Monday, May 3, 2010
गरीब भूख से मरे, अपराधी विलास करे
देष की इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है, कि जो हाथ देष के लिए उठते हैं, जो उसके लिए अपना खून पसीना तक बहाने से नहीं चूकते, उन्हें मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है, जबकि जो देष का खून बहाते हैं, उनका ख्याल ऐसे रखा जाता है, मानों जैसे कोई ष्षाही मेहमान हो, इससे तो देष की नीतियों और नियमों पर तरस आता है। हम एक करोड़ की आबादी से बहुत अधिक हो गए हैं, नए-नए विकास के चरणों को छू रहे हैं, लेकिन बिछड़ों के प्रति हमारा जो रवैया सदियों पुराना था वह आज भी है। हम आज भी गरीबों को जूतों के पास ही जगह देते हैं, जबकि जो ष्षक्तिषाली होता है, उसकी आवभगत करने में एक पल भी नहीं चूकते हैं। देष के पटल पर जो गरीबों के साथ हो रहा है, उसे सिर्फ खिलवाड़ के अलावा और कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। अगर देखे तो देष की आधी से अधिक आबादी गरीब है, लेकिन सरकार न तो इसके लिए रोजगार उपलब्ध करा रही है और न ही इनके जीवन सुधार के लिए कोई व्यापक इंतजाम कर रही है। जबकि कसाब जैसे खूंखार आतंकवादी को सुविधाएं- ही सुविधाएं दी जा रही है। यह कहां का न्याय है, जहां अपनों के साथ सौतेला जैसा व्यवहार हो रहा है। जिस कसाब ने 50 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारा है, हम उसकी सुरक्षा पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रहे हैं, इसे क्या कहंेंगे, क्योंकि जहां यह गद्दारी हो रही है वहीं हमारे गरीब और मजदूर भी हैं, जो मजबूर होकर अपनी जान दे देते हैं। तो हमारा फर्ज किसके लिए, उस हत्यारे कातिल कसाब के लिए या फिर हमारे देष की जनता के लिए। किसका ठेका लेकर बैठे हैं, किसकी सुरक्षा का कत्र्तव्य हम निभाने में जुटे हैं...,इस पूरी उठापटक पर देष के खोखले पन का अहसास हो रहा है, क्योंकि जो किसान देष को खाना खिलाता है, उसके साथ बेरुखी हो रही है, जो मजदूर हमारे घरों को रोषन करते हैं, उनके यहां हम मजबूरी के अंधेरे को पसरने देते हैं। हमार युवाओं को नौकरी दे पाने में हम असमर्थ हैं, जिसके चलते उन्हें अपनी जानें देनी पड़ रही हैं, वहीं महिलाओं के लिए हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं...ऐसे सैकड़ों मुद्दे हैं, जिन पर हमने खामोषी कायम कर रखी है, और कोई भी हल निकालने का म नही नहीं बनाकर बैठ गए हैं, वहीं कसाब जैसे गुनहगारों की बात आती है तो उसके लिए हम पाइव स्टार जैसे व्यवस्था कर देेते हैं। क्या कहने हैं इस देष के, जो अपने बाजुओं को तो कटने और मरने के लिए छोड़ देता है, मगर जिन बाजुओं से हमारा गला उतारने के लिए कोई दुष्मन आता है, उन पर हम तेल लेकर मलने में जुट जाते हैं। यहीं है हमारे भारत का दुर्भाग्य, जिसे चंद लोग गर्त में ले जाने के लिए जुटे हैं। आखिर क्या जरूरत है, इतनी चाक-चैबंध सुरक्षा की, और अगर है तो अभी तक लगभग 17 महीनों से अधिक हो गए हैं कसाब को कैद में, कोई भी ऐसा सनसनीखेज राज नहीं उगलवा पाए हैं, जिससे लगे कि हां, इतने रुपए अगर उस पर खर्च हो रहे हैं तोवो जायज हैं... यह ऐसी समस्या है जो सुरसा के मुंह जैसी बढ़ती ही जाएगी, इसलिए बहुत जल्द इस पर कोई उत्तेजित निर्णय लेने की आवष्यकता है।
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