Thursday, February 3, 2011

जब कांबली रो पड़े


साल 1996...मैच विश्वकप सेमिफाइनल...भिडंÞत भारत और श्रीलंका...स्थान इडग गार्डन...., दर्शक 20 हजार से ऊपर..., पूरा मैदान खचाखच भरा था। एक गेंद पर आह निकल रही थी तो अगले ही पल वाह भी निकलती। पूरा देश सांसें रोककर इस मैच को देख रहा था। एक पल के लिए भी कोई इसे चूकना नहीं चाह रहा था। जमीं अपनी थी तो अपने चांस ज्यादा थे, इसलिए भारत ने गेंदबाजी की और बल्लेबाजी का निमंत्रण लंकाई शेरों को दिया। मैच की पहली ही गेंद से लग गया कि टीम इंडिया 1983 का कारनामा दोहरा देगी। यह मैच जीतकर हम फाइनल में आ जाएंगे। सभी के हौसले बुलंद थे, क्योंकि पिछला मैच हमने पाकिस्तान से जीता था, जो शानदार फॉर्म में था। हमारी गेंदबाजी विलक्षण तो नहीं थी, लेकिन हां हमारी जमीं पर हमें हराना बहुत ही मुश्किल था। मैच का पहला ओवर जवागल श्रीनाथ ने किया। पिछले मैच में ज्यादा प्रभावी नजर नहीं आए श्रीनाथ आज तो कुछ अलग करने के ही मूड में नजर आ रहे थे। सामने ओपनर के रूप में थे हार्ड हिटर जयसूर्या और कालू वितरणा। जिनकी जोड़ी से पूरे विश्व के गेंदबाज खौफ खा रहे थे। वह दो साल इनकी बुलंदी के थे और उस समय दुनिया का हर गेंदबाज इनसे बहुत डरता था। विश्वकप में सूर्या तो पूरे शवाब में थे। जिधर मार देते, बस चौके छक्कों की बरसात हो जाती। पहली गेंद को उन्होंने सिंगल लेकर टरका दिया। हर गेंद के साथ भारतीयों की सांसें ऊपर नीचे हो रही थीं। दिल धड़क रहे थे, लेकिन डर भी लगा था कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए, लेकिन सभी को टीम पर भरोसा भी था कि हम जीत का जश्न जरूर मनाएंगे और फाइनल के ताज तक पहुंचेंगे। पहली गेंद खेलकर जयसूर्या नॉनस्ट्राइक पर गए। इसके बाद कालू वितरणा जो पहली ही गेंद पर मारने के मूड से उतरे थे। उनके सामने श्रीनाथ अपनी दूसरी गेंद लेकर आए। उन्होंने अपना रुख स्पष्ट कर दिया। और गेंद के आते ही जोरदार शॉट खेला। गेंद बाउंड्री पर जा ही रही थी कि तभी गेंद के नीचे मांजरेकर नजर आ गए और उन्होंने उन्हें लपक लिया। फिर क्या था, पूरा देश एक साथ झूम उठा। क्रिकेट में विकेट, वह भी श्रीलंका में...क्या बात है, हर खिलाड़ी झूम रहा था। कालू वितरणा दूसरी ही गेंद पर चलते बने। भारतीयों की उम्मीद बंधने लगी। अगली गेंद पर नए बल्लेबाज आए और उन्होंने सिंगल निकालकर दे दिया। स्ट्राइक थी विश्वकप के सबसे धाकड़ बल्लेबाज के पास। जयसूर्या को चौथी गेंद डाली और उन्होंने आगे बढ़कर घुमा दिया, लेकिन यह क्या? वेनकटेश प्रसाद ने कैच थाम लिया। टैÑजडी। श्रीलंकाई खिलाड़ी पूरी तरह से सन्न रह गए। पूरा स्टेडियम झूम रहा था। चार बाल में दो विकेट और दो रन। पूरे टूर्नामेंट में श्रीलंका के साथ ऐसा नहीं हुआ था। अब क्या था। बस समझो कि भारत को जीत ही दिखने लगी। भारतीयों के हौसले बुलंद हो गए। अब जिम्मेदारी दूसरे बल्लेबाजों की थी। टीम से उम्मीद की जा रही थी कि वह 200 या 225 का स्कोर किसी तरह खड़ा करे, लेकिन डिसिल्वा और कुछ अन्य बल्लेबाजोें के छुटपुट प्रयास से टीम का स्कोर 252 पहुंच गया। खैर भारतीय इतने निराश नहीं हुए, क्योंकि यह इतना मुश्किल लक्ष्य नहीं था। अब बारी भारत की थी। उसकी पारी का अगाज करने आए सचिन तेंदुलकर और नवजोत सिंह सिद्धू। पहले ओवर में ही सचिन ने एक बाउंड्री जड़ दी, लेकिन अगले ओवर में सिद्धू आउट हो गए। उनके आउट होते ही भारतीयों को झटका। लेकिन यह तो क्रिकेट है, और इसमें विकेट तो गिरना ही थे। अब सचिन और मांजरेकर ने खेलना चालू किया। फिर क्या था मैदान पर सचिन आला रे कि गूंज हो रही थी। हर क्षेत्र में चौकों की झड़ियां लगा दी। 90 से अधिक रन बना डाले दोनों ने मिलकर। और जीत दस्ताने में नजर आ रही थी। तभी सूर्या गेंदबाजी करने आए। और उन्होंने सचिन को रनआउट कर दिया। भारत को सबसे बड़ा झटका। इसके बाद तो पूरी टीम पवेलियन में जा बैठी। आठ विकेट हो चुके थे, दूसरे एंड में विनोद कामली थे। तब भारतीय दर्शक आग बबूला हो गए। उन्होंने मैदान में बॉटलें फेंकना चालू कर दी। तब श्रीलंका को जीत दे दी गई, यह जीत जाते देख विनोद कामली के आंसू निकल आए, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि शायद मैं मैच जिता दूं। मगर हाथ में आई जीत भारत से फिसल गई। वह जख्म आज तक नहीं भुलाया है। और शायद भारतीय क्रिकेटर उस मैच को कभी नहीं भूल पाएंगे, जिसमें बल्लेबाजों ने संघर्ष ही नहीं किया।

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