लड़ाई पानी पथ की हो या फिर महाभारत की, कलियुग में सरकार गिराने की हो या फिर किसी हत्या की। सड़क से लेकर षिखर तक और वहां से लेकर आसमान तक... हर जगह मान-अभिमान और तौहीन की जंग के साथ कष्मकष चलती रहती है। महाभारत की लड़ाई ही नहीं, इतिहास में जितनी भी लड़ाई हुई हैं, उनमें ही ये तीन बातें छुपी थीं। न द्रौपदी का चीर हरण कर पांडवों के अभ... See Moreिमान का खून कर उनकी तौहीन की जाती और न ही इतना बड़ा नरसंहार होता। फिर रामायण भी तो इसी का सार बताती है। हर युग के यही तीनों पात्र हैं, इनके बिना न तो क्रिया की संरचना हो सकती है और न ही हलचल। ईष्वर ने जन्म लिया हो या न लिया हो, दुनिया में पाप बढ़ रहा हो या फिर पुण्य फैल रहा हो, इससे किसी को कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि समय का चक्र हर मर्ज की दवा बनकर समुद्र मेें उठ रही हलचल को सदा ष्षांत कर देती है, नहीं ष्षांत कर पाती है तो मान-अभिमान और तौहीन को। जहां इनका ष्षील भंग होता है, वहां विद्धवंस आना पक्का हो जाता है, फिर यह उसी घड़ी आए या कुछ देर बाद, यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। सारे युगों में इसी को लेकर जंग छिड़ी थी, जीवन का उद्देष्य कोई सात्विक ज्ञान या मोक्ष नहीं था, बल्कि उसकी रचना भी इन्हीं तीनों के इर्द-गिर्द घूमती है, इनका पलायन संभव नहीं है, बल्कि इनकी परिक्रमा में जीवन फुर्र हो जाता है।
इसकी ष्षक्ति अपार है, यह सत्य है और कभी समाप्त नहीं हो सकता है, क्योंकि इस युग में भी तो इसी के बल पर दुनिया घसिट रही है, हर पग पर इन्हीं के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है और इनमें निर्बलों को सबलों के आगे हमेषा माथा टेक कर माफी मांगनी पड़ रही है। वर्तमान पूरा इसी के आसपास रचा बसा है, समाज में कोई बुराई, कोई भलाई, कोई अपराध, कोई गलत चीज, कोई अमानवीय घटना...हो इसका कोई औचित्य है या नहीं...इन्हें समझने से पूरा सार समाप्त नहीं हो पाता है, सार समाप्त होता है मान, अभिमान और तौहीन पर। कलियुग की सुबह से लेकर देर रात सोने तक इसी भंवरचक्र में जीवन उलझा रहता है। इसके बाद भी जो समय बचता है आर्थात् निंद्रासन का, उसमें भी ये व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ते हैं। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि मैं जीवन से परे हो गया हूं। अगर मृत्युंजय बनना है तो निष्चय ही इन पर विजय पानी होगी, तभी जय मिलेगी। अन्यथा सदियों से इनके चक्र मेें सभी धराषायी होते हैं, और आगे भी होते रहेंगे।
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