Saturday, January 22, 2011

बूढ़े दिल का जवान इश्क


हर दिल जो प्यार करेगा, यह एक सार्वभौमिक सत्य के तराजु पर खरा उतरता है, हां समाज के कुछ अपवादों को छोड़ दें तो। यहां इश्क तो पहला ही माना जाता है, लेकिन आज कल इस इश्क के मायने काफी बदल चुके हैं। यह 17-18 साल का वह प्यार नहीं रहा, जिसमें लड़के-लड़की अपने माता-पिता से छुप-छुप कर अपने प्रेमी से मिलते हैं। उस समय हर किसी का डर, घर से लेकर बाहर तक। वादा भी होता है शादी का, कभी-कभी कुछ साहस करके भाग भी जाते हैं और कुछ आत्महत्या भी कर लेते हैं। उस समय निश्छल प्रेम होता है, इसके अलावा और कोई भी बात नहीं सोची जाती है, लेकिन आज-कल की लव स्टोरी में काफी परिवर्तन हो गया है। अब इसमें न तो उम्र की सीमा रह गई है, और न ही कोई निश्छल प्रेम जैसी बात। तभी तो निशब्द जैसी फिल्म में अपनी बेटी की दोस्त से इश्क फरमाता पिता दिखाया गया है। यह एक कहानी नहीं है, बल्कि ऐसी सैकड़ों कहानियां हैं जो हकीकत से रूबरू हुई हैं। अगर हम देखें तो वो अमीर लोग जिन्होंने सबकुछ हासिल कर लिया है, एक मुकाम पर जाकर उन्हें ऐसी बंदी से इश्क हो जाता है जो उससे आधी से भी कम उम्र की रहती है, या कहें कि महज 20-21 साल की। तो आम इंसान इसे क्या कहेगा, वह तो अय्याशी का नाम दे देगा, लेकिन कुछ चीजें होती हैं जो इस अहसास को मरने नहीं देती हैं, और जिंदगी में एक रुमानियत कायम रखती हैं। हमारे सामने कई उदाहरण भी हैं, और कई समाज के डर से छिपे हुए हैं। राजा-महाराजाओं की बात कुछ और थी, लेकिन आज कल समाज इसे स्वीकृति नहीं देता है। अब तो हमउम्र के बाद अगर इश्क फरमाया जाता है,तो उसे कुछ और नाम दे दिया जाता है। अगर मनोवैज्ञानिक रूप देखा जाए तो न सिर्फ यह भाव बूढ़े मर्दों में होता है, बल्कि हसीन कलियों में भी उस पके हुए फूल से इश्क लड़ाने का मन करता है, हां इसके पीछे जहां कच्छी कलियों को पैसा, ग्लैमर और स्टेटस भाता है, वहीं पके हुए फूलों को अपनी जवानी का अहसास रहता है। उन्हें लगता है कि जिंदगी अभी जवान है, क्योंकि उनके पास एक जवान साथी है। हां हमारे देश में इस तरह का जो भी कुछ हो रहा है, वह सामने नहीं होता है और प्यार पनपता है तो बंद कमरे में। सार्वजनिक स्वीकार करने का साहस न तो लड़की उठा पाती है, और न ही वह बूढ़ा दिल, जिसके बच्चे ही उसके प्यार की उम्र के होते हैं। जबकि विदेशों में इस तरह का कल्चर अब सामान्य आ गया है, वहां पर प्यार होता है तो उसे बकायदा स्वीकार कर लिया जाता है, और इससे किसी को कोई समस्या नहीं होती है, क्योंकि वो लोग अपनी-अपनी जिंदगी खुद जीने में विश्वास रखते हैं, फैसलों पर दूसरों की मुहर का इंतजार नहीं करते, जबकि हमारे यहां कहानी बिलकुल विपरीत है। इन सबमें सबसे अधिक वो ही लोगों के इस तरह के संबंध बनते हैं जो बेहद अमीर होते हैं और उन्हें पैसे कमाने का कोई डर नहीं होता है, जबकि उन्हें प्रेम की आड़ में जिस्म की आग बुझाने की ख्वाहिश होती है। इन्हीं लोगों में हैं सरकोजी , बर्लुस्कोनी, पुतिन और न जाने कितने लोग। यहां गलत कहने का अभिप्राय बिलकुल भी नहीं है, लेकिन इन लोगों के रिश्तों में गर्माहट कितनी रहती है, यह वे स्वयं ही जानते हैं, इन लोगों के रिलेशन में न तो सच्चाई की महक होती है और न ही भरोसा। हां हर जगह त्रिकोण नजर आता है, यह त्रिकोड़ रहता है इनका मिला-जुला। इसमें दो कोने तो इन लोगों के होते हैं, लेकिन दोनों का एक-एक कोना किसी दूसरे से जुड़ा रहता है। यह इनके जीवन की सच्चाई है, जिससे ये लोग कई बार अनजान भी रहते हैं और कई बार जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं। यही है इनकी जिंदगी जो सालों से चलती आ रही है और आने वाले सालों में चलती रहेगी। जीवन इनका यही रहेगा, जिसमें बूढ़े फूल को इश्क कच्ची कली से होता रहेगा और वह कली भी अपनी सुरक्षा के लिए उस फूल के आगोश में आने से गुरेज नहीं करेगी। यह सदियों से हो रहा है और हमेशा चलता रहेगा, इसमें बुराई भी नजर नहीं आती है, क्योंकि दोनों पक्षों की हां के बाद ही इसे अंजाम दिया जाता है।

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