Sunday, December 19, 2010
धर्म, अपराध और सेक्स
आज हम इन तीन शब्दों पर बात करने वाले हैं, यह तीन शब्द हैं धर्म, अपराध और एस। इन तीनों में जीवन का सार छिपा है, अगर देखा जाए तो जीवन का प्रयाग भी यही है और अंत भी यही। सार भी यही है और तत्व भी। हम जाने अनजाने कितने ही बेगाने क्यों न हो जाएं, जीवन से कितना ही क्यों न कट जाए, हम इन तीनों में से एक के आसपास जरूर रहते हैं, फिर चाहे वो धर्म हो या अपराध या फिर एस। आप सोच रहे होंगे कि हम तीनों शब्दों को एक लड़ी में पिरोने की कोशिश क्यों कर रहे हैं, सवाल बेहतर है, क्योंकि हमें फितूर ही ऐसा चढ़ा है। भला तीनों में अंतर जमीन आसमान जैसा है। यहां आसपास इनके कोई भी एलिमेंट एक-दूसरे कहीं मेच नहीं हो रहे हैं। जी हां आपने सही सोचा, लेकिन जीवन एक चक्र है और सदा घूमता रहता है, यह इन तीन के इर्द-गिर्द ही नजर आएगा। मैं कई महात्माओं से मिला, कई अपराधियों से मिला और कई सेक्स वर्करों से भी। तीनों में मुझे कोई अंतर नहीं मिला। तीनों अपने-अपने काम में सुखी हैं। और पूरी शिद्दत से उसे करने में जुटे हुए हैं। क्या है यह...जीवन क्या चार पहियों की जगह इन तीनों पर आकर अटक गया है, यह भी बड़ा सवाल है, सवाल यह भी है कि क्या सागर से भी गहरे जीवन की गहराई इन तीन शब्दों से बढ़कर नहीं है। क्या आसमान से भी अधिक ऊंचाई है इनकी। अब तक आप सोच रहे होंगे कि मैं सिर्फ इनके बारे में कहकर बहलाने की कोशिश में जुटा हुआ हूं। तो यहां मैं साफ करना चाहता हूं कि हम बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मुद्दे पर विचार और मंथन कर रहे हैं। क्योंकि जीवन का यही सार है, जिसका दायरा इन तीन शब्दों में आकर सिमटता है। सिमटन कई और भी हो सकती हैं, लेकिन इन्हें इन तीन शब्दों ने अपने दामन में ऐसा बांध रखा है कि कोई भी इसके विपरीत जा भी नहीं सकता। तीनों की प्रवृत्ति बिलकुल अलग है, जो धर्म से नाता रखता है, उसे जीवन संसार से कोई लेना- देना नहीं होता है। उसका सबसे पहले पल्ला छूटता है तो वह अपराध और सेक्स से। धर्म को पूरी तरह तभी पाया जा सकता है, जब इन दोनों का पूर्ण रूप से त्याग कर दिया जाए। बिना त्याग इसके शील का भांपा नहीं जा सकता है। वहीं जो अपराध में राज कायम करता है, उसमें अपना धैर्य लगाता है, वह धर्म को सर्वप्रथम त्याग देता है, उसके दिलोंदिमाग में धर्म जैसी कोई भी छोटी सी चीज भी नहीं होती है। इसके आगे और चलते हैं, वह यह कि सेक्स, अपराध का साथी हो सकता है, लेकिन जो पूर्ण धर्म को मानते हैं, वह इनसे बहुत दूर चले जाते हैं। या कहें कि इनके संगम की कोई धारा कहीं भी नहीं मिलती है, ये समानांतर चलते जाते हैं। आडंबर का तिरपाल यहां नहीं चल पाता है, क्योंकि वह इनके आगे टूट-फूट जाता है। बारिश की हवा में इसमें कई छेद हो जाते हैं और पानी टिप-टिप बूंदों के प्रखर स्वर से नीचे आने लगता है। अपराध सेक्स और धर्म की यह नई व्याख्या जीवन को नया अवतार देती है, अब यह प्राणी पर निर्भर करता है कि वह किस क्षेत्र में है और उसका उद्देश्य क्या। हालांकि तीनों में पहचान और ख्याति का फर्क काफी पड़ता है और कुछ में तो जीवन भी बर्बाद हो जाता है। धर्म की गाथा बहुत बड़ी है, और अपराध की दुनिया बहुत ही लुभावनी और क्षणिक होती है। सेक्स की दुनिया इन दोनों से बहुत अलग है, जो जीवन में एक नया आक्रोश भी पैदा करती है और एक सुकून भी देती है। बदलते दौर में इन्हीं तीन स्वीकृतियों पर जीवन का पहिया रगड़ रहा है।
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