Sunday, January 16, 2011
शीला-मुन्नी से आगे जीनत
बॉलीवुड और ग्लैमर की जुगलबंदी शुरू से ही है। इसके बिना बॉलीवुड कुंवारा ही माना जाएगा, इसकी मांग तभी सजेगी, जब इसमें ग्लैमर का तड़का लगेगा। हां यह बात अलग है कि समय के साथ कई चीजों में परिवर्तन आया है और इस परिवर्तन में मायने बदल गए हैं। पारदर्शी झिल्ली समय के साथ पतली होती गई, और यह महीन होती जा रही है। आर-पार का खेल साफ-साफ नजर आ रहा है। देखा जाए तो इस हमाम में सारी चीजें एक जैसी हैं। बॉलीवुड ने इसे एक असरदारक खुराक दी जा रही है, जो दर्शकों को पिलाई जा रही है। अगर देखें तो जिस तरह से हमने शुरुआती काल में देखा और अब देख रहे हैं, तो इसमें काफी परिवर्तन हुए हैं, लेकिन इस गुलशन में कई गुलजारों ने ऐसी मह0क छोड़ी है, कि वह हीरे की तरह दमक रही है। शीला की जवानी और मुन्नी जो बदनाम होने का दावा कर रही है, उससे पहले भी कई दावेदार हो चुकी हैं। 70-80 या उससे पहले की दशक की बात करें तो मधुबाला की बेला में सब लोग कायल थे। हर कोई मधुबन की तरह मोहित थे, उसकी एक मुस्कान पर हर कोई नया बखेड़ा खड़ा कर सकता था। फिर नई करवटें आई और राज कपूर एक नई सोच लेकर आए। उन्होंने उनके काल से 50 साल आगे की फिल्में बनाकर लोगों को एक नया नजरिया दिया। लोग सिनेमा को पसंद करने लगे। इस दौर में नरगिस जहां लोगों को भार्इं, वहीं जीना तमान ने सत्यम शिवम सुंदरम में जो जिस्म दिखाया, वास्तव में वह जिस्म आज तक दर्शकों के जेहन में उतरा हुआ। उन्होंने शीला और मुन्नी से भी कम कपड़े पहने थे और उससे भी बेहतर रुमानियत पैदा कर रही थीं। आज भी जब उनका ख्याल मन में आ जाता है, तो न मुन्नी अच्छी लगती है और न ही शीला। हां इन्होंने मेकअप की चादर अधिक ओढ़ ली है, इसलिए गोरापन और चमकदार अधिक दिखाई दी, लेकिन जीना में अधिक जान थी, लोगों के होश उड़ाने वाली थी जीना। हां अब शीला बेधड़क अपनी जवानी का बखान कर रही है और मुन्नी बदनामी का ठिकरा दे रही है। इस हाड़ दिखाने और जिस्म से लोगों को बहलाने-फुसलाने का यह जो एक नया चश्मा तैयार किया गया है। इसमें बॉलीवुड को दिखाया जाता है, वह भी अंधेरे कमरे में। हां कैटरीना बेहद खूबसूरत लड़की हैं, लेकिन भारतीयता की झलक उनमें थोड़ी कम ही दिखाई देती है, लेकिन हमें तो गोरी चमड़ी से प्यार है और इसी प्यार को इकरार में बदलना भी आता है। इसलिए शायद हमें मुन्नी की आवाज अच्छी लगी, उसके लटके भी अच्छे लगे, लेकिन जब शीला ने जवानी का राग अलापा तो हम भी मर्द हैं का नारा लगाने लगे। यह सालों और सदियों का सवाल नहीं है, सवाल यह है कि आखिर इस तड़के को जो रूप दिया गया है, उस अंजाम तक यह पहुंचा नहीं है। अगर शीला और मुन्नी ही हर चीज होती तो इनसे भी नीचे नंगाई पर उतर चुकी हैं हमारी बालाएं। ये खूबसूरत बलाओं से कुछ नहीं होता, जब तक ठोस आधार न हो, कहानी शानदार न हो, तभी तो इस शीला और मुन्नी से ज्यादा थ्री इडियट्स के चर्चे रहते हैं। वह लोगों को पसंद भी आती है। कारवां यूं ही चलता रहता है, और हमें नए अवतारों को धारण करवा दिया जाता है। बस यह निर्भर हम पर करता है कि हमारे सामने जो परोसा गया है, उसमें से हम क्या लेते हैं, क्योंकि यहां कई ऐसी चीजें हमारे सामने पेश कर दी जाती हैं, जो दिखने में तो बेदह खूबसूरत रहती हैं, खुशबू भी उनकी अच्छी रहती है, लेकिन स्वाद के तराजू पर आकर इनका वजन कम हो जाता है। इसलिए भड़काऊ देकर चर्चा अधिक हो जाते हैं, यह थोड़ी गलतफहमी हो सकती है, मगर ठोस, ठोस ही होता है और उसका रूप ही झनकार रहती है।
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