Sunday, December 26, 2010

उमा की ललकार


उमा के कितने रंग...शायद कोई नहीं जानता। खुद बीजेपी भी नहीं। बार-बार बीजेपी को उमा के नए नए चमत्कार देखने को मिल रहे हैं, इन चमत्कारों से लोग परेशान हैं। उमा की इस ललकार का उनके पास कोई जवाब भी नहीं है...इस सन्यासिन से पूरी बीजेपी पस्त हो गई है। पस्त इसलिए क्योंकि, ये कब कोैन सी चाल चल देते हैं, और कब धोखा दे जाती हैं, कोई नहीं जानता। जिस तरह से बौखलाकर या कहें कि बागी बनकर उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ा था और ताव शाव में उन्होंने एक नई पार्टी की बुनियाद भी रख दी थी, लेकिन वो सभी बीती बातें हो गई थीं। बीजेपी को ताज भी उमा ने ही दिलवाया था । हां, यह अलग बात है कि उस समय दिग्विजय के विरोध में कोई भी खड़ा होता तो जीत जाता, लेकिन बदलाव की बयार ने पलटी ली, और उमा-बीजेपी का साथ छूट गया। मनाने का दौर भी चला, लेकिन गुस्सैल सन्यासिन नहीं बदली। आडवाणी से लेकर अटल तक ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होेेंने नहीं मानी। फिर उमा ने बीजेपी से माफी मांगने की पेशकश की, उन्होंने कहा कि मैं वापस बीजेपी में आना चाहती हूं। बड़े नेताओं ने कहा कि उमा वापस आ सकती हैं, और उन्हें आना चाहिए, लेकिन कुछ कारणों से नहीं आई। पिछले एक साल से कवायद हो रही है कि उमा बीजेपी में आने वाली हैं। इससे बीजेपी के कई सिकंदरों के कान खड़े हो गए थे। कानाफूसी का दौर चला, किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ। लेकिन एक बार फिर उन्होंने नागपुर में ऐसा बयान दे डाला, जिसने यह बता दिया कि मुंह पर काबू नहीं है उमा का। यह सन्यासिन अब परिपक्व मानी जाती है, लेकिन वह किसी से नहीं डरती और अपनी बात बड़ी निष्पक्षता के साथ कही भी। दुनिया बदल रही है और महिलाओं को संबल भी मिला है, और इन सबमें बीजेपी अभी तक उबर नहीं पाई। वह अभी भी गर्त में पड़ी हुई है और उसे सामने से समुंदर की तूफानी लहरें आती नजर आ रही हैं, सवाल का रेतीला तूफान उसे बार-बार छलनी कर जाता है, ऐसे में उमा का हथियार बीजेपी को नई चेतना दे सकता है। इस सन्यासिन की पूजा काम आएगी। यह बीजेपी ने कई बार सोचा, लेकिन हालात फिर परिवर्तन हो गए हैं। एक बार फिर बीजेपी में सुगबुगाहट का दौर चल रहा है, गुफाओं से रोशनी चीर कर आ रही है। और एक पत्थर पर टिमटिमा रही है, वह पत्थर भी कभी कोहिनूर बन जाएगा, न भी बना तो एक चमक का मकसद जरूर छोड़ जाएगा। सनसनाती हवाएं जब आसमां से उतरती हैं, तो ठंड की परी आती है, धीरे से बदन में कंपकंपी दे जाती है। बीजेपी का भी यही हाल है, वह एक अहसास को लेकर जी रही है और हो हल्ला में बढ़ावा देने को मजबूर है। देखा जाए तो जिस तरह से बीजेपी और उमा का चेप्टर अभी तक नहीं थम रहा है, बुनियाद में ही त्रिकोड़ आ गया है, इस त्रिकोड़ में क्या उमा अपना रंग भर पाएंगी, क्योंकि जिस तरह से बयान देकर वो बुलंदी पर हैं, वह उन्हें तो मजबूत कर रहा है, लेकिन मतभेद की खाई में कई उबाल आ रहे हैं। और इस उबाल को कौन रोकेगा, जाने...? जिस तरह से उमा और बीजेपी में चक्रव्यूह की उलझन बढ़ी है, आज अगर दोनों का गठजोड़ होता है तो निश्चय ही पार्टी में दो धड़ भी हो सकते हैं, हो सकता है कि वर्चस्व की लड़ाई हावी हो जाए...और आखिर कब तक लड़ाई में लड़ाके भिड़े रहेंगे, या तो अब उमा आएंगी या फिर बीजेपी अपने उसी रौब पर रहेगी, लेकिन जो इसके रंग में परिवर्तन आया है। वह विरोधियों के लिए काफी राहत की बात है, पार्टी अब क्या रणनीति अपनाएगी, या फिर उसी रुतबे के साथ आएगी, यह तय तो जनता करेगी, लेकिन उमा के बवालों के बुलबुले अभी और उठेंगे।

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