
ेउनकी शादी अभी-अभी हुुई थी और वो मां के दर्शन के बाद जीवन की शुरुआत करना चाहते थे, इसलिए वो उस टेÑन में सवार थे। एक भाई बॉर्डर से बहुत दिनों बाद छुट्टी मिलने पर अपने घर अपनी मां-बाप और बीवी से मिलने जा रहा था। एक युवा जो अपने जीवन के 25 बसंत पढ़ाई करते-करते बिता देने के बाद वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए नौकरी करने जा रहा था। एक भाई अपनी बहन से मिलने जा रहा था। लेकिन इन सबका मिलन अधूरा रह गया, क्योंकि जिस जिंदगी में खुशियों के लिए ये लोग जा रहे थे, वहां से इन्हें मौत मिली। और इस मौत के बाद इनके साथ जुड़े कई लोगों को गम का साया जिंदगीभर के लिए मिल गया। जी हां... ये वो लोग हैं जो कर्मभूम में बैठे हुए थे और नींद ले रहे थे, लेकिन उन्हें क्या पता था कि बीती रात जब वो नींद के आगोश में जाएंगे तो वहां से वापस ही नहीं लौटेंगे। हुआ ही कुछ इतना दर्दनाक, टेÑन हादसे ने उनकी जिंदगियां तबाह कर दी। अब इसे तो इत्तेफाक कह सकते हैं क्योंकि हादसों पर तो किसी का जोर नहीं चलता, लेकिन बार-बार लगातार हो रहे हादसों के लिए कोई न कोई तो जिम्मेदार होगा ही। कहीं न कहीं पटरियों की लचर व्यवस्था, भ्रष्टाचार, कार्य प्रणाली और जिंदगियों को महत्व न देना। अगर देखा जाए तो ममता बेनर्जी ने बजट के समय में उम्मीदें तो खूब जगाई थीं, ममता भी खूब लुटाई थी, लेकिन वे सब धरी की धरी रह गई, उनकी ममता मुसीबत बन गई, उन्होंने राहत की रेवड़ी तो बांट दी, लेकिन सुरक्षा के मामले में जरा 17 ही साबित हुई, नतीजा यह हुआ कि जब से ममता ने कार्यभार संभाला है, टेÑनों की दुर्घटनाएं बहुत बढ़ गई हैं, और हर बार जांच के नाम पर जिम्मेदारों को छोड़ दिया जाता है। इतने टेÑन हादसे हुए, इतने लोगों की जानें गई और इतनी जांचें बैठी, लेकिन उन जांचों में से कौन सी पूरी हुई, इसके बारे में शायद हम भी नहीं जानते हैं, तो गलती किसकी है, क्या उस व्यक्ति की जो उसमें सवारी करके अपनों तक पहुंच रहा है या फिर उनकी जो उनका इंतजार कर रहे हैं। पहली नजर में देखा जाए तो यही दिखाई पड़ रहा है, लेकिन जितनी आसान स्थिति हम समझ रहे हैं, वैसा है नहीं, क्योंकि यहां पर पूरा रेल प्रशासन जिम्मेदार है, चपरासी से लेकर मदरासी तक, उन्हें क्या फर्क पड़ता है, दूसरों के घरों में मातम मनने पर कोई दु:ख नहीं होता, दर्द तो तब होता है, जब वह अपने घर में हो। रेलवे जिस तरह से लचर व्यवस्था से चल रहा है, वह निश्चय ही चिंता का विषय होना चाहिए। मगर मैडम ममता को तो राजनीति के जोड़-तोड़ से ही फुर्सत नहीं मिलती है तो वो इस पर क्या ध्यान देंगी। जब कभी भी कोई हादसा होता है तो वो दौरा कर राहत बांट देती हैं और मामले की जांच होगी, दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा, जैसी बातें कहकर मामले को ठंडे बस्ते मेें डाल देती हैं। कभी भी रिजल्ट सामने नहीं आया और मौतों का सिलसिला लगातार जारी है, इसके लिए कहीं न कहीं लापरवाही भरा रवैया ही है, जो जिंदगी को कुछ नहीं समझता है। आखिर इन मौतों की कीमत ममता को इस्तीफा देकर चुकानी होगी, क्योंकि यहां 50 से अधिक मौतें हो गई हैं और न जाने कितने घायल तो ऐसे में स्थिति स्पष्ट है कि उनसे कार्य संभल नहीं रहा है, वो दस जनपथ के चक्कर लगाने में ही बिजी हैं, ऐसे लोगों को जिम्मेदार पदों से फौरन हटा देना चाहिए, क्योंकि यहां पर किसी की मौत और किसी की जिंदगी का सवाल रहता है...और अगर संभला नहीं गया तो इस तरह के हादसे होते रहेेंगे और उन्हें दुर्भाग्यवश करार देकर टेÑनें मौत बनकर पटरी पर दौड़ती रहेंगी।
अफसोसजनक और दुखद घटना!
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