Saturday, April 9, 2011

सिर्फ खुशी का उल्लास हो

जब खुशी की उस बगिया में मुहब्बत का गुल खिलता है तो पूरा गुलशन उस खुशबू से महकता भी है और हंसी से चहकता भी है। हर तरफ गलियां गुलजार हो जाती हैं, तब लगता है कि कहीं तो खुशी का मौसम आया है, और उस मौसम में हम और आप दोनों ही मिल जाएंगे। फिर एक नया अगाज होगा, एक नया विश्वास होगा। जीवन की नई डगर को हम जी लेंगे, हम एक नए अवतार को अपने दिल में उतार लेंगे। हां, कुछ पैमाने जरूर होते हैं, इस जहां में, लेकिन इन्हें तो हम ही बनाते हैं और उन्हें तोड़ते भी हैं। गुजर जाते हैं कई पल, जब उनसे दूरियां हमारी होती हैं, हम उनके आसपास अंधेरों की खाक छानते रहते हैं, कई बार लगता है कि बस आगे कोई डगर नहीं है, लेकिन उस एक पल का ही इंतजार रहता है, बस उस पल को हमें जीना होता है। इस भ्रम के मायाजाल को जैसे ही हम तोड़ते हैं, सब कुछ हमारे अनुसार ही हो जाता है, तब लगता है कि परिवर्तन की जो बयार हमने जी है, उसमें हमें एक और सीधी रेखा दिखाई दी है। हम लोगोें से कई बार कुछ कहते हैं, पर वो अनसूना कर देते हैं, क्योंकि उन्हें भी तो हमारी ललकार नहीं पता होती है। वो चढ़ते सूरज को सलाम ठोंकते हैं और उतरते सूरज को ना-नुकूर करते हैं, उसे हमेशा तन्हाई ही मिलती है, क्योंकि वहां पर खुशी या उल्लास का कोई भी ऐसा तिनका नहीं होता है, जिस पर पर एक नया आदर्श प्रस्तुत कर सकें। इस स्केल का निर्धारण हमें ही करना है, क्योंकि कोई दूसरा यहां से आता-जाता नहीं है, तब दुनिया को बदलने की एक नई सड़क हम सभी के पास रहेगी। बस जीवन को अपरिहार्य मत होने दो, क्योंकि यहां तुम चूके तो फिर आगे कोई मौका नहीं मिलने वाली है। सड़कों की बनावट तो सीधी है, लेकिन वह समतल नहीं है, उस पर कई उतार भी हैं और चढ़ाव भी। बीच-बीच में कई बड़े गड्ढे भी हैं, और इन पर चलने का साहस जुटाना होगा, क्योंकि यहां अपने आप गाड़ी नहीं चलती। खैर जो हुआ, उसे किसमत के माथे पर छोड़ा नहीं जा सकता है, क्योंकि शिखर की ताजगी हमेशा महसूस होती है, लेकिन जब वहां से पतन का मार्ग दिखाई देता है, तो दिल टूट जाता है।

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