Monday, December 28, 2009

जागों रे जागों

मन में उफान, जज्बे में आसमान। आगे बढ़े तो चट्टानें छोटी पड़ जाए, पर्वत चढ़े तो उूंचाई कम पड़ जाए। हौसले ऐसे हैं कि आकाष सलामी देता है, सपने इसके पूरे हो, यह पूरी कुर्बानी देता है। यह है हमारा उूर्जा से लवरेज युवा। उलझते, सुलगते, झुलसते मुद्दे रहते हैं, इसके पास। दुनियां को जीतने के लिए देष को इनसे बड़ी आस है । तब क्यों न हम इनके कंधों पर ऐतबार करें, इन्हें ही जब बागडोर दे दी है तो पूरे विष्वास से इन पर भरोसा करें। जो हालात हमारे हैं, वो काफी अच्छे तो नहीं कहे जा सकते हैं, लेकिन हमारे युवा के सैलाब को दूसरे देष भलिभांति जान चुके हैं। हम बहुत अधिक युवा संपन्न देषों की राह पर खड़े हैं तो क्या ऐसे में फर्ज हम युवाओं का नहीं है। हमसे जो उम्मीदोें को पाला गया है, क्या उसके लिए हमें आगे आना नहीं चाहिए। देष के हाल-ए-हकीकत से हर कोई वाकिफ है। यहां दुर्दषा दुर्दांत बनती चली जा रही है। अपराध की चादर ने आकाष तक को ढंकने की नाकाम कोषिष कर चुकी है। झूठ का तिकड़मी जाल पूरी ताकत के साथ फैल रहा है। लूट-घसूट समाज में बुरी तरह अपने पैर फैला चुकी है। हर तरफ तबाही ही तबाही नजर आती है। तो ऐसे में हम क्या किसी मसीहा की तलाष करेंगे, जी नहीं। बल्कि मसीहा हमारे बीच में ही है। वह भी एक नहीं हजार नहीं लाख नहीं करोड़ों की संख्या में। जरूरत है हमारे जमीर को जगाने की, अंदर के इंसान को इंसान बनाने की। यहां कोई दावा नहीं और कोई वादा नहीं। कोई छल नहीं और कोई लालच नहीं।सबकुछ विष्वास की परखनली से टिम-टिम बूंद की तरह निकलेगा। वह युवा ष्षक्ति ही है जो समाज को एक नई दिषा दे सकती है। उस डूबती वैतरणी को पार लगाने में यही ष्षक्ति समर्थ है। यहां न तो देषभक्त बनने की बात हो रही है और न ही डींगे हांकने की। यहां सिर्फ इतना कहना है कि ईमानदारी से कार्य कर देष के विकास को पहले रखा जाना चाहिए। अगर यह करना सीख गए तो हमारे देष को युवा पर लग जाएंगे और वह आकाष की लंबी उड़ान बिना थके भर सकेगा। सैकड़ांे समस्याएं कदम-कदम पर मुंह उबाए खड़ी हुई हैं। इसका न तो कोई परमानेंट इलाज किया जा रहा है और न ही लगता है। इसकी कौन लेगा जिम्मेदारी। कोई नहीं। हर कोई अपनी रोटियां सेंकने में और दाल दलने में लगा है। समाज में अंधेरा हो रहा है या उजाला किसी को क्या लेना देना। तो ऐसे में कौन जागेगा, आप को जागना होगा ।हम युवाओं को जागना होगा। अगर हम थोड़ी सी भी अपनी जिम्मेदारियों को समझ गए तो निष्चय ही इस देष की काया पलट सकती है। इसका नक्षा चेंज हो सकता है। इसलिए देष की उम्मीदों को युवाओं के सहारे की जरूरत है। इसमें अगर उन्होंने अपनी उूर्जा दिखा दी तो देष के विकास में चार चांद लग जाएंगे। बस इसी आग की जरूरत है। सफलता सामने पड़ी है, लेकिन उसे पकड़ने मत दौड़ों, बल्कि खुद के कद को इतना बढ़ा लो कि वह खुद-ब-खुद तुम्हारी पहुंच में आ जाए।

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