Monday, August 9, 2010
सितमगार सियासत
जनता का क्या हो रहा है, उसे महंगाई डायन चबा रही है, या फिर नक्सली हिंसा लील रही है। देश में कोई आतंकवाद का अजगर आकर दिनदहाड़े न जाने कितनों को निगल कर चला जाए, कोई भी भयंकर तबाही मचा दे, मगर यहां तो सनम की तरह बेवफा सरकार हो गई है और सितम पर सितम ढाए जा रही है। कौन किसके लिए और क्यों परेशान होगा, कोई नहीं जानता, क्यों किसी के लिए कोई तड़पेगा.... इन सबके लिए कोई परेशान नहीं है। क्योंकि आज सब अपने लिए जी रहे हैं, तो कौन यहां तो लोग मरे, इन्हें क्या। सियासत के ये सौदागार तो सिर्फ सौदेबाजी करने में जुटे हैं, इन्हें कोई मरे इससे क्या, इनके घर में उजाला रहना चाहिए। अगर वह नहीं रहा तो हाहाकार मच जाती है, वरना तो कुछ भी हो जाए, इनके कानों में जू तक नहीं रेंगती है। जिस तरह से महंगाई ने आम आदमी को मार डाला है, उसी प्रकार कश्मीर जल रहा है, मगर इसकी परवाह किसी को नहीं। हर सियासतदार अपनी सियासत चमकाने में जुटा हुआ है और जितना हो सके माल अंदर करने में। कश्मीर में यह गंदी राजनीति वहां की वादियों को दूषित कर रही हैं। वहां लहू बरस रहा है, पर ये लोग तो अपनी दादागिरी और सियासत बचाने में लगे हैं। इंसान तड़प रहा है और ये लोग चांदी काटने में जुटे हुए हैं । केंद्र से लेकर राज्य और शहर स्तर की राजनीति का स्तर स्तरहीन हो गया है। मजबूरियों को आम आदमी के हवाले कर दिया है और खुशियों को ये लोग भगा कर ले गए हैं। कश्मीर ही नहीं जल रहा है, दूसरे राज्यों का भी यही हाल है , हर ओर तबाही ही तबाही है, नक्सलवाद न जाने कितनी जानें ले रहा है, पर परवाह कहां... आखिर दोषी भी तो कोई नहीें बनता है, क्योंकि जो दोषवान है उसके हाथ में ही तो कमान है और जब कोई आपत्ति आती है, तो वह उसे खींच देता है। भई देश का बुरा हाल है, जनता यहां हाल बेहाल है, कौन किसके लिए मरेगा और कौन किसके लिए जिएगा, इससे किसी को लेना देना नहीं है। देखा जाए तो अपनी जेबें भरे और बाकी कोई लेना देना नहीं है। नक्सलवाद ने छत्तीसगढ़ को लील लिया है, यहां पुलिस की खैर मना रखी है, मगर इन पर कार्रवाई की जगह खानापूर्ति हो रही है। इस भयावह समय में आखिर न तो सरकार जिम्मेदारी लेती है और न ही कोई लेना चाहता है। इससे ही बर्बाद हो रहा है देश। यहां सभी नेता भ्रष्ट चोर हो गए हैं, हर किसी को सियासत दुधारू गाय नजर आ रही है। सभी दुह लेते हैं। इन सबके पीछे हर कोई चुप्पी बांधे बैठा है, तड़प और तरस रहा है तो वह है आम आदमी। उसकी पुकार सुनने के लिए किसी ने अपने कान नहीं खोल रखे हैं, इसकी न तो किसी को फिक्र है और न ही किसी को चिंता। सब अपनी मर्जी के मालिक बन बैठे हैं, जनता ने जिस उम्मीद से उन्हें उस मुकाम तक पहुंचाया था, वो वहां के खुद को सेवक नहीं बादशाह समझने लगे हैं और जनता को जर्नादन नहीं, बल्कि अपना गुलाम मान बैठे हैं। ऐसी स्थिति में विरोध के ज्वर निकलना तो स्वाभाविक ही थे, इसे कौन रोक सकता था। जहां नजर जा रही है वहां समुंदर की तरह पानी ही पानी नजर आ रहा है, मगर यह पानी भ्रष्टाचार का है, जिसमें सब डुबकी लगाने में जुटे हुए हैं। अब इतना सब हो रहा है, पर कोई सांस तक नहीं ले रहा है, बल्कि ऊलजुलूल बयान देकर लोगों को उकसााया जा रहा है, शांति और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन सबके चलते आखिर भारत समस्या से घिरी वह जोरू नजर आ रही है, जिसके सभी मालिक हैं और सभी उसके साथ छलात्कार करने में जुटे हैं।
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