Thursday, January 27, 2011
इंसाफ को हारने मत दो
देश में जो मकड़जाल फैला है, उससे निपटने के लिए न जाने कितने तरीके अपनाने पड़ते हैं। ऐसे में आम आदमी का तो जीना ही दुश्वार रहता है। आज हमारे समाज में कई खोखले नेता हैं, और यह सिस्टम पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त हो गया है। ऐसे में आम आदमी को इंसाफ कई बार नहीं मिलता है, आवाज बुलंद भी करो तो उसे दबा दी जाती है। जब तक ईश्वर और हौसला रहता है, तब तक हमारे देश में कई असंभव चीजों को भी संभव बना दिया जाता है, लेकिन पैसा हर चीज की चाबी बन गई है। देखा जाए तो हमारे देश में संतोष मट्टू हत्याकांड हो, या फिर नोएडा में नर कंकाल वाली घटना। जेसिका लाल हत्याकांड इन सबमें ही जीत पाया है,सिर्फ जेसिका को ही न्याय मिल पाया है। जब जेसिका मरी तो वह दूसरा जन्म नहीं ले पाई, वह इसलिए नहीं ले पाई, क्योंकि उसे अपने कातिलों को सजा दिलानी थी। इस खूबसूरत लड़की की जान उस अय्याश और गुस्सैल मनु शर्मा ने की थी। मगर उसकी आत्मा ने चीख -चीख कर कई बार कहा यह कातिल है, फिर भी सिस्टम सोया हुआ था। लेकिन पूरे देश ने जब एक स्वर में शंखनाद किया तो फिर क्या था, बड़े लोगों को भी झुकना पड़ा और जेसिका को इंसाफ मिल गया। यह मीडिया और समाजसेवियों के साथ जनता का सड़क पर आना था। इन सबके प्र्रयास के बाद ही उसे इंसाफ मिल पाया, वह भी आठ सालों बाद। हां शायद जस्टिस में डिले हुआ, लेकिन अंतत: इंसाफ मिल गया। इस दौरान जेसिका के परिवार पर क्या गुजरा, यह कोई नहीं समझ सकता है, लेकिन इतना तो तय है कि जो जेसिका के साथ हुआ था, वह हम में से किसी के भी साथ हो सकता है, और क्या हम उतना लड़ पाएंगे। सवाल कई हैं, लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं है, क्योंकि हर कोई अपनी कॉलर घुमा लेता है और कहता है यह हमारा मामला नहीं है। यह तो सिर्फ जेसिका का या संतोष मट्टू का मामला है। या फिर उन परिवारों का है, जिन्हें मोनिंदर अपने घर में नर कंकाल बनाकर गाड़ देता था। ऐसे ही न जाने कितने लोग हैं, जिन्हें आज तक इंसाफ नहीं मिला है। और आज भी वो इंसाफ के लिए भटक रहे हैं, कब उन्हें मिलेगा यह हममें से कोई नहीं जानता है। बस हम घर में बैठकर सही और गलत पर बहस करते हैं। हमारे समाजसेवी जो टीवी चैनलों पर आ जाते हैं और वहीं अपनी आक्रोशता जताते दिखाई देते हैं, जबकि आज जरूरत है सामने आने की। जमीन पर हंगामा मचाने की, जब तक हम इसके लिए जमीन तैयार नहीं करेंगे, यहां पर कार्य नहीं करेंगे तब तक किसी को इंसाफ नहीं मिलेगा। जिस तरह से अंग्रेजों के बनाए सिस्टम पर हम कार्य कर रहे हैं, वह आज भी हमें गुलामी का अहसास दिला रहा है। हमें लगता है कि हां हम उनके निर्देशों का पालन कर रहे हैं, 200 सालों की गुलामी का असर 50-60 सालों में कैसे जा सकता है। हमारे पूर्वज गुलाम थे और हमने जन्म तो ले लिया, लेकिन उस मानसिकता को त्याग भी नहीं पाए हैं। ऊपर से यह बड़ा सवाल है कि आखिर उन चीजों को बदलेगा कौन? आज हमारे यहां सांस लेने पर भी कई बार बखेड़ा खड़ा हो जाता है, तो फिर नियमों और कानून में बदलाव किया जाएगा तो सबकी आंखें तेज होंगी। हो सकता है विरोध विकृत होकर विद्रोह न बन जाए। इसलिए इस पागल सांड पर कोई नकेल कसने का रिस्क नहीं ले सकता है। इसलिए जो चल रहा है, उसे चलने दो , बात हमारी नहीं है, यह तो किसी दूसरे की है। उन सबके बीच में हम इस अहसास को भूल ही जाते हैं कि हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। हम तो बस अपने हित में जीते-मरते हैं। समाज में क्या हो रहा है, इससे कोई लेना देना नहीं है। एक बार अपने जमीर को जगाकर, किसी अन्याय के खिलाफ कोई मार्च तो निकाल कर देखो। हां यह हो सकता है कि तुम इस मार्च में चार या पांच हो, लेकिन पहला कदम तो बढ़ाओ, देखना लोग अपने आप आपके साथ हो जाएंगे। हर कोई आपका साथ देगा। यहां तो पेट्रोल में भी अपने आप आग नहीं लगती है, उसे भी चिंगारी दिखानी पड़ती है, इस समाज में सब सोसुप्त अवस्था में हैं, इन्हें नींद से जगाना होगा, अगर इसमें हम कामयाब हो गए तो फिर हर कोई जाग उठेगा, फिर किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होगा।
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