Saturday, January 29, 2011

पैसा, प्रसिद्धि और प्यार


आज का युवा रिस्क लेने से नहीं घबराता है, यह हर वो काम करता है, जिसमें रिस्क होता है। पैसा, प्रसिद्धि और प्यार की इस पतवार को खेंपने के लिए हर युवा दिन-रात मेहनत करने में जुटा है, इस बीच वह यह भी नहीं देखता है कि जीवन उसका कैसा चल रहा है। लेकिन उसके अनुसार यह सारी चीजें भी तो जरूरी हैं। कोई गलत नहीं है, लेकिन जीवन का सबसे बड़ा सच और सुख यही है कि पैसा, प्रसिद्धि और प्यार जिसके पास है, वही खुशहाल है, इन तीनों चीजों में एक की भी कमी आती है तो समझ लो दुख की शुरुआत हो जाती है। इन तीनों चीजों के साथ एक समझदारी का रुख हो जाए तो सारी परिस्थितियां अपने आप क्लियर हो जाएंगी। आज पैमाने बदल गए हैं, हर चीजें व्यवस्थाओं को जड़ से मिटाने वाली चीजें अपने आप बदल जाती हैं। जिस तरह से जीवन में बदलाव की बयार उठी है, और उसकी रफ्तार भी काफी तेज है, उसे बदलने का जज्बा हर युवा के मन में उठता है, वह चाहता है कि बुजुर्ग की उम्र में नहीं बल्कि कम उम्र में ही इतना कमा ले कि बाकी जिंदगी उसे कमाने की जरूरत न पड़े। आज जिस तरह से आदमी बदल रहा है, वह देखते ही देखते उम्र के पड़ावों से होकर गुजर रहा है। हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है, लेकिन हमारे हाथों की लकीरें हमारा ही साथ नहीं निभा रही हैं। हम ही न जाने क्यों? खुद पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। यह तीनों बेवफा हो गई हैं, वह इसलिए कि इन्होंने कभी किसी से इश्क में साथ नहीं निभाया है। हां, जिस पर इनका दिल आ गया, समझ लो वह दिलदार हो गया। आखिरी तक उसे फिर कोई नहीं हरा सकता है, लेकिन जिन से यह रुठ गई तो फिर वह कंगालपति ही रहेगा, साथ ही न जाने और कितनी समस्याओं से ग्रसित हो जाएगा। व्यक्तियों ने न जाने कितने बदलावों को मुकाम दिया है। हम भी रुठे, लेकिन जमाने ने हमें नाम दिया है। जब तक हम इन तीन चीजों को हासिल नहीं कर पाते हैं , चैन से नहीं बैठते हैं। सारा खेल इन्हीें का है, जिसके पास यह हैं, वह धनवान और बाकी सब कंगाल। तय हमें करना है, यह निर्णय हमें लेना है कि आखिर हम क्या चाहते हैं और क्या करते हैं। जीवन वह कश्ती है, जिसमें न जाने कितने तूफान आते हैं, और पल-पल लगता है कि बस मौत से मुलाकात होने वाली है। फिर तभी एक फरिश्ता बनकर कोई आता है, और उस मुलाकात को पीछे धकेल देता है। सदियों से यही क्रम चलता जा रहा है और हम इसमें मूकदर्शकों की भांति नजर आ रहे हैं। तो दोष किसका कहेंगे। उन युवाओं का, जो पैसा, प्रसिद्धि और प्यार के पीछे अंधी दौड़ में दौड़ रहे हैं, या फिर उन भ्रष्ट लोगों का, जो देश का बंटाढार करने में जुटे हुए हैं। आखिर पहली नजर में देखा जाए तो किसी का भी दोष नहीं कहलाएगा। क्योंकि सबको अपने जीवन की चाहत के अनुसार जीने और हासिल करने का पूरा अधिकार है। हां इनमें कई बार मूल्यों का पतन हो जाता है, लेकिन सामाजिक सरोकर तभी अच्छा लगता है, जब पेट में भोजन हो। अगर भूखा पेट रहता है तो फिर न पैसा अच्छा लगता है, न प्रसिद्धि और न ही प्यार। हां इन्हें पाने के बाद पेट तो अपने आप ही भर जाता है। असली शांति किसमें है, कई महापुरुषों ने संतोष, किसी ने वैराग्य और न जाने कितने तरीके बताएं, लेकिन जो सत्यम शिवम सुंदरम की तरह बिलकुल सत्य है, वह यह कि इंसान तभी सुखी रह सकता है जब उसके पास पैसा, प्रसिद्धि और प्यार हो। यह आदमी को 95 प्रतिशत सुखी बना देते हैं। हां, इसके बाद कुछ चीजें और हों, लेकिन वह तो व्यक्ति पर निर्भर करती हैं, क्योंकि हमारे देखने में आया है कि हम भी उतने ही बेताबी वाले होते हैं, जितनी की चीजें हमारे सामने आती हैं। हम अपने आदर्शों का गला घोंटकर उन्हेें अपने सुखों को पाने की लालसा रखते हैं। तो हम महत्वकांक्षी कहलाते हैं, लेकिन ठीक तो यही है, वह यह कि हमें अपने तरीके से जीना चाहिए। हमें बातों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए। बस जिंदगी एक रेस है और इसमें अपने अनुसार ही दौड़ेंंगे, लेकिन जब रेस के हिसाब से दौड़ेंगे और सभी को हराएंगे तो उस जीत का जश्न ही कुछ और होता है।

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