Saturday, April 16, 2011
नायक है बिनायक
नायकों की परीक्षा बड़ी कठिन होती है, क्योंकि वो इसमें पार हो जाते हैं। जिसमें जितनी क्षमता होती है, उसे उससे अधिक कष्ट वाला कार्य मिलता है। आसान जिंदगी भी कोई जिंदगी है भला। बाधाओं का बवंडर जब तक जिंदगी के जख्मों पर ज्यादती करके न जाए, तब तक जिंदगी में मजा भी तो नहीं आता है। इनके जीवन में हर बार चुनौतियों की चट्टान खड़ी रहती है, लेकिन ये भी हैं कि अहिंसा की आसंदी से सरल विचारों के गोते की कल्पना करते रहते हैं। हां कई बार इनका साहस और आत्मबल अंबर को भी झुकने पर मजबूर कर देता है। ऐसे ही तो होते हैं नायक, जो पथरीले रास्तों को चुनते हैं। आवारा बादलों की तरह होते हैं और उल्टी धाराओं को चीरकर आगे बढ़ते हैं। वहीं सिकंदर कहलाते हैं। ये जीवन में खाने-पीने या धन की लालसा में नहीं जीवन नहीं गुजारते, बल्कि यह तो समंदर पर कब्जा करने की सोचते हैं। तूफानों की दिशाएं बदलने का माद्दा रखते हैं। पहाड़ से नदियां निकालने का जोश इनके पास होता है। धैर्य का वह समुंदर इनके पास होता है, जिसमें कितने भी कष्ट के तूफान आ जाएं, उन्हें ये आसानी से झेल लेते हैं। अंदर ही अंदर दफन कर देते हैं। यही है, इनका नायकत्व, और दुनिया के सामने एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करते हैं, जो इन्हें नायक कहती है। ये लोग हीरो होते हैं और कुछ विशेषताएं इनमें जन्मजात भी होती हैं, जो ईश्वर से मिली सौगात के रूप में मिलती है। कहते हैं शेर का बच्चा शेर ही होता है और सियार के बच्चे को शेर बनाने में समय ही गंवा सकते हो, क्योंकि ऐसा संभव नहीं होता है। जब दुनिया को कब्जे में करना है तो दुनिया को सिकंदर चाहिए, न कि कोई बहुरूपिया, जो डींगे तो खूब मारता हो, लेकिन उसकी बातें बिलकुल किंकर्त्तव्यविमूढ़ हों। नायकों का यह बिनायक...अब दुनिया को अपनी नई दास्तांन से बदलने की कोशिश कर रहा है। वह बता रहा है कि दुनिया में विलास ही सब चीज नहीं होती, बल्कि देश प्रेम भी कुछ होता है, लेकिन जो देश प्रेम दिखाता है, उसे ही दुनियावाले पहले पत्थर मारते हैं, और जब वह लहूलुहान होकर इस दुनिया को अलविदा कह देता है तो उसे पूजते हैं। यही है हमारे समाज का परिदृश्य। जिस तरह से बिनायक सेन ने देश के सामने उदाहरण दिया है, वह काबिले तारीफ तो है ही, साथ ही उन भ्रष्ट नेताओं के मुंह पर एक तमाचा भी है, जो यह बता रहा है कि सुधर जाओ, कम से कम देश की जनता से तो गद्दारी मत करो। जिस तरह से नेतागण देश के साथ भ्रष्टाचार का अन्याय करने में जुटे हैं, वह किसी गद्दारी से कम नहीं है। हद तो यह हो गई, जब उस इंसान ने जिसने अपनी जिंदगी धूप में तपा दी, जो चाहता तो अपनी डिग्री के दम पर ऐसी रूम में बैठता और करोड़ों रुपए काटता, लेकिन उसने तूफानी रास्ता चुना। उसने एक प्रयास किया, जिसमें उन लोगों के लिए कार्य किया, जिसमें सिवाय बेबसी लाचारी के अलावा कुछ और था तो सिर्फ यह कि गोलियां। वो लोग कोई और बात नहीं सुनते थे, सरकार ने उनके खिलाफ जो भी किया, वह किसी दुश्मन से कम नहीं है। आज उसे राजद्रोह का खिताब मिल गया। 2007 से उसे जेल में बंद कर दिया, लेकिन कहते हैं कि समुंदर और सुनामी को आप अधिक देर तक बंद करके नहीं रख सकते हो, क्योंकि ये अपना रास्ता खुद ही तय कर लेते हैं। इन्हें किसी की परवाह नहीं होती, क्योंकि लोग इनकी परवाह करने आते हैं। नायकों की तरह इन्होंने हाथ में झोला लिया और निकल पड़े उन लोगों के लिए, जो बहुत ही पिछड़े थे। अपने जीवन के कई साल इन्होंने उसी गर्दा में गुजार दिए। शायद यह त्याग गांधी से कम नहीं है। हां, इनका रास्ता जरूर अलग था, लेकिन इरादे बिलकुल नेक थे। मगर इरादों की चमक किसी ने नहीं देखी और सरकार ने इन्हें अपराधी करार दे दिया। पर कब तक... जब विद्रोह की ज्वाला मुखर हुई तो फिर सभी को झुकना ही था। और सभी ने घुटने टेके। अब नए युग की इबारत लिखी जा रही है, एक नई सोच की बाली आ चुकी है, बस पकना बाकी है, जैसे ही यह पकी, निश्चय ही स्वाद बेहतर आएगा।
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