Wednesday, July 21, 2010
मुरली की तान पर विकेट दौड़े चले आते हैं...
हमने अभी तक सुना था कान्हा की बांसुरी इतनी सुरीली थी कि गाएं दूध देना शुरू कर देती थीं, गोपियां नृत्य करने लगती थीं। कहीं दूर कोई हो तो वह मुरली सुनकर दौड़े चले आते थे। कुछ ऐसा ही श्रीलंका के गेंदबाज मुथैया मुरलीधरण के साथ भी दिखाई देता है। क्रिकेट का ब्लैक जादूगर के पास वह करिश्माईकलाईहै, जिसने पूरे विश्व के नाक में दम कर रखा है। पिछले दस-बारह साल में इसके कद को कोई भी छू नहीं पाया है। साधारण सा चेहरा, हमेशा मुस्कान रहने वाला जब यह खिलाड़ी मैदान पर उतरता है तो यह और खूंखार हो जाता है। गेंदों तो इसके इशारे पर नाचती हैं, और जब मुरली की तान बजती है तो समझ लो विकेट दौड़े चले आते हैं, जब यह दहाड़ता है तो फिर श्रीलंकाई शेरों के आगे कोई टिक नहीं सकता है। सालों से यह जादू देखने के लिए क्रिकेट प्रेमी तरसते हैं, विरोधी टीम वाले भी इस बाजीगर के कायल हैं। क्रिकेट के लिए हमेशा 101 प्रतिशत देने की तत्परता ही इस मुरली को दूसरों से अलग करती है, कई बार उनकी कलाई पर कम बुद्धि वालों ने सवाल खड़े किए, मगर सच तो आईने की तरह होता है और उसे झुठलाया नहीं जा सकता है, ठीक वही हुआ और मुरली बेदाग होकर निकले, और खूंखार बनते चले। एशिया से लेकिन अफ्रीका हो या फिर आॅस्ट्रेलिया, इनकी टक्कर का कोई खिलाड़ी नहीं है। अगर स्पिन की जादूगरी और बुलंदी को नापें तो दो खिलाड़ी ही विश्व में आते हैं, पहले मुरलीधरन और दूसरे शेनवॉर्न। अगर यहां यह कहा जाए कि जिस तरह बैटिंग में भगवान सरडॉन बै्रडमैन थे, उसी तरह बॉलिंग का कोई सर डॉन ब्रैडमैन है तो वह मुरली ही है। इनके खेल में वो जादू है कि लोगों को दीवाना बना दे, हर कोई इनकी तारीफ करता नहीं थकता। आॅफ द फील्ड भी इस खिलाड़ी का कोई जोर नहीं है, लेकिन यह इस शहंशाह ने अब टेस्ट क्रिकेट से अलविदा कहने का निर्णय लिया है। हालांकि गाले टेस्ट उसका आखिरी टेस्ट है, लेकिन आज भी धोनी जिस गेंद पर आउट हुए हैं, वह अद्भुत गेंद थी। इनकी तरकश के तीर देखकर कई बार तो स्वयं मुरली भी अचंभित हो जाते हैं, वाह क्या गेंदबाज है, लेकिन अब यह हमें ज्यादा देखने को नहीं मिलेगा, यह श्रीलंका ही नहीं पूरे विश्व के लिए एक दु:खद समाचार है। श्रीलंका टीम तो सूनी हो जाएगी, क्योंकि इनकी जगह भरना काफी मुश्किल है। इस बुलंद बादशाह के उफान और विदेशी टीमों को नाकों चने चबवा देने वाला यह गेंदबाज का शौर्य अतुल है, उसका कोई सानी भी नहीें है, बस दिल में मलाल यही रहेगा कि अगली बार श्रीलंका टीम खेलेगी तो उसमें मुरली नहीं होंगे, तब शायद दूसरी टीमें राहत की सांस लें, लेकिन जिन्हें मुरली भातें हैं वह तो दु:खी ही होंगे। बस इस बादशाह के सन्यास पर ऐसी विदाई देनी चाहिए, कि जाने का दु:ख न हो?
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