Monday, April 19, 2010

मोदी ने मार डाला


इस कुर्बानी नहीं, लेकिन आत्महत्या कहना ही बेहतर होगा, जिस तरह विचारों की वल्गाओं को वे अपने ट्विटर के माध्यम से कभी कसते थे तो कभी उन्हें ढील देते थे। इस तरह सालों तक राजनयिक की नाबाद पारी खेलने वाले थरूर के विचारों की आग उन्हें ले डूबी। हर बात में विवादों के पर्याय बने मि. थरूर जब से इंडिया में सियासत की डोर लेकर चल रहे थे तो उन्होंने हर मौके पर उसे हिलते-डुलते ही पाया। फिर चाहे सरकारी खर्च में आलीशान होटल का मामला हो या फिर विमान की पिछले भाग में बैठने वालों को कैटल क्लास कहा हो। फिर ट्विटर के नए-नए रहस्यों से इन्होंने हर बार एक नए विवादों को जन्म दिया। मामला कुछ शांत नहीं हुआ, ठीक उसी तरह जिस तरह किसी वीर को युद्धभूमि में पराक्रम दिखाए बिना रोक नहीं सकते थे, उसी प्रकार उन्हें व्यवहार को भी बदला नहीं जा सकता था। इन सब के बाद वे अपनी नई भूमिका में आए, उन्होंने सियासत से खेल के मैदान में बैटिंग करने उतरे। उम्र के इस पड़ाव में मगर वो यह भूल गए कि जब क्रिकेट के मैदान में उतरा जाता है, तो पूरी सावधानी के तहत, अन्यथा यहां आने वाली बाउंसरों से बल्लेबाज घायल हो जाता है। यही हुआ, आईपीएल के सबसे बड़े और मंझे हुए खिलाड़ी मोदी ने जब बाउंसर फेकी तो थरूर उसे संभाल नहीं पाए और हिट विकेट होकर स्वयं का विकेट गवां बैठे। उनकी पारी का अंत हो गया। मैदान में एक बार कोई आउट हो और एंपायर ने उसे करार दे दिया तो इस फैसले को कोई नहीं बदल सकता है, वही हुआ इनके साथ। अपने व्यवहार के कारण सोनिया के लिए परेशानी का सबब बन चुके थरूर से उन्होंने तौबा कर ली। इस तरह थरूर एपिसोड तो समाप्त हो गया, लेकिन मोदी एपिसोड अभी बाकी है। हालांकि आईपीएल की यह पिक्चर अभी खत्म नहीं हुई है, अभी क्लाइमेक्स की उम्मीद हम कर सकते हैं, क्योंकि टूर्नामेंट खत्म होने के बाद निश्चय ही ललित ने जो ललकार भरी थी, उससे थरूर तो थर्रा उठे पर बीसीसीआई कुछ अहम फैसले जरूर ले सकता है। इसलिए अभी इसे खेल में कौन जीतेगा और कौन हारेगा, इस पर सिर्फ कयास के अश्व ही दौड़ाए जा सकते हैं, इस पर महल नहीं बनाए जा सकते हैं, क्योंकि यह जमीन पोली है। रही बात राजनीति की तो उन्होंने इस्तीफा देकर सोनिया की टीम को राहत की सांस दी है, क्योंकि तगड़े विपक्ष ने संसद की कार्रवाई भंग कर डॉ. मनमोहन और मैडम सोनिया के लिए मुश्किल भरे हालात पैदा कर दिए थे, ऐसे में अगर वे कठोर निर्णय न लेते तो आगे कांटों भरे रास्ते बन सकते थे। इस पूरे घटनाक्रम में दो बातें सामने आई हैं, पहली तो यह कि किस तरह अपने पद का लाभ लेकर अपने वालों को उपकृत किया जाता है, वहीं दूसरी बात यह कि आखिर देश की निश्चछल सरिता को हमेशा भ्रष्टाचार का केमिकल हमेशा जहरीला करने पर तुला रहता है। तो दोष कहां है और इसे कैसे दूर किया जाए, इस पर न तो किसी का ध्यान जा रहा है और न ही कोई इस पर चिंतित नजर आ रहा है। हर कोई झोलियां भरने में तुला है। देश के क्या हालात हो गए हैं, यहां की जनता किन परिस्थितियों में जी रही है, इससे किसी को क्या लेना देना। बड़े बादशाहोें और मठाधिसों ने सरकार को अपनी माशुका और राजनीति को अपनी रखैल बनाकर रखा है। वहीं यह रखैल कब किसको ले डूबेगी यह भी निर्धारित नहीं है, क्योंकि सदियों से औरत का चरित्र और मर्द का मन कोई नहीं जान पाया है, फिर रखैल का तो काम ही यही होता है। यहां दल्लों की भरमार है, जो न्याय और सत्य का सौदा करने में भिड़े हैं। इस पूरे प्रकरण ने माहौल तो बनाया है, साथ ही जनता का विश्वास भी डिगाया है, क्योंकि बात जब क्रिकेट की आती है तो पूरा देश भावना की उस चरम गिरफ्त में होता है, जिस गिरफ्त में कर्ण का सूर्य को अर्घ्य देना रहता था, लेकिन वहां पवित्रता और श्रद्धा का बंधन होता है, यहां भावनाओं का और संवेदनशीलता का, पर इन्हें इन धूर्त थरूर और मोदी सहित कई लोग लोलुपता और लालसा के चक्कर में गाहे-बगाहे बेचते रहते हैं। अब इस एपिसोड में अगर और कुछ नए विवादों का जन्म होता है तो इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि यहां माल और मालामाल सहित सारे बड़े बादशाह उपस्थित हैं, किस ओर पलटी लेंगे, उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है।

1 comment:

  1. abhi to bahut saari cheejon ka pardafash hona hai..
    aage aage dekhiye hota hai kya??
    nice way of writing..
    keep it up..
    and also visit my blog..
    http://i555.blogspot.com/

    ReplyDelete