Tuesday, June 22, 2010
नंबरों की होड़ में हारती जिंदगी
शाहरुख नंबर-1 है, अरे नहीं शाहरुख कैसे हो सकता है, यह गद्दी तो अमिताभ के पास आज भी है...। फिर सलमान का क्या नंबर आता है, भई हीरोइनो ं में कैटरीना ने तो सभी की छुट्टी कर नंबर वन का ताज हासिल कर लिया है। क्रिकेट में टीम आॅस्ट्रेलिया को नंबर वन के ताज से हटाया नहीं जा सकता है। कोई इस खेल में कोई उस खेल में, मगर नंबर एक का ताज हासिल करना चाहता है, हर कोई नंबरों में जुटा है, उसे जिंदगी से कोई लेना देना नहीं है। उसका तराजु सिर्फ नंबरों को तौलता है और अगर नंबर में वह हिट है तो उसे ही परफेक्ट करार दे दिया जाता है। कंपनी कौन सी नंबर वन है और उसमें कितनी जंग चल रही है, हीरो कौन नंबर वन है और वह इसके लिए क्या-क्या कर रहा है, खिलाड़ी कौन नंबर वन है और इसके लिए वह कितनी मेहनत करता है...बात यहीं तक ठहर जाए तो कोई गम नहीं। मगर यहां तो नंबरों की होड़ में जिंदगी हारती नजर आ रही है। कोई पैसों के नंबर जोड़ रहा है, कोई मोबाइल के नंबरों में जुटा है, तो कोई दोस्तों के नंबर बढ़ाने में लगा है, हर कोई नंबर की चाह में जिंदगी को लेकर दौड़ रहा है, जिसमें कई बार सरपट फिसलता है, लेकिन फिर भी यह मोह नहीं छोड़ रहा है...। नंबरों को खेल ही रहने दिया जाता तो कोई चिंता नहीं थी, लेकिन अब यह उन मासूम जिंदगियों को भी प्रभावित करने लगा है। हम उस बचपन को भी इन नंबरों के तराजू में तौल रहे हैं। आखिर क्यों? हम अंग्रेजों के दो सौ साल गुलाम रहे, लेकिन इस आधुनिक सदी में हमने नंबरों की गुलामी स्वीकार कर ली है, वह हमें नचा रहा है, उसकी जैसी मर्जी होती है, वह वैसे हमसे कार्य करवाता है। दुनिया का खेल पूरा नंबरों पर चल रहा है, फिर जुएं का नंबर हो, या लॉटरी का नंबर, शोहरत का नंबर हो या ज्ञान का नंबर हो। कोई नंबरों की ओट में आबाद हो रहा है तो कोई बर्बाद भी हो रहा है। आखिर नंबरों का यह खेल क्यों बंद नहीं किया जाता, चलो न भी करो, लेकिन इन्हें उन निर्देशों के मानस पर क्यों ला रहे हो, जिन्होंने जिंदगी अभी जीना सीखा भी नहीं है, ठीक से चलना भी नहीं जानते। और उनके कंधों पर इतना बोझ डाल दिया। हे भगवान ऐसा जीवन तो नारकीय है, और यह बनाने के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है। बल्कि हम स्वयं दोषी हैं। तो क्या कर लेंगे ये नंबर, जब जिंदगी हम हमारी शर्तों पर जिएंगे, और अगर जब जीना ही है इस धरती पर उसी लिए आए तो व्यर्थ के चक्कर में कहां रगड़ रहे हो जिंदगी, बस जियो जी भर के, क्योंकि अगर ऐसा न कर सके तो उस परमात्मा का भी अपमान रहेगा, जिसने तुम्हें यह जिंदगी दी है। इसलिए नंबरों की उलझन इतनी मत बढ़ाओं की इनके चक्रव्यूह में जिंदगी उलझ कर रह जाए, क्योंकि यहां कोई अर्जुन नहीं आएगा उस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए, बल्कि खुद के अर्जुन को स्वयं जगाना होगा, वहीं यह भेद सकता है। वीरों की तरह रहो, आखिर जिंदगी है कोई नंबर तो नहीं। यह तो हमारा ही नंबर दोष है, इसे दूर करो, और फिजा में इतनी रंगत भर दो की जीवन गले लगाने के लिए बेताब है। तो आज से छोड़ों यह नंबरों की चिंता, क्योंकि यह तुम्हारी चिता जल्द सजा देंगे, बस इन्हें अपना गुलाम बनाकर रखो, क्योंकि यह गुलामी तुम्हें खूब भाएगी। अगर यह करना सीख गए तो निश्चय ही हम लहरों का मजा ले सकेंंगे, आसमान की ऊंजी उड़ान भर सकेंगे। तो तैयार हो जाओ उस नई ख्वाबों की दुनिया को जो अब हकीकत बनने वाली है...।
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