Wednesday, February 16, 2011

मनमोहन चलाओ सुदर्शन


कहते हैं कि खामोशी वह अस्त्र होती है जो वाचालों को ऐसा जवाब दे जाती है, जिसकी वो कल्पना भी नहीं कर सकते। कई बार विवादों पर विजय पाने का ब्रह्मस्त्र भी बन जाती है, लेकिन इसकी भी अति मुश्किल में डाल सकती है। पूरे देश में आफतों का दौर चल रहा है। आडंबर और बयानों की इस सरजमीं पर वाचालों ने हंगामा खड़ा कर दिया है। ऐसे में हम आम आदमी के दिल से भी ‘मन’ के लिए गुस्सा छूट रहा है। न तो पीएम साहब अपनी चुप्पी तोड़ रहे हैं और न ही भ्रष्टाचार पर कोई नकेल कसने में सक्षम हो रहा है। देखा जाए तो देश बुरी तरह रसातल में चला गया है और इस समय किसी संजीवनी की जरूरत है। अब सवाल यह उठता है कि जो काम अर्जुन के लिए कृष्ण ने किया, राम के लिए हनुमान ने किया...आज ‘मन’ के लिए कौन करेगा। कौन देश की सत्ता को बचाएगा, क्योंकि यहां तो सभी धृतराष्ट्रों की तरह ही नहीं सकुनी की तरह आंखें जमाए बैठे हैं। जैसे ही मौका मिलता है बस खड़े हो जाते हैं अपना पक्ष रखने। चौसर बिछाने में। देश और समाज की तो किसी को परवाह ही नहीं। हमारे दिल में टीस उठती है, ऐसी ही टीस हर हिंदुस्तानी युवा के मन में उठ रही है। वह भीतर ही भीतर जल रहा है। उसका गुस्सा पार्टियों के लिए हो गया है। वह पार्टियों से ऊब चुका है, क्योंकि वह समझदार है और इनकी बातों के चक्रव्यूह में नहीं फंसता है। वह इनसे आगे की सोचता है, वह अपने कॅरियर के बारे में बातें पसंद करता है और अगर देश में विकास की बात नहीं हो तो यह दु:खी भी होता है और अपना गुस्सा जताने में भी पीछे नहीं हटता है। अब देश को जरूरत है किसी पार्टी की नहीं, बल्कि एक ऐसे युवा संगठन की, जो देश को नए आयाम दे सके। उसमें कोई राजनीति न हो, सिर्फ देश के विकास की बात हो। फिर इन पार्टियों को धूल चटाई जा सकती है। भ्रष्टाचार के नियम कड़े हों, जमीर को जगाएं, इसके बाद मतों का उपयोग करें। देश बुरी तरह संक्रमित हो गया है। पहले कलमाणी की बीमारी फिर ‘राजा’ नामक हैजे ने तो देश को गरीब ही बना दिया है। ये ऐसे कैंसर हैं, जिनका इलाज ही नहीं है। इन पर कोई भी बाउंसर फेंकने वाला नहीं है और अगर कोई फेंकता है तो एंपायर चीटिंग कर उसे ‘नो’ बॉल करार दे देता है। समस्या इनकी फिर से लाइलाज हो जाती है। देश के इन गद्दारों को न तो सजा हो पाती है और न ही सामाजिक बहिष्कार। ऊपर से ये अपनी मनमानी को पूरी तरह से अंजाम दे रहे हैं और ‘मन’ की तो कोई सुन भी नहीं रहा है। सोनिया ने भी बेदाग छवि वाले एक पुतले को बैठा दिया है। मैडमजी भी समझदार थीं, क्योंकि उन्होंने एक ऐसा कवच बैठा रखा है, जिस पर कितने भी वार करो, वह अपनी खामोशी से सब सह लेता है और बात को ‘समय’ के इस अस्त्र में बहा देता है, समय अपने आप सारे जख्मों में मरहम लगा देता है। हां कई बार घाव जरूर रह जाते हैं, लेकिन इनमें दर्द नहीं रहता है और दर्द नहीं होता है तो फिर जख्म का महत्व भी इतना नहीं रहता। आज नई ऊर्जा की आवश्यकता है, देश की वल्गाओं को थामने के लिए कोई ‘कृष्ण’ चाहिए। हां कृष्ण भी मनमोहन थे, लेकिन वो हर बार खामोशी से जवाब नहीं देते थे, बल्कि सोलह कलाओ में निपुण थे। आज तक ऐसा चतुर और कलाओं में पारंगत कोई भी भगवान और मनमोही नहीं आया। वह छलिया था, और धर्मवेद भी। आज कौरवों का राज चल रहा है, मनमोहन आप भी तो कोई महाभारत का परिपाठ याद करो और फिर कुरूक्षेत्र में अर्जुन (राहुल) को उतारकर उसका सारथी बन जाओ, फिर देखो भ्रष्टाचार के इस महाभयानक ‘रावण’ पर विजय मिल जाएगी। बस एक दमदार प्रयास करो, क्योंकि जब तक वह नहीं होगा, कुछ नहीं होगा। आखिर इसमें रिस्क है, लेकिन प्रयास करना ही तो प्रकृति का नियम है और यह हमारे पूर्वजों से सीखने को मिला है। आज इस देश को एक नई ऊर्जा और एक नई क्रांति की जरूरत है। उसे जगा दो, अन्यथा देश बर्बादी की डगर पर खड़ा हुआ है।

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