Sunday, April 18, 2010
राजनीति का अगला सम्राट कौन?
सपनों के पंखों पर सवार होकर हर किसी के इरादों ऊंचे आकाश् में उड़ने की लालसा पाले बैठा है। हर कोई विजयी रथ पर सवार होना चाहता है और इस देश के सुंदर रथ पर सवारी करना चाहता है। मजबूत इरादे, बड़े-बड़े घरौंदे वाले लोग राजनीति के इस खेल में अपने आप को श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ की की कतार में खड़ा करने में लगा है, लेकिन राजनीति की उठापटक में कौन 19 है और कौन 20, इसका तो निर्णय जनता के अधिकार में है। मगर जनता की बुद्धि को भी कई बार प्रभावित करने की कोशिशें इन नकली नेताओं की रहती है। साजिश का ये वो कारनामा कर दिखाते हैं, कि आम आदमी की बुद्धि तो वहां तक पहुंच ही नहीं पाती है। अब सवाल यह है कि आखिर 15वीं लोकसभा में तो यूपीए को विजय होने का गौरव मिला, वह भी अपनी शर्तों के आधार पर, लेकिन जहां तक बात यह है कि अगली लोकसभा में देश की दशा और दिशा क्या होगी। इसके लिए मंथन की आवश्यकता है। क्योंकि देश को विकास के रथ पर दौड़ाने का वादा करने वाली सरकार कहीं न कहीं स्वयं को उस कसौटी पर उतार नहीं पा रही है, जितनी उससे उम्मीदें की गई थी। हां यह सच है कि सोनिया निर्मित सरकार ने हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ प्रतिष्ठा अवश्य दिलाई है, लेकिन यह उन लोगों के लिए व्यर्थ ही है, जो दो जून की रोटी के लिए मोहताज रहते हैं, जो उठते तो भूखे पेट हैं और सोते भी उसी तरह हैं, आखिर उन्हें देश की विकास दर या आर्थिक लाभों के लिए दी जाने वाली सेवाओं से क्या लाभ। ऊपर से जिस तरह महंगाई ने समुद्री बिफरा रूप दिखाया है, उसने उस गरीब के पेट से लेकर पांव तक की हड्डियों को दिखा दिया है। इसलिए अगर सही बिंदुओं पर इस सरकार का मूल्यांकन किया जाए तो इसका रिपोर्ट कार्ड 10 में से 6 के आसपास ही बनता है, तो चलो इस सरकार को हम खारिज कर देते हैं, लेकिन रहा सवाल अगर इसे खारिज कर दिया तो फिर अगला कौन? आर्थात् जिस तरह से बिना पानी के प्यास, सांसों के बिना जिंदगी, नदी के बिना नांव, कॉपी के बिना पेन असहाय और व्यर्थ रहते हैं, उसी प्रकार देश की हालत है, क्योंकि यहां पर अगर दूसरे विकल्प की बात की जाए तो वह दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस में एक राजकुमार जो देश की उम्मीदों के पंखों पर सवार है, उससे बड़ी आशाएं हैं, खासकर गरीबों को, हालांकि वह कितना सफल होता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन सवाल यह है कि अगर मौजूदा सरकार अपना शत-प्रतिशत नहीं दे पा रही है तो दूसरे विकल्प का रास्ता साफ होना चाहिए, अन्यथा कुंठा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिस प्रकार एक वीर को जब उसके पुरुषार्थ के अनुसार मौका नहीं मिले तो वह कुंठित मन हो जाता है, वही स्थिति देश की हो गई है, यहां पर न तो कोई पक्ष है और न ही कोई विपक्ष। हर कोई सिकंदर बनने की होड़ में लगा है, सम्राटत्व का ताज रखने की कोशिश में जोड़-तोड़ कर रहा है, ऐसी स्थिति में में किस पार्टी और किस नेता पर विश्वास किया जाए, या फिर देश की राजनीति को उसी के हाल पर छोड़ दिया जाए, मगर ऐसा कर दिया गया तो इस देश को तबाही की गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता है। यहां भ्रष्टाचार की नदियां बह रही हैं और उसमें बड़े-बड़े मगरमच्छ भी गोते लगा रहे हैं, ऐसे में मासूमियत के साथ आम जनता फंसी हुई है, वह अगर इस नदी से बच भी जाए तो इन नदियों में मौजूद जिंदा मौत से आखिर कैसे बच पाएंगे। अब ऐसे में देश के सामने बड़ी विकट समस्या आ गई है, क्योंकि यहां पर कोई भी राजनीति का अगला सम्राट नजर नहीं आता है। हर कोई टुकड़े-टुकड़े में पार्टियों को जोड़कर राजनीति के दांव-पेंच खेलने के लिए तैयार भी है और मजबूर में।
दूर-दूर तक ऐसा सम्राट कोई नहीं नजर आता, जिसे कहा जा सके कि हां यह है राजनीति की सच्ची मिसाल, उसका सच्चा सम्राट।
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