Friday, February 18, 2011

सात खून माफ!


इंसान का सबसे बड़ा गहना क्षमा माना गया है, लेकिन वह किन हालातों में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए। शहर से लेकर गांव तक और गांव से लेकर देश तक हर कोई हत्यारा है। फिर चाहे वह मनुष्य का खून कर रहा हो या फिर न्याय का। ईमानदारी का सत्यता का। खूनी तो हर कोई है। फिर चाहे वह मठाधीश हो या फिर कोई बड़ा अधिकारी। संत हो या महात्मा। अगर गौर किया जाए तो जीवन में महात्मा जी भी नहीं चूके होंगे ‘सात खून’ करने से। लेकिन उनके पुण्यों का घड़ा इतना था कि उसने सात खून माफ करवा दिए। एक कहावत है कि डायन भी सात घर छोड़ देती है, या कहें कि उसे इन सात कर्मों को माफी मिल जाती है। तो क्या मौजूद स्थिति में हर कोई डायन है, जिसे सात खून की माफी मिल रही है। सात खून...अगर यह परिस्थिति विशेष हुए तो अलग बात है, लेकिन जान-बूझकर तो एक भी क्षमा के काबिल नहीं हैं। फिर हम तो कोई महात्मा नहीं है, या फिर हम कोई उपदेशक भी नहीं है। हम जनता है, और सात वादें भी हमारे अगर पूरे नहीं किए तो हम माफ नहीं करेंगे। सात अजूबे भी हैं, सात फेरे भी हैं, सात से सजी है दुनिया है, और सात में ही अंबर है। यहां भी सातवां घोड़ा है, सूरज का। तो दुनिया में हर चीज सात के आसपास ही घूमती है। सवाल यह नहीं है, जो दिखाई दे रहा है, पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही बयां कर रही है, वह कहानी है कि आखिर किसी को कहां तक माफी दी जाए। अगर यह माफी का पैमाना तय कर दिया जाए...मगर ऐसा हो नहीं सकता। जी हां...अगर हमें जरा सी ठोकर भी लग जाती है तो हम उस पत्थर को उखाड़ने की कोशिश कर डालते हैं, हमें इतना गुस्सा आ जाता है कि हम किसी को कुछ भी नहीं समझते हैं। अब इसका क्या मोल? क्योंकि जब हमारे सामने कोई बलवान आ जाता है, तो हमें अपना गुस्सा पीना पड़ता है। सारे समाज की जड़ ही है गुस्सा। इसका अंत करना जरूरी हो जाता है, अगर समाज में हर कोई माफ करने की नीति पर चले तो कहीं न कहीं इन फसादों का जन्म ही न हो, लेकिन कुछ मौकों पर गुस्सा भी जायज होता है, लेकिन इतना भी मत करो कि उसकी गिरफ्त में ही आ जाओ। देखा जाए तो हम गुस्से को पाल नहीं पाते हैं, क्योंकि उस समय तक ही गुस्सा रहता है अगर इसके बाद हम कुछ करने की कोशिश करते हैं तो चीजों में बदलाव शुरू हो जाता है। दुनिया में कई लोगों ने ऐसी मिसालें पेश की हैं कि हम खुद भी हैरत में पड़ जाएंगे, लेकिन उनका भी हश्र क्या होता है, शायद वो ही जानें। पर हम तो माफी, क्षमा और गुस्सा के इर्द-गिर्द ही घूम रहे हैं। रास्तें हमारे सामने कई हैं, लेकिन माकूल और अनुकूल रास्ता कौन सा है यह हम नहीं जान पा रहे हैं। जब हम यूं ही जिंदगी का अरमान पालते हैं तो यह गुस्सा, क्रोध जैसी चीजें हमारे साथ आ जाती हैं। जीवन का यह चक्र चक्रव्यूह बनकर आ जाता है। उसके लिए फिर अर्जुन ही तोड़ सकता है, मगर अर्जुन तो व्यस्त है, वह कुछ और करने में लगा हुआ है। उसकी मजबूरी यह है कि वह यहां नहीं आ सकता है। फिर क्या उसका बेटा अभिमन्यु इसे तोड़ेगा, मगर अभिमन्यु तोड़ेगा तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। इसलिए उसे खतरे में डालना ठीक नहीं है। तो क्या यह चक्रव्यूह अभेद है, और कोई योद्धा अब इसे नहीं तोड़ पाएगा। क्रोध का यह चक्रव्यूह अब सदा रहेगा, क्योंकि क्षमा में वह शक्ति नहीं रह गई है कि वह इसे माफ कर दे। इसलिए यह तो सालों-साल रहने वाला है। अब सात खून पर माफी नहीं मिलेगी, बल्कि सजा का प्रावधान है, क्योंकि पहली गलती तो माफ हो जाती है, लेकिन सातवीं गलती माफ तो भगवान भी नहीं करेंगे ,फिर यह तो हमारी न्याय व्यवस्था और समाज है। यहां पर गलती कि है तो प्राश्चित नहीं, बल्कि सजा का प्रावधान है और वह सजा आपको दी जाएगी। फिर न तो कोई पछतावा चलेगा और न ही कोई बहाने की लाठी।

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