Friday, April 23, 2010
मैं आपकी दूसरी बीवी बोल रही हूं
हैलो...हां हैलो... कौन बोल रहा है, जी मैं बोल रही हूं... मैं कौन, इतनी जल्दी ही भूल गए, कल रात को तो बड़ा प्यार जताने आए थे और आज भूल गए....तो सुनो मैं तुम्हारी दूसरी बीवी बोल रही हूं, हां बोलो क्या बात है...इन बातों को इन दोनों की बात ही नहीं, कोई और भी सुन रहा है। भई आजकल तो यही पंगा परवान चढ़ने को तैयार दिखाई दे रहा है। क्योंकि फोन अब बेवफाई करने पर मजबूर हो उठे हैं, मगर इन्हें बेवफा भी नहीं कहा जा सकता, बेचारे इनकी मजबूरी के पीछे तो कोई तीसरा पहरा है। यह पहरा है सरकारी एजेंसियों का।
ये एजेंसियां आपको बिना बताए, आपकी भीतरी जिंदगी में झांक रही हैं। उनकी उन बातों को उजागर करने की एक कोषिष है, जो वो अंदरूनी तौर पर करते हैं। यहां सवालों के ष्षंका-कुषंका बहुत मन को व्याकुलता की ओट में लेकर पहुंच जाते हैं, मन की वल्गाएं तन जाती हैं, लेकिन विचार को वैराग्य प्राप्त नहीं होता है। और मन उथले और गंदले पानी की तरह हिलता-डुलता रहता है। इस तरह का काम मन को कभी-कभी व्याकुलता की कगार पर खड़ा ऐसा प्रतीत करता है, जैसे मानों नग्न देह पर कोई कोडे़ बरसा रहा हो। यह ठीक है कि कुछ लोगों का तक है कि इससे भ्रष्टाचार रूकेगा और यह प्रयास बहुत ही कारगार सिद्ध होगा। मगर हमारे एक दोस्त, जो राजनीति में काफी रुतबा रखते हैं, बेचारे उनका क्या होगा।
ठसमें कोई संदेह नहीं है कि वो कभी भ्रष्टाचार की गंगा में कभी तैरने का प्रयास करते हैं, वह तो इस पवित्र नही ंके गंदे हिस्से वाले जल से सदैव सैकड़ों मील दूर से ही नमस्ते करते हैं ।मगर समस्या यहां नहीं, समस्या उनके दूसरे वालू पहलू पर है।
यह भी जरा पर्सनल है, लेकिन समस्या विकट है तो आपको बताना भी जरूरी हो गया है। दरअसल हमारे मित्र को सिर्फ एक ही ष्षौक है और वो है मुहब्बत, मगर जालिम जमाने ने कभी भी इस जग में आषिकों को सुकून से रहने नहीं दिया है।
मुहब्बत की जंग सदियों से चली आ रही है, पर फैसला अभी तक नहीं हो पा रहा है। फिर इसके लिए ये कौन सी बेड़ियां जिम्मेदार हैं, यह आज तक नहीं जान पाए। खैर, यहां तो हमारे दोस्त को परेषानी हो गई है, वह यह कि बेचारे अभी तक तो अपनी मेहबूबाओं से तो भाभीजी को किसी तरह चकमा दे देते थे, मगर अब तो वो कभी भी सार्वजनिक हो सकते हैं। कई बार काम बीच में ही छोड़कर वो उनके घर पहुंच जाते थे, लेकिन अब तो नजर रहेगी, इसके लिए वो बेचारा सुबह से व्याकुल है और कई बार उसने अपने फोन की घंटियां मेरी ओर कई बार घुमाई। सुबह तो फोन नहीं उठाया, लेकिन जब दोपहर में उससे बात हुई तो वह काफी घबराया हुआ था और उसने कहा कि देखो भाई मैं सरकारी एजेंसियां फोन टेप कर रही हैं, मैंने जवाब दिया तो क्या किया जाए, मैं तो व्याकुल हो गया हूं, क्यांे...अरे यार तुम्हारी दूसरी भाभी...नहीं यार ये बातें अब फोन पर नहीं कर सकता हूं, कहीं कोई सुन रहा है, इसका डर मन को अंधेरी खाई में किसी रस्सी द्वारा उलटे पांव लटका रहा है, मेरे देास्त ने तो अपनी व्यथा मुझे बता दी, तभी उससे फोन रखकर मैं अपनी सिगरेट उठा ही रहा था कि मेरी बीवी का फोन आ गया। अब क्या था, मुझे दोस्त की बात याद आ गई और बीवी को किसी भी प्रकार की प्यार भरी बातें करने से पहले ही मैंने रोक दिया, मैंने उससे कहा कि हम ष्षाम को बात करते हैं।
इस बात पर वह नाराज हो उठी, मगर उसकी नाराजगी ष्षाम को दूर हो जाएगी, लेकिन कम से कम इस बात की खुषी तो है कि समय रहते हमें पता तो चल गया कि फोन पर आषिकी न झाड़ी जाए तो ही बेहतर होगा।
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