्द भी तुम्हारा दामन छोड़ देता है। कुछ यही हुआ है किसमत के धनी धोनी के साथ। जब वो आए थे तो उनके सितारे बुलंदियों पर थे। वो बल्ले को हाथ भी लगा दें तो वह छक्के पर छक्के उगल देता था। उनकी मौजूदगी ही उनके विरोधियों को जमीं चटा देती थी, लेकिन वक्त और हालात किसी के गुलाम नहीं होते हैं, इनकी चाल तो हर वक्त बदलती रहती है। बस यही हुआ है धोनी के साथ। जो कल तक अपने सितारों के दम पर जीत का सेहरा पहनते थे, आज वही सितारों ने उनका साथ छोड़ दिया है। आज टीम की बुरी गत हो गई है, टीम को नंबर एक का ताज दिलाकर क्रिकेट का नया बादशाह बनाने वाले धोनी अब उसे गर्त में ले जा रहे हैं। जिस तरह से टीम इंडिया के फजीते हो रहे हैं, उसने निश्चय ही उसके भविष्य पर तो सवालिया निशान लगा ही दिए हैं, साथ ही विश्वकप का संकट भी खड़ा कर दिया है। टीम का मनोबल पूरी तरह से खाई के अंदर घुसा हुआ है, जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है, और सूरज की कोई किरण वहां नहीं जाती दिखाई दे रही है। टीम अपने पट्टे पिचों पर तो जोरदार धमाल मचाती है और तीन सौ रन का अंबार लगा देती है, लेकिन जब थोड़ी तेज पिच मिलती है तो ये बैट पकड़ना ही भूल जाते हैं। अगर देखा जाए तो इस समय टीम को देखकर लगता ही नहीं कि यह टीम विश्वकप खेलने के लायक है। जो कार्य कई साल पहले या कई महीनों पहले से हो जाना चाहिए, वह अभी तक नहीं हुआ है। टीम में न तो खिलाड़ी कन्फर्म दिखाई दे रहे हैं और न ही जीत की कोई उम्मीद। टीम के पास ऐसा कोई भी गेंदबाज नहीं है, जिसे विश्वकप के लिए पक्का कहा जा सके। किसी के पास स्टेमिना ही नहीं है कि वह सात ओवर एक साथ डाल दे। न तो फास्ट बॉलिंग ठीक है और न ही स्पिन। एक ही गेंदबाज को ुटीम इंडिया का जमाई बना रखा है, वहीं तीन-चार गेंदबाजों को फ्लॉप होने के बावजूद दांव खेला जा रहा है, आखिर गधे पर आप कितनी ही मेहनत कर लो, लेकिन वह कभी घोड़ा नहीं बन सकता। ठीक हालात टीम इंडिया के हैं, वह इस समय बेदम पड़ी हुई थी, अब आखिर कैसे टीम ऊपर आएगी और नहीं आई तो क्या होगा देश के ख्वाब का, क्या हमारे लिए विश्वकप एक आस ही बनकर रह जाएगा। क्या सचिन ने जो सपना देखा है वह पूरा हो पाएगा। जिस तरह के हालात हैं, उसे देखकर तो नहीं लगता। हम क्रिकेट में बहुत पिछड़ गए हैं और अगर एक-दो माह में कठोर निर्णय नहीं लिया गया तो निश्चय ही हम विश्वकप लाने के लायक नहीं रहेंगे। और रहा सवाल क्रिकेट के भगवान को, तो वो भी कुछ नहीं कर पाएंगे, क्योंकि उनकी सेना में ही वो बल नहीं है। इसलिए जरूरी है कि कुछ माह के लिए भ्रष्टाचार को तिलांजलि देकर सिर्फ क्रिकेट खेलना होगा, और अगर हम पूरी शिद्दत से खेलते हैं तो जीत मिले न मिले, हार शर्मनाक नहीं होगी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment