Thursday, June 3, 2010

भ्रष्टों को तो निकालना ही चाहिए

देश में भ्रष्टाचार की सरिता में सब डुबकी लगाने के लिए तैयार हैं, हर कोई अपनी तिजौरियां भरने में जुटा है। लूट-घसूट चारों ओर मची है। कोई किसी के बारे में नहीं, बल्कि अपने फायदे का सौदा करने के लिए बैठा है। ऐसे में बेहतर भातर की कल्पना कोरी प्रतीत होती है। देश में ऐसा कोई विभाग नहीं है, जहां भ्रष्टाचार मौजूद नहीं है और कुछ विरलों को छोड़ दें तो हर कोई बस खाने के लिए है, आखिर तरक्की हो तो कैसे हो। सरकारी विभागोें में तो गले के ऊपर तक भ्रष्ट लोग बैठे हैं, लोग परेशान होते हैं, एक काम के लिए उन्हें सालों लग जाते हैं, चक्कर लगाते-लगाते, चप्पलें खिस जाती हैं, लेकिन काम नहीं होते हैं, परेशानी की हद हो जाती है, लेकिन समस्या का पहाड़ बढ़ता जाता है। तो कैसे मिटे यह भ्रष्टाचार...इसके लिए किसी न किसी को तो कमर कसनी ही होगी। किसी न किसी को तो संकल्प लेकर आगे आना ही होगा। इसमें देखें तो सबसे पहला नंबर आता है नेताओं का, जिन्होंने देश का ठेका लेकर रखा है, सुधार का, मगर दिक्कत यह है कि इनके हाथ ही उस गंदे गटर में डूबे हुए हैं, तो फिर ये कैसे सुधारेंगे। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट आगे आया है जो सराहनीय है, अब उसने आदेश दिया है कि भ्रष्टाचारियों को बाहर कर दो, जी हां बिलकुल, अगर लकड़ी में दीमक लग जाए तो उसे बहुत जल्द बदल देना चाहिए, वरना वह कभी भी धोखा दे सकती है। कमजोर लकड़ी को चोर कभी भी तोड़कर मनमानी कर सकते हैं। उसी तरह ये भ्रष्ट अफसर और कर्मचारी देश की व्यवस्था को लाचार बना देते हैं। इन्होंने देश की हालत को बद्तर कर दिया है। इन स्थितियों से निपटने के लिए ही यह फैसला आया है आखिर मजबूत भारत की नींव और मजबूत कंधे नहीं होंगे तो भार आगे कैसे बढ़ेगा। इन भ्रष्टाचारियों की लालफीताशाही और सरकार के उदारीकरण के चलते हर चीज फीकी नजर आती है। सारे नियम कायदे, सिर्फ कागजों पर ही रेंगते नजर आते हैं। इनकी आब्रू इनके हाथों लूटी जाती है और ये नियम सिसक भी नहीं पाते हैं। ऐसे देश कैसे विकास करेगा, जहां पग-पग पर बड़े-बडेÞ दावन खड़े हैं, वो कैसे दूसरों से कंधा मिला पाएगा। हम आज तक कश्मीर समस्या नहीं सुलझा पाए हैं, चीन ने हमारी सीमा पर कब्जा कर लिया है और वह और अंदर और अंदर आता जा रहा है, बावजूद इसके हमारे पास कोई तर्क नहीं है। यह तो बहुत दूर की बात है, हम तो हमारे आसपास के भ्रष्टों को ही नहीं निकाल पाते हैं, देश में भ्रष्टाचार का यह बीज सालों पहले डल गया था और अब यह मठाधीश बनकर बैठ गया है, इसके आगे किसी की नहीं चल रही है। तो क्या हम यूं ही लाचार बन गए हैं, नपुंसकों की भांति बैठ जाएं, अगर यह सिलसिला टूटा नहीं तो फिर देश को एक बार फिर अगर सालों की गुलामी झेलनी पड़े तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। हमने देश को सोने की चिड़िया बनाने का सपना देखा था आज कहां तक वह सपना पूरा हुआ है। किसी ने लिखा है कि हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, जिसको भी देखना है बार-बार देखो। बड़े ठीक ही कहा है, क्योंकि यहां तो कौन सा उल्लू कब गुलास्तिान का हाल खराब कर देगा कोई नहीं जानता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए सामूहिक जन प्रयास करने होंगे, तभी स्थिति को सुधारा जा सकता है, अन्यथा यह भ्रष्टाचार की नदी अंतत: सागर में गिरकर उसी के रंग में रंग जाएगी और इस बार वह सागर के रंग की नहीं होगी, बल्कि उसे भी भ्रष्टाचार मय बना देगी। इसलिए प्रण कर लो कि किसी भी कीमत पर भ्रष्टाचार को नहीं फैलने देंगे, जो हमारे सामने करेगा, हम उसे रोकेेंगे, अन्यथा सारी चीजेें ऐसी ही चलती जाएंगी और हम यूं ही सिसकते जाएंगे ।

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