Tuesday, February 15, 2011

जेपीसी पर कोहराम क्यों



यह बूढेÞ भारत का लड़खड़ाता लोकतंत्र है, जो आज चलने में तकलीफ महसूस कर रहा है। हम भले ही इसे युवाओं का भारत कह रहे हो, लेकिन प्लास्टिक सर्जरी कराने से कोई युवा नहीं बन जाता है, क्योंकि देश में लोकतंत्र को जिस तरह से शर्मसार किया जा रहा है, वह देश के माथे पर कलंक दिख रहा है। जो कल नहीं हुआ, वह आज हो रहा है, और जो आज नहीं हो रहा है, वह कल होगा। यही परिवर्तन है, लेकिन यह तब अच्छा लगता है जब यह अच्छे से बुरे की ओर जाए, लेकिन यहां तो हवाएं विपरीत धारा में बहती नजर आ रही हैं। देश में भ्रष्टाचार का भूत बलवान हो गया है, लेकिन यह क्या, हम उस पर मंथन करने के बजाय उसे और ताकतवर करने में जुटे हैं। उसे मारने की जगह उससे मुंह छिपा रहे हैं। देश में टूजी स्पेक्ट्रम का जिन्न बोतल से क्या निकला, विपक्षी पार्टियों ने तो समझा मानों सत्ता का द्वार ही मिल गया हो। उन्होंने महंगाई और जनता का भला छोड़कर इस मुद्दे को भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। जोर शोर से चिल्लाए, दम खम दिखाने की भी कोशिश की। देश के लोकतंत्र को सत्ता के स्वाद के लिए बार-बार पीटने की कोशिश की गई, उन्हें गिराने का प्रयास हुआ। यहां तक कि पत्थर भी मारे...। बेहद शर्मनाक। बात यहीं तक नहीं बनी तो इसके आगे भी चले गए। कहते हैं कि कितनी भी लड़ाई हो जाए, अगर बात बंद नहीं होगी तो हल जरूर निकल आएगा, लेकिन यहां तो बिलकुल उल्टा हुआ। संसद के इतिहास में जो आज तक नहीं हुआ था, उस काले दिन को अमर बना दिया गया। एक पूरा सत्र बिना बातचीत के निकल गया। आखिर क्यों? क्या इसके लिए सत्ता पक्ष जिम्मेदार है, या फिर वो चंद नेता, जो सत्ता के लिए अपनी मां-बहन तक को गिरवी रखने से गुरेज नहीं करते हैं। वो तो सत्ता को रखैल मानकर उसे अपना बनाने की कोशिश में एक पल भी गंवाना नहीं चाहते हैं। आखिर विपक्ष जेपीसी की मांग क्यों कर रहा है, जबकि इतिहास पर नजर दौड़ाए तो चार बार इसका इस्तेमाल हो सका है। इन चारों बार इसने कोई ऐसा महानकाम नहीं किया है, जिससे इस पर गर्व किया जा सके। और फिर ऐसा परिणाम भी नहीं दिया है कि इसे लागू कर दिया जाए। विपक्ष तो इसके लिए ऐसा अड़ गया था मानो भ्रष्टाचार को खत्म करने का यही रास्ता है। उसने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर पूरे सत्र को लहूलुहान कर दिया। इससे पहले 1987 (बोफोर्स), 1992 (प्रतिभूति घोटाला...हर्षद मेहता कांड ) , (2001 शेयर घोटाला) 2003 (शीतलपेय घोटाला )...। इन चारों में जेपीसी का गठन किया गया, लेकिन चारों में कोई रिजल्ट नहीं आया। और देखा जाए तो जेपीसी का मुख्य उद्देश्य होता है संसदीय आचार संहिता, और नीतिगत मसलों पर विश्लेषण करना है। मगर यहां तो आपराधिक मामला है। इन सबके बावजूद बहुत विपक्ष तो अपनी दादागिरी कहें या हठ पर जुटा है और यह हठ उसका टूटता नजर नहीं आ रहा है। अब अगला सत्र आने वाला है और इस सत्र में क्या होगा, इसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। मगर यह जो भी ड्रामा हुआ है, उसके लिए जनता न तो पक्ष को माफ करेगी और न ही विपक्ष को। भ्रष्टाचार पर भले ही माफ कर देगी, लेकिन बीजेपी का हठ कहीं उसे भारी न पड़ जाए और सत्ता का स्वाद कहीं और दूर न खिसक जाए। हालांकि यह भारत है, और यहां जनता सारी चीजों को बहुत जल्दी भूल जाती है, लेकिन यह खामोश रहती है और वक्त आने पर अपना फैसला पूरी शिद्दत के साथ सुनाती है। आने वाला समय क्या होगा यह कोई नहीं जानता, लेकिन यह ऐसा दाग है, जिसका ठिकरा यूपीए से अधिक बीजेपी पर मढ़ा जाएगा। साथ ही उतनी ही दोषी कहलाएंगी मीरा कुमार। सिर्फ पद पर बैठने से कुछ नहीं होता है, कुछ करके भी दिखाना होगा, और अगर नहीं दिखा सकते तो पद छोड़ दो। तुम्हारे लिए जनता का नुकसान नहीं होना चाहिए। इस महाभारत का अंत देखने लायक होगा।

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