Saturday, July 17, 2010
इन्हें तो फांसी पर चढ़ा दो...
हिंदुत्व का डंका पीटते रहते हंैं, शांति स्थापना के लिए ये लोग मारकाट मचाते हैं, किसी के ऊपर दादागिरी दिखाना इनका शौक बन गया है, लोगों से पैसा वसूली, मकान खाली करवाना, चाकू बाजी करना जैसे ढेरो अपराध आरएसएस के कार्यकर्ता कर रहे हैं, और ऊपर से जवाब आता है कि यह प्रदर्शन शांति पूर्वक किया गया, वाह क्या जवाब है, मीडिया ने इनके कुकर्मों और अराजकता को सरेआम किया तो ये खौल उठे, सच्चाई को जो हजम कर जाए, उसे ही मानव की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, मगर यहां तो कुछ और ही चल रहा है। तीज त्योहारों पर धर्म और संस्कृति के नाम पर सरेराह लोगों को पीटना, गुंडागर्दी करना इनका पेशा हो गया है, आरएसएस पूरी तरह से तानाशाही की ओर चला गया है तो आखिर ये लोग हमारी संस्कृति के संरक्षक कैसे हो सकते हैं। ये तो खुद उसका बंटाढार करने में तुले हुए हैं, तो उन्हें हम अपना कैसे मान लेें। मीडिया की सच्चाई से ये इतने तिलमिला गए कि उस पर प्राण घातक हमला ही कर बैठे, जिसका वीडियो यह बता रहा है कि इनमें कितनी उग्रता थी। और इनके कर्ताधर्ता इसे शांति पूर्वक प्रदर्शन बता रहे हैं। निश्चय ही इस संगठन को नक्सलवाद से कम नहीं माना जाना चाहिए और सरकार को इस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए, क्योंकि यह रौब अगर अभी नकारा गया या इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो निश्चय ही यह समस्या को और अधिक विकराल कर देगा, तब यह एक बड़ी समस्या के रूप में मौजूद रहेगा और इसका भुगतान देश की जनता ही करेगी। फिलहाल तो सरकार को इस कसौटी पर पूरी तरह से खरा उतरना चाहिए, क्योंकि जिस तरह से इन्होंने देश का अपनी जागीर समझकर उस पर मनमानी कर रहे हैं, उस पर काबू पाने की आवश्यकता है। अगर अभी कोई प्रत्यन नहीं किया गया तो यह सरकार के साथ देश की नाकामी होगी। जिस तरह से राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अपनी तानाशाही चला रखी है, उसी तर्ज पर संघ भी आ रहा है, आखिर ये हैं कोैन, और इन्हें अधिकार क्या है कि देश की संस्कृति बचाए, छुटभैये नेता बनकर अपनी ताकत दिखाते हैं। ये लोग अपने फैसलों से आम जनता को त्रस्त कर देते हैं और वह बेचारी अकेली होती है, इसलिए ये लोग उसे दबा देते हैं। यहां दिक्कत यह भी है कि ये लोग युवाओं को भटका रहे हैं , उन्हें संघ में आकर उनसे गुंडागर्दी करवाई जा रही है। हालांकि समझदार और पढ़े-लिखे युवा इसमें भागीदारी नहीं निभाते, लेकिन जो कम पढ़े-लिखे हैं और बेरोजगार हैं, वो इनके नुमाइंदे बन जाते हैं, इस विकट परिस्थिति से देश को बचाना होगा, साथ ही इसमें परिवार के लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका बनती है, उन्हें अपने घर के सपूतों को इसमें जाने से रोकना चाहिए, क्योंकि यहां कोई भविष्य नहीं है, अगर आप उन्हें नहीं रोकेंगे तो आखिर कौन रोकेगा और अगर यहां नहीं रोका गया तो निश्चय ही इनकी ताकत बढ़ती जाएगी और जब ताकत का मद चढ़ता है तो विध्वंस होता है। इसलिए आरएसएस की तानाशाही को यहीं रोकना होगा, वरना यह देश के लिए घातक सिद्ध होगा। सरकार को भी अपनी ताकत दिखानी होगी और इन लोगों को सख्त से सख्त सजा देनी होगी, अन्यथा ये लोग हमें शांति और आजादी से जीने नहीं देंगे।
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ReplyDeleteबड़ा कॉमेडी लेख है भाई… मजा आ गया… :)