Wednesday, August 18, 2010
सूरज तूने ये क्या किया?
सहवाग आग बरसा रहे थे, एक के बाद एक अस्त्र ऐसे निकाल रहे थे की लंका मानो पूरी तरह से ढह रही थी, मन ही नहीं हौसले भी पस्त हो चुके थे। न तो कोई गेंदबाज असर कर रहा था और न ही कोई फील्डर। चतुरों की चतुराई भी काम नहीं आ रही थी, फील्ड पर जो उनका एक ग्रुप काम करता है, वह भी पूरी तरह खामोश हो गया था। आखिर सहवाग थे ही इतने धुआंधार। फिर लंका ने एक ऐसी चाल चली, जिसकी तर्ज थी कि सनम हम तो डूबे हैं, तुम्हें भी ले डूबेंगे। सूरज ने अपने नाम के विपरीत काम किया, और इसके लिए सबका दिल जीतने वाले दिलशान ने उन्हें प्रेरित किया। एक फीट आगे से नो बॉल कर डाली। चतुराई भी ज्यादा दिखा दी तो भला ऊपर बैठी तीसरी आंख कैसे यह ज्यादती होने देती। उसने फौरन मौका को ताड़ लिया और वह लंकाई चीतों के इरादे भांप गई। यह जो भी घटना हुई है, उसने लंका को शर्मसार जरूर कर दिया है, भारत ने मैच भी जीता और दिल भी। इंडिया एक हार के बाद कुछ करने के इरादे से उतरी थी, पिछले मैच में कीवियों से जीतकर लंका के हौसले तो बुलंद थे ही, साथ ही वो दादागिरी दिखाने के मूड में भी थे, लेकिन वो मूछों में ताव देते, इससे पहले ही भारतीयों ने उन्हें कतरना शुरू कर दिया। टीम को बुरी तरह हराने का सपना जो उनकी आंखों में तैर रहा था, उसने शुुरुआती पांच ओवरों में टूटता नजर आ गया। मगर झल्लाहट पूरे मैच के दौरान कभी कम होती नजर नहीं आई, हर लंकाई खिलाड़ी बौखला रहा था कि आखिर भारत ने उनके घर में घुसकर जो उन्हें पटकनी दी थी। मैच बुरी तरह हार रहे थे, ऐेसे में हर चीज उनकी पहुंच से दूर थी। आखिरी में एक दांव था, जिसमें सहवाग का शतक ही था, तो उन्होंने महज शतक न बनने देने की आग में इतने जल गए कि विवेक ही खो दिया। और क्रिकेट को कलंकित कर मर्यादाओं को भंग कर दिया। जी हां, उसने सभ्य क्रिकेट को दागदार कर दिया है। क्रिकेट में इससे भी अधिक कई दागदार पल देखे हैं , इसलिए अब टेंशन की कोई बात नहीं है, क्योंकि इस तरह की कई चीजें यूं ही फील्ड पर घटती रहती हैं, जिससे यह तो तय है कि अब इस खेल में जीत हार ही सबसे बड़ा मुद्दा हो गया। हम यह नहीं कहते कि भारत इसमें पूरी तरह से साफ है और वह इस तरह की कोई ओछी हरकत नहीं करता, लेकिन जब खेल ही है तो फिर आर पार ही खेलों, इस तरह सभ्यता का नकली जामा पहनकर उसे क्यों धोखे में रखा जा रहा है। सूरज पर कार्रवाई हो या न हो, लेकिन उसने अपने तेज को कहीं न कहीं कलंकित जरूर किया है, उनकी यह हरकत सालों तक लोगों के जेहन में रहेगी। हालांकि इसका परिणाम वो भी नहीं जानते थे, इसलिए यह बेवकूफी कर बैठे, मगर समय, प्रसिद्धि, ग्लैमर और बहुत सारी चीजों ने क्रिकेट की हवा को बदल दिया है, अब यह दूसरी करवट पर आ गया है, जिससे ताल से ताल मिलाना जरूरी है, हम पुराने रागों को अलाप नहीं सकते, क्योंकि आज चीजें पूरी तरह से परिवर्तित हो गई हैं, और अगर खुद को बदला नहीं गया तो हम पिछड़ जाएंगे। वैसे भी कहते हैं, इश्क और युद्ध में हर चीज जायज होती है, साम, दाम, दंड भेद, कुछ भी करो, आपकी जीत और हार को लोग याद रखते हैं , यह मैटर नहीं करता है कि आपने कैसे जीत हासिल की थी। इसलिए अब महत्वकांक्षी होना पड़ेगा, क्योंकि यही हमेें जीत की दहलीज से पार कराएगी। अन्यथा हम अन्य खेलों की तरह क्रिकेट में भी पटकनी खाते रहेंगे। बदलाव के साथ कदम से कदम मिलाना होगा, यह हादसा भी ज्यादा दिनों तक याद नहीं रखा जाएगा, क्योंकि बड़ी-बड़ी त्रासदियों को भी भुला दिया गया है। इस गुलशान में वही गुलजार होता है, जो आसमां में पहुंचकर चमकता है। इसलिए लंका की इमानदारी या बेइमानी उनके साथ, हमें तो बदला हुआ क्रिकेट खेलना है, क्योंकि हमारा अलगा मिशन विश्वकप 2011 है, जिसे हर हाल मेें भारत के पास लाना है।
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श्रीलंकाई क्रिकेटरों ने यह शर्मनाक कार्य किया है. देख कर मन खट्टा हो गया. ऐसा तो हम गली क्रिकेट में भी नहीं करते.
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