Thursday, August 26, 2010
‘वो’ ‘उनसे’ बढ़कर हो गया
मुहब्बत की हवा कब बदल जाए यह कोई नहीं जानता है। यह कब किसके लिए उमड़ जाए यह जान पाना भगवान के लिए भी मुश्किल है। प्यार के ढाई अक्षरों में भले ही ऊपरी रंगत न हो, लेकिन तह में उतरने पर यह जिंदगी का या तो सबसे बड़ा दु:ख बन जाता है या फिर सुख। कई जानें भी बर्बाद हो गई, कई गुलशन भी गुलजार हो गए। किसी को मौत मिल गई तो कोई जिंदगी को जन्नत बनाए बैठा है। आशिकी, दीवानगी औैर दिल्लगी की यह धारा कब अपना मार्ग बदल दे कुछ कहा नहीं जा सकता, यह कभी-कभी उधर भी मुड़ जाती है, जिधर जाने का कोई सवाल ही नहीं रहता है। यह नदी नहीं है, बल्कि बिफरा समुंदर है, जो रास्ते तोड़ता हुआ अपनी मंजिल पाता है, इसके बीच में आने वालों की न तो यह पर्वाह करता है और न ही उन्हें छोड़ता है। मगर प्यार के बाद प्यार की दास्तांनें भी देखी गई हैं, और ये उतनी ही सच हैं, जितना की आप और मैं। बात उठी है इश्क की तो इसकी गर्माहट के साथ इसके बहके कदमों पर भी गौर फरमा ही लिया जाए, यह मीठा जहर तो है ही, साथ ही अंधा भी होता है, क्योंकि यह जब होता है तो यह भी नहीं देखता कि वहां सिर्फ मौत है, बर्बादी है और तबाही। आंसू तो इनका हफसफर बन जाता है और हौसला इनका साथी। ये दोनों मिलकर मुहब्बत की नई इबारत को जन्म देते हैं। बात उस मुहब्बत की नहीं है जो एक से हो, बात है उस मुहब्बत की, जहां से इसकी कोई गुंजाइश नहीं होती है। बात उस मुहब्बत की है, जहां से इस तरह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं। दूसरों के बारे में सोचना भी नहीं चाहता है। आपको रब ने बना दी जोड़ी याद होगी, जिसमें नायिका को अपना पति पसंद नहीं था, भले ही वह उसके लिए न जाने क्या -क्या करता था, मगर वह उससे प्यार नहीं करती थी, जबकि वही पति दूसरे रूप में जब उसका मन बहलाता है तो वह उसे प्यार करने लगती है। बात यहीं से है, कि सारा खेल जरूरतें पूरी करने से नहीं शुरू होता है, बल्कि दिलों को जीत ले वहीं माशूका और आशिक का दिलजीत होता है। यहां से मैं आपको एक ऐसी कहानी, लेकिन सच्चाई की तह में ले जाऊंगा, जहां से आपको यकीन हो जाएगा कि यह दिल भी कितना बावला होता है, कब किसको बिठा ले और किसको बाहर कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता।
बात पांच साल पहले की है, मिस्टर और मिसेस जोशी। अपनी शादी के 15 साल गुजार चुके थे, इस दौरान उनमें इतना प्रेम था कि पड़ोसी और रिश्तेदार उनकी मिसाल दिया करते थे। उन्हें दो बेटे और एक बेटी भी थी, जो पढ़ाई करते थे। मिसेस जोशी माशाअल्लाह क्या खूबसूरत थीं, वहीं मिस्टर जोशी भी कम नहीं थे। दोनों का प्यार अब तक जवां था। हर दिन वो एक दूसरे को अपना प्यार की कसक और उसका एहसास दिला ही देते थे, साथ ही उस ईश्वर का भी शुक्रिया करते थे, जिन्होंने दोनों को मिलाया था। उनकी जिंदगी की गाड़ी समतल सड़क पर बिना उतार-चढ़ाव सरपट दौड़ रही थी। एक दिन जोशी जी को एक माह के लिए आॅफिस के काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ा। इस दौरान ही उनके घर के बाजू वाले फ्लैट में अमित नाम का एक युवा रहने आया था। वह अकेला था इसलिए उसने मिसेस जोशी से कुछ हेल्प मांगी। इस दौरान दो-तीन दिनों में वो काफी घुल मिल गए, और लगभग पंद्रह दिन हुए थे कि अमित ने उससे इजहारे इश्क कर दिया। वो क्या सुरुर था, वो क्या अहसास था, या कहे कि वो क्या समय की खुमारी, या इश्क का अहसास था जिसने मिसेस जोशी की हां में उस इश्क का जवाब दिया। वो मिस्टर जोशी के लिए जो अपनी जान भी दे सकती थीं , वह सब भूलकर वह भी अमित से प्यार करने लगी। अब तो महीना गुलजार गुजरने लगा। धीरे-धीरे उनकी नजदीकियां भी बढ़ने लगी। प्यार प्रगाढ़ होने लगा। कब महीना बीत गया कुछ पता ही नहीं चला। और जोशी जी भी काम करके आ गए। अब उन दोनों के बीच की वो प्यारी कशिश कम होने लगी। हालांकि मिसेस जोशी उन्हें अहसास नहीं होने दे रही थीं, लेकिन दिल तो वो विद्वान है जो हर चेहरे को किताब की तरह पढ़ लेता है। कई बार जोशी जी ने उन्हें कहा भी कि तुम्हारा प्यार कम हो रहा है , तो मिसेस जोशी उन्हें टाल गईं। जब वो आॅफिस चले जाते तो वो घंटों अमित के साथ अपने इश्क की इबारत को लिखने में जुटी रहती। अब मिसेस शर्मा के लिए ‘वो’ ‘उनसे’ प्यारा हो गया था। प्यार बदल गया था, जिंदगी का वो पंद्रह साल पुराना अहसास इस नए प्यार के आगे बंट गया था। तो लगा कि दिल तो बच्चा होता है, यह नादान होता है, कब इसका मन किसे चाहने लगे कोई नहीं जानता है। यह जिंदगी है...जिसमें न जाने कब समतल सड़क पर एक बड़ा गड्ढा आ जाए और जिंदगी का बैलेंस डगमगा कर किसी और टैÑक पर चला जाए। ही तो जिंदगी है जो किस पटरी पर कब दौड़े किस राह में कब बंट जाए, किसकी हो जाए और किससे रिश्ता तोड़ ले....सब अनजाना है...।
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अच्छा लिखा है.... इस जिंदगी को भी स्कूटर की मानिद चलाना पड़ता है.
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