Sunday, August 22, 2010
दौलत की अंधी जंग
पैसा भगवान नहीं है, लेकिन भगवान से कम भी नहीं...सचमुच पैसे का चाबुक आपके पास नहीं है तो इस दुनिया में जिंदगी को हकालना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए इसका साथ होना बहुत जरूरी है। आज कोई भी ऐसा शख्स नहीं है, जिसका दुनिया में दौलत के लिए मोह न हो। बड़े-बड़े तख्त और ताज भी इसमें लुट गए, हत्याएं और डकैतियां सिर्फ इस दौलत के लिए ही हुई हैं। मगर इसकी भी खासियत है कि यह हमेशा बेवफा रही है। इसमें एक सुहागन का कोई गुण नहीं है। क्योंकि यह एक की हो ही नहीं सकती। इसकी तो दुनिया चाहने वाली है तो यह भी क्या करे, आज इसके पास तो कल उसके पास। आज उससे वफा और कल उससे बेवफाई। लगातार बार-बार यह क्रम चलता ही जा रहा है, हर कोई इस अंधी जंग में उतरना चाहता है, दौड़ना चाहता है। मगर बेबसी है कि वहां तो पांव रखने की जगह भी नहीं है तो दौड़ने की कहां से मिलेगी, लेकिन यहीं तो सारा पौरुष दिखाना है, अगर यहां कामयाब हो गए तो जिंदगी की रावलपिंडी पटरी पर सरपट दौड़ने लगेगी। यह तो हो गई दौलत की दास्तां...मगर पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। कहते हैं जब किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे मिलाने के लिए जुट जाती है, भई हम जैसे लोगों ने दौलत को हमेशा से ही चाहा है, लेकिन यह कायनात उसे छीनने पर तुली रहती है। आज का कोई ब्रहस्त्र है तो वह सिर्फ माया ही है। अगर माया का खेल नहीं आया तो समझ लो तुम्हारा जीवन में आना व्यर्थ ही कहलाएगा। जीवन की कश्ती का वैतरणी के पार होना मुश्किल हो जाएगा। सड़क में इतनी खाइयां आ जाएंगी कि गुजरना असंभव हो जाएगा। यहां अगर कुछ करना है तो वह है दौलत से दोस्ती करो और उसे सदा के लिए अपने पास ही रख लो, फिर तो तुम्हारा जीवन ही सफल हो जाएगा। बहुत से पीर फकीर और बाबाओं ने कहा है कि इस मायामोह में कुछ नहीं रखा है, जो भी है भगवान के चरणों में उसकी भक्ति में। तब सत्य क्या है, क्या सत्य है इस दुनिया में । सचमुच इस पर भी विश्वास करना एक कठिन कार्य तो नहीं है। कहीं राम भगवान थे, कोई रावण असुर था, क्या ग्रंथों में लिखा सच्चाई थी , कृष्ण हैं...किसी से भी आप इस समय पूछेंगे तो वह तपाक से उत्तर दे देगा, बिलकुल थे। शायद आप भी और मैं भी हां कह देंगे, लेकिन इसके पीछे भी कहीं कोई रचियता तो नहीं है। क्या आपने राम के युग को देखा है, या किसने देखा है, जिससे हम मिले हों। जाहिर है समाज रुढ़ियों में कैद है और इस बात से आप भी इनकार नहीं कर सकते। वह तो बीमारियों के लिए भूत-पिशाच को दोषी देता है, जिसे हमने मानना बंद कर दिया है , तो क्या यह नहीं हो सकता है कि उस समय कोई इतना महान लेखक हो, जिसने राम के युग की एक कल्पना की हो और उसकी कल्पना इतनी प्रबल और सत्य के समान है कि उसे झुठलाने की कोशिश नहीं कि जा सकती है। यहां अभी आप थोड़ा कन्फ्यूज हो गए हैं, बात यह है कि हो सकता है आज हम किसी फिल्म को लें लें, कृष को ही ले लिया जाए। मानों पूरे रिकॉर्ड और दुनिया तबाह हो जाए। इस धरती पर कुछ नहीं बचे।
अरबों साल बाद कोई नया जीवन आए, उस समय कहीं पृथ्वी में दबी हुई कृष की सीडी मिल जाए या फिर किताब मिल जाए। तो उस समय के लोगों को तो कृष भगवान ही लगेगा। उन्हें तो यह नहीं लगेगा कि यह किसी राकेश रोशन और रितिक रोशन जैसी कोई कल्पना होगी। अब इससे तो आप मेरी बात से पूरी तरह से सहमत हो चुके होंगे। ऐसा ही राम और कृष्ण के संबंध में भी हो सकता है। हमने उन्हें ग्रंथों में ही तो पढ़ा है, जो आज तक हमारी श्रद्धा को बनाए हुए हैं। बात यही बताने की है कि क्या श्रद्धा कुछ है , भक्ति कुछ है, या फिर दौलत ही खुदा है। यह सोचने का विषय है?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment