Sunday, April 25, 2010

खेल से खिलवाड़...अब फंसे जालसाज



इस गरमी में मैदान से लेकर एसी रूम तक दहक रहे हैं, जहां आईपीएम के इस फटाफट तमाशा क्रिकेट में मैदानों के बाहर दनादन छक्कों से गरमी पैदा हो रही है, वहीं स्टेडियम के बाहर बैठे एसी रूमों में इनके कर्ताधर्ताओें के पसीने छूट रहे हैं। इनके होश चौके-छक्के या विकेट देखकर नहीं उड़ रहे हैं, बल्कि इनकी कारसतानियों के खुलासे ने इन्हें आतंकित कर रखा है। कलियुग के इस महान खेल को खेलकर ही मोक्ष पाया जा सकता है, इस विश्वरूपी स्टेडियम पर, धरती के समान पिच, जिसमें शरीर एक बल्लेबाजी है, जीवन बॉल है। अब अगर चौके-छक्के पड़ रहे हैं तो समझों खुशियां हैं, वहीं विकेट परेशानी है और हिट विकेट आत्महत्या, जबकि स्टंपिंग कत्ल के समान है, इस घोर पापी युग में जन्नत का द्वार इसे मान लिया गया है, क्योंकि भावनाओं से बढ़कर न तो कोई खुदा होता है और न ही कोई स्वर्ग। पर इस खेल में सबकुछ होता है, खिलाड़ी भगवान तो, ईश्वर से प्रार्थनाएं भी...मगर जब इसके पाक ुअस्तित्व पर जालसाजों की काली छाया पड़ती है तो मन द्रवित हो उठता है। लगता है कि खेल से खिलवाड़ किया जा रहा है, करोड़ों लोगों की भावनाओं को कुछ राक्षस अपने रीछ जैसे पैरों के नीचे कुचल रहे हैं, तब लगता है कि इससे मन खिन्न कर लिया जाता है , लेकिन महामाया ही ऐसी होती है जो आपको मोह छोड़ने ही नहीं देती है। मगर गीता के उपदेशों में भी है कि धैर्य रखो... एक-एक जालसाज सामने आ जाएगा। इस महाकुंभ में जमकर पैसों की बरसात हुई, सभी ने अपने घरों की टंकियों को इस पैसे से भरा, लेकिन जब यह उथलाया तो सारी हकीकतें परत-दर-परत एक-एककर उखड़ने लगी। सारी सचाइयां सबके सामने आ गई। यहां के हैवानों के कारनामों ने किसी को भी अचंभित नहीं किया, लेकिन आहत जरूर कर दिया है। मगर मोदी एंड थरूर फिल्म का यह अभी एंड नहीं है, बल्कि ये तो ट्रेलर है, पिक्चर तो अभी पूरी बाकी है। जहां पहले ही हॉफ में एक हैवान की बली चढ़ गई, वहीं आधी फिल्म में तीन सालों से हीरों बने दूसरे हैवान पर भी गाज गिरने की तैयारी जैसी होने लगी है, मगर सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जो निकले हैं, वही इस कलियुग क्रिकेट की महानता नहीं शर्मनाक के अंधेरे गर्त में ले जाने के लिए काफी हैं। यहां न तो सिर्फ मोदी कंपनी है और न ही थरूर। फिल्म में अन्यों ने भी सहायक भूमिकाएं निभाई हैं, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इन दोनों के अलावा कुछ अन्य ने भी इस महाकुंभ में महाघोटाला किया है, उन्होंने जमकर बरसते हुए पैसों को दोनों हाथों से लोका है, तो दोष किसका, किसी का नहीं, सिर्फ दर्द और धोखे का ही खेल बचा है, जिसमें समझदार अपनी झोलियां भर रहे हैं। तो सवाल यह है कि आखिर इससे निजात कैसे पाई जाए, तो कोई जवाब न तो सरकार देगी और न ही क्रिकेट की कोई संस्था। मगर इसका हल ढूंढ़ना भी जरूरी है,और इसके लिए सरकार को आगे आकर कोई ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनानी चाहिए, जो इस क्रिकेट के कलंक को धो सके। उस पर लगने वाले लांछनों से इसे बचाया जा सके। इस विचार पर यदि गंभीरता से न सोचा गया तो निश्चय ही इस क्रिकेट में एक दिन भूचाल आ जाएगा, तब न तो इसे प्रेमी मिलेंगे और न ही प्रशंसक। अब कोई विश्वव्यपाी क्रिकेट क्रांति की जरूरत है, जो इस आतिशी और मनोरंजन वाले खेल को बचाने में सहायक हो सके, अन्यथा यह बात यहीं रुकी तो इसकी मर्यादा तो भंग होगी ही साथ ही इसका पतन भी हो जाएगा।

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