Monday, April 4, 2011
सफलता सारे पाप धो देती है...
जब असफलता के काले बादल मंडराते हैं तो अपनों का भी साथ छूट जाता है। जो हमारे प्रिय रहते हैं, जो सबसे नजदीक रहते हैें, वे ही दूरियां रचाते दिखते हैं। न कोई भगवान साथ देता है और न ही किसमत हम पर मेहरबान होती है। हर तरफ कांटों का मैदान होता है और हमें उसे नंगे पांव ही पार करना होता है, फिर चाहे रास्ते में हमारे पांव कितने ही लहूलुहान क्यों न हो जाए। इससे किसी को कोई मतलब नहीं होता है। जिंदगी की यह बेरुखी इसी तरह चलती रहती है। मौसम की यह बेवफाई हालातों के साथ अदला-बदली करती रहती है। जब जीवन में तूफान आता है, तो सदा मधुर आवाज देने वाला पपीहा भी कहीं छुप जाता है, और सनसनाती आवाजें आती हैं, जो हमें डराती हैं। यह क्रम लगातार जारी रहता है। खैर...यह हमारा अपना बनाया हुआ रेखाचित्र होता है, जो हमारे कृत्यों से बुनियाद पाता है। लेकिन हम देखते हैं, कभी-कभी भाग्य का खेल भी बहुत बड़ा हो जाता है, और हम भले ही कितने बलवान क्यों न हो, लेकिन भाग्य से लड़ नहीं सकते हैं। हमेशा से कहा जाता है कि कर्म बड़ा होता है, बिलकुल वह होता है, लेकिन उसमें अगर भाग्य का धोखा शामिल हो जाए तो सफलता का प्रतिशत कुछ कम हो जाता है, हां मिलेगी जरूर यह तय रहता है। मगर आधुनिक परिदृश्य में हमने पाया है कि इस तरह से जो भी चलता है, उसके जीवन में बाधाओं के ब्रेकर जरूर आते हैं, और उन्हें कितनी भी सावधानी से पार करो, लचक तो जरूर आती है। इसलिए यह हमारे आत्मबल पर निर्भर करता है कि हम उसे कितना आसान बनाते हैं। खैर यह चीजें उतनी आधुनिक नहीं है, जो लिबाज पहने दिखाई देती है, हां मगर इतना तो तय है कि लोग चढ़ते सूरज को सलाम ठोंकना पसंद करते हैं और डूबते को लात मार देते हैं। यही सत्य है और यही सार्वभौमिक नियम है। हम आदित्य काल से यही देखते हैं कि सफलता हर पाप को धो देती है, कभी-कभी लोग आपके विपरीत कार्य करते हैं, आप जो सोचते हैं, वह हो नहीं पाता है, और असफलता का ग्रह आपको ग्रहण कर लेता है, फिर क्या...चीजें यूं ही सपाट होती जाती हैं। लेकिन आपका तुरुप का इक्का भी फेल हो जाता है, तो आवाजें उठने लगती हैं, आपको गलत साबित करने के लिए हर वो कार्य किया जाता है, जिसमें चाटुकारिता से लेकर विद्रोह का विध्वंसक रूप भी शामिल होता है। मगर सफलता की एक किरण लंबे अंधेरे को कहीं फुर्र कर देती है। वह उसे यूं भगा देती है, जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो। सफलता और असफलता के इस पैमाने को हम अपने ऊपर कभी लागू नहीं कर सकते हैं, और न ही चीजें हमारी मर्जी से प्रबलता की ओर जाती हैं, यह तो सिर्फ भाग्यचक्र में कर्मचक्र का खेल हो जाता है, उसमें तप कर कुंदन बनने की यह गाथा होती है, मगर तब हम मुश्किल हालातों से गुजरते हैं और फिर एक नए मुकाम को व्यवसाय के रूप में अपना लिया जाता है। हम यहां देखते हैं कि व्यक्तित्व कितना भी पराक्रमी हो, लेकिन व्यवस्थित जब तक नहीं होगा, तब तक हम अपने वर्चस्व को यूं ही हटा नहीं पाएंगे। इसलिए व्यवस्थाओं और हालातों का बहाना हम नहीं बना सकते हैं, क्योंकि तब इनके आगे भी कुछ समुंदर की लहरें हमारा पीछा करते चली आती हैं। जब तक हम इनमें गोते लगाकर तैरना नहीं सीखेंगे यह हमें डराती-धमकाती रहेंगी। अब तक जो हुआ सो हुआ, अब मौका है कुछ अलग करने का, कुछ नया करने का। यहां कई चीजें हमारे अनुुरूप नहीं हो पाती हैं और हम उनके तराजु पर खरे नहीं होते हैं, इसके बावजूद हम लहरों से लड़ने का जज्बा रखेंगे तो ही इस वैतरणी से पार हो पाएंगे, वरना यह शांत दिखाई देने वाली सरिता कब हमारी कब्रगाह बन जाएगी, इसका अंदाजा खुद हम भी नहीं लगा पाएंगे। इसलिए फौरन तैयार हो जाओ, अपने अनुसार सभी चीजों को ढाल लो, क्योंकि ऐसा करने में अगर तुम सफल हो गए, तो फिर कोई डर नहीं, कोई मुश्किल नहीं। अब आसमान और धरती तुम्हारी है, जो चाहे वो करो, जितनी मर्जी हो उछलो-कूदो और अपने अनुसार जियो जिंदगी।
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