Thursday, April 15, 2010

आतंकवाद पर भारी ग्रीन हंटर


मुंबई हमले के बाद अगर छोटे-मोटे हमलों को छोड़ दें तो निश्चय ही आतंकवाद पर थोड़ा काबू पाया जा सका है। भले ही इसकी दहशत हमारे दिलों में अभी भी बरकरार है, लेकिन इसे अब उतनी भयावहता से अंजाम नहीं दिया जा रहा है, इसके लिए सरकार मुस्करा भी रही है, मगर इस समस्या से बढ़कर एक नई समस्या आ गई है। यह हमारी घरेलू समस्या ही है, इसे ग्रीन हंटर का नाम दिया जा रहा है। आर्थात् नक्सलवाद। घरेलू हालातों द्वारा पैदा हुई इन परिस्थितियों से जन्मा यह रोग दहशत की नई दास्तान लिखने में जुटा है, देशभर के सामने अचानक से आई इस समस्या के लिए भारत के पास कोई रणनीति नहीं है। राज्य इसकी गेंद केंद्र के पाले में डाल रहा है तो केंद्र इसे राज्य में सरका रहा है। आखिर समस्या की जड़ कोई नहीं पहचान पा रहा है और जबरिया रूप से भयानों का भयंकर मायाजाल कसा जा रहा है। जहां पी चिदंबरम नक्सलवाद की खिलाफत करने में जुटे हैं, लेकिन उनके ये प्रयास सिर्फ कैमरे के सामने हैं, वहीं दूसरे नेता उन्हें आड़े हाथों में ले रहे हैं। मगर चिदंबरम की जो नीति है, उसे पूरी तरह से खारिज मान लेना चाहिए, अब केंद्र आखिर कौन सी नीति में जुटा है कोई नहीं जानता। जिस तरह से दंतेवाड़ा पर उन्होंने जवाब दिया है, उसने भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर रख दी है। बात यही नहीं थमती है , क्योंकि इन ग्रीन हंटरों ने बकायदा प्रेस विज्ञपप्ति से कहा कि हम मौजूद हैं, हम मजबूत हैं ... उनका यह कहना निश्चय ही चिंता का विषय है। भले ही लाल गढ़ की लड़ाई सरकार ने जीत ली हो, लेकिन अभी तक नक्सली अजगर हजारों जानें को निगल चुका है, इसके बावजूद सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है, वह दूसरे मुद्दों को तवज्जो देने में जुटी है, इस पर नक चढ़ मंत्री शशि थरूर जैसे कई विवादों को तूल दिया जा रहा है, यह राजनीति की विडंबना है कि यहां इस तरह की कारगुजारियोें को बर्दाश्त किया जा रहा है। इस मौके पर ऐसे नेताओं को तो तुरंत बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए, साथ ही इस तरह की कोई भी हरकत करे तो उसे देशद्रोह की श्रेणी में खड़ाकर सजा देनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जा सकता है तो फिर देश की दशा नहीं सुधर सकती है, क्योंकि यहां एक से बढ़कर एक लोग बैठे हैं, भ्रष्टाचार की गंगा को आगे ले जाने में। फिलहाल तो इस ग्रीन हंटर के आॅपरेशन को इतना बुलंद और चाकचौबंध तरीके से करने की जरूरत है, क्योंकि हमला पीठ पीछे से नहीं किया जा रहा है, बल्कि सामने आकर हो रहा है। खुलेआम पुलिस पर हमला बोला जा रहा है, जिसे एक विकट रूप मानना होगा, क्योंकि उनके इरादे इतने बुलंद हो चुके हैं कि अब वे रक्षा करने वालों को भी नहीं छोड़रहे हैं, तो आखिर वे उन मासूमों को कैसे बख्शेंगे, जिनके दिलों में डंडे का खौफ रहता है। यहां की समस्या को इतना आसान न लेते हुए पहले इस समस्या या कहें कि इस बीमारी के कीटाणु को पहचान कर उसके लिए टीका बनाना होगा, क्योंकि यहां समुंदर का पानी तो है, लेकिन वह खारा है, जो किसी काम का नहीं होता है। सरकारी नीतियां भी कुछ इसी तरह की चल रही हैं। इसलिए उन्हें बदलकर कुछ नए प्रयोग करने की आवश्यकता है, तभी इसका कुछ हो सकता है, अन्यथा यह समस्या अभी भारत के कुछ राज्यों में ही है और आने वाले दिनों में यह पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगी, तब न तो 10 जनपथ सुरक्षित रहेगी और न ही संसद। अब तक चैन से बैठने वाले नेताओं और जिम्मेदार लोगों अभी जाग जाओ, कहीं देर न हो जाए, तब पछाताने से कुछ नहीं होगा।

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