Sunday, February 27, 2011

...और कितना बेचोगे


यहां बहुत बड़ा मार्केट है, जो दिखता है वही बिकता है, बाजार खुला है बस बेचना आना चाहिए, और न जाने कितने फंडे हैं हमारे इस देश में। हमें पूरी तरह से बिकाऊ ही करार दे दिया गया है। जिस देश में आदर्शों की पूजा की जाती थी, जहां सिद्धांत ही सरताज रहते थे, आज वहां संवेदानाओं को कोई जगह नहीं दी जा रही है। हमें खिलौना मान लिया गया है, मार्केट में जिसके पास बुद्धि का बल है , और वह बल चतुरता में तब्दील होकर लोगों को शेंडी लगाने में पीछे नहीं देखा जा रहा है। हर कोई हर किसी को ठगने में लगा हुआ है। न तो किसी के पास दिल है और न ही संवेदना। एक समय हम दया और क्षमा करने वाले को भगवान का दर्जा दे देते थे, लेकिन आज यह भी दिखावा बन गया है। हर तरफ एक मायाजाल क्रिएट कर दिया गया है और इस चक्रव्यूह के लिए लंबी रचना रखी गई है। हर किसी को इस मायावी जाल में जकड़ने की तैयारी की गई है, बेचारे बेसुधों के साथ अन्याय किया जा रहा है, जो चतुर है, वह मालामाल है और जो सीधा है वह लुट रह है। कोई लुटा रहा है, लेकिन वह लूट भी रहा है। लुटने लुटाने का यह क्रम जारी है। देश का बंटाढार किया जा रहा है, सच्चाई का गला घोंटा जा रहा है, अन्यायों के हौसले बुलंद हैं, आम आमदी का जीना मुश्किल हो गया है, लेकिन इसकी परवाह किसको है। यहां तो हर कोई अपना घड़ा ही भरने में जुटा हैं, तिजौरियां लबालब हो गई हैं, इसके बावजूद जीवन का संघर्ष करने में आम आदमी जुटा है। वह पल-पल मर रहा है, मगर न तो सरकारी तंत्र इसकी फिक्र में कुछ कर रहा है और न ही नेता इनकी सुध ले रहे हैं। लगातार यही हो रहा है, देश बर्बाद हो रहा है, समाज भ्रष्ट हो गया है, नैतिकता जैसी कोई चीज नहीं रह गई है। अपराधों का वर्चस्व हो गया है। हर तरफ विपरीत बयार का बवंडर सा आया दिखाई दे रहा है और इसमें हर कुछ बहत, उखड़ता नजर आ रहा है। जिंदगी का संघर्ष समाप्त होते दिख रहा है, लोग जिंदगी को दगा दे रहे हैं, आखिर कारण बहुत हैं, लेकिन बस्ती में अभी पहला कारण है जान को बचाना। जिंदगी मोहताज हो रही है, फिर भी जीना तो पड़ेगा, चाहे वह तड़प-तड़प कर ही क्यों न। उम्मीदों को परवान नहीं मिल रहा है, हताशा के अंधेरे ने सभी को घेर रखा है, काली घटाएं डराने में कोई भी समय नहीं छोड़ रहीं हैं, बादल गरज-गरज कर गुर्रा रहे हैं। सूरज आग बबूला हो रहा है, हवाएं साजिश कर रही हैं। फिर भी जीवन में बहुत दर्द उमड़ रहे हैं और इन्हें हराना मुश्किल हो रहा है। तब कहीं दूर से आवाज आती है, यह इतनी खौफनाक है, इसे सुनकर होश उड़ जा रह हैं। मौका गंवाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन मौका भी अगल-अलग ही है, क्योंकि यहां से जीवन में नया दस्तूर आ रहा है, यह भी बेहद मुश्किल हो गया है। आखिर कैसे जिया जाए, क्योंकि जीवन में सरकारों ने इतने अड़ंगे पैदा कर दिए हैं कि उबर पाना ही मुश्किल हो रहा है, बस आदमी सुकून ढूंढ़ रहा है, लेकिन वह सुकून उसे नसीब ही नहीं है, क्योंकि पल-पल में तो पतवारें खड़ी हैं और इनसे निपट पाना बहुत मुश्किल हो गया है। इन सब बातों में एक चीज यह भी है कि क्यों न जिंदगी को भागती टेÑन ही समझ कर जिया जाए, उसमें कितनी ही बाधाएं क्यों न आएं, बस जिते रहो जिंदगी। अगर यही फलसफां रखा जाएं तो फिर आम आदमी का जीवन में शांति का नया आयाम दिया जाए। इन लोगों ने तो लूट के कई फॉर्मूले बनाएं हैं, लूट के समीकरण भी तैयार हैं और धोखे के रैपर भी। एक कदम भी गलत रखा तो जीवन में अनहोनी हो जाएगी, और यह अनहोनी जीवनभर के लिए दुखी कर देगी। इसलिए बचो, और संभलो, सतर्क रहो, क्योेंकि यह नहीं किया तो यहां पर सभी मगरमच्छ बैठे हैं, और ये मगरमच्छ तुम्हें किसी भी पल खा जाएंगे, इनसे बचने के लिए अपने पास हथियार रखो, जैसे ही मुंह फांडेÞ, डाल दो हथियार और फाड़ दो मुंह। तब ही जीने को मिलेगा।

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