Saturday, May 8, 2010
इस बार ढहा दो ‘कैलाश’
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर खतरा मंडरा रहा है, सत्ता की कुछ मदहोश ताकतें लगातार प्रहार कर रही हैं, लेकिन हम हैं कि नींद खुली होने के बावजदू चादर ओढ़कर सोने का नाटक करने में जुटे हैं, आखिर क्यों? क्या मर गया है हमारा जमीर, क्यों हम इन सत्तासीनों के चरणों के मोहताज बने बैठे हैं, हम इनकी आज्ञा और इनके तलुओं में स्वर्गीय जीवन क्यों महसूस कर रहे हैं। चंद नोटों के ये जादूगर हमारे गैरत को ललकार रहे हैं, हमारे घर में आकर हम पर ही हमला कर रहे हैं और हम नपुंसकों की भांति सब चीज को तमाश बने देख रहे हैं। यही हाल रहा तो कल को इनकी मर्जी से ही हमारे घरों की औरतें कपड़े पहनेंगे, तब भी हमें चुप रहना होगा, क्योेंकि हम आज भी चुप हैं। क्या हम अपने पेशे के साथ गद्दारी नहीं कर रहे हैं। जब पत्रकारिता की नींव रखी गई थी तब तो ऐसा नहीं था, और जब हमने इसमें प्रवेश किया, तब हमारे सारे सपने और सारे कर्त्तव्य कहां चले गए। हमारी पूजा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, ये दलाल उसकी आब्रू सरेराह लूट रहे हैं और तब भी हम मुंह में चुप्पी धारण किए हैं, क्या जीवन है , शर्मनाक... अगर अब भी नहीं जागे तो कल हमारा नहीं, इन गुंडों का होगा। आखिर हम भी तो उसी समाज का हिस्सा है, जहां एकता को सबसे बड़ी शक्ति माना गया है। जब मंच पर आग लगती है तो सभी अपनी-अपनी जान बचाते हैं, लेकिन घर में आग लगती है तो सभी एक-दूसरे की जान बचाते हैं। आज यही स्थिति बन पड़ी है, हमारी पत्रकारिता, हमारे गौरव, हमारे अस्तित्व और हमारी कर्मभूमि पर इन सियासत के गुंडों ने हमला बोल दिया है, इस र्इंट का जवाब अगर पत्थर से नहीं दिया गया तो फिर हमारी कलम न तो कभी सही लिख पाएगी और न ही हमारी आवाज जनता की पुकार बन पाएगी। हमारे प्रदेश की इस गुंडा कंपनी का सफाया ही अब हमारा मिशन होना चाहिए। शुरुआत किसी ने कर दी है, बस हमारा साथ उसे चाहिए, क्योंकि लड़ाई अकेली लड़ी जाती है, लेकिन युद्ध कभी भी अकेले लड़ा नहीं जा सकता है, यह धर्मयुद्ध है, जिसमें सत्य परेशान हो रहा है और यहां हमारा धर्म बन गया है कि इसे पराजित नहीं होने देना है, क्योंकि आज यह पराजित हो गया तो कल हम मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे और इसके जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि हम स्वयं ही रहेंगे। आज मीडिया की ताकत को दिखाने की जरूरत है, जरूरत है उस कलम की स्याही को दिखाने की जिसने आजादी से पहले और आजादी के बाद हर बुरी ताकत का सिर धड़ से अलग किया है। जब इतना बड़ा गौरव है हमारे साथ तो कुछ नोटों के लालच में क्यों हमारे कर्त्तव्य हो हम भुला बैठे हैं, आज घर के सारे गिले-शिकवे भूलकर बस इन कैलाश जैसे मठाधिशों और इनकी दानवी सेना का वध करने का समय आ गया है।
यहां सिर्फ मध्यप्रदेश या इंदौर की लड़ाई नहीं है, बल्कि हर उस काली ताकत के विरुद्ध है जो आज खुद को आगे मान रही है। अब पूरे देश को एक साथ आगे आना होगा, यहां न सिर्फ सही लोगों को, बल्कि जनता को भी, जिसके लिए यह कलम हमेशा लड़ी है, घर पर हमला हुआ है, इसका जवाब तो कैलाश और मेंदोला जैसे कुंडलीधारियों को जवाब देना ही होगा, और इसमें भूमिका निभानी होगी, इस पवित्र कलम के रखवालों की। आज जागने का समय है, कर्त्तव्य निभाने का दिन है, तो उठ जाओ, ठीक उस तरह जिस तरह एक क्षत्रिय युद्ध भूमि में शहीद होकर अपना जीवन धन्य मान लेता है, उसी तरह आज कलम वीरों को कार्य करना होगा। वरना सत्ता के यह दलाल पत्रकारिता और कलम की ताकत को अपनी रखैल मान लेंगे, और इसके लिए कोई और नहीं बल्कि हम ही जिम्मेदार होेंगे। तब क्या हम अपने आपको यह कहलाना चाहेंगे कि हमारी पूजा किसी की रखैल है...उठ जाओ और इस धर्मयुद्ध में ऐसा शंखनाद करो कि बस कलियुग के ये जहरीले नागों का फन कुचल जाए...।
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