Tuesday, December 15, 2009

हारते तो मुंह भी न दिखा पाते

चार सौ 14 रन देखकर अगर कोई इतरा रहा है, उसकीतारीफों के पुल बांध रहा है। कोई कह रहा है कि टीम ने क्या बल्लेबाजी की है और कैसे श्रीलंकाई चीतों को पटकनी दी है, तो यह सिवाय जज्बात और भारत प्रेम के अलावा कुछ भी नहीं है। क्योंकि जिस तरह से श्रीलंका की टीम खेली है उसने यह जता दिया है कि हमारे पास एक हजार रन का टाॅरगेट होने के बावजूद हम नहीं जीत पाएंगे। हम यह नहीं कह सकते हैं कि हम इस टाॅरगेट पर सुरक्षित खड़े हैं। टीम ने रनों का पहाड़ खड़ा कर दिया था। अगर ऐन वक्त पर लंका ने थोड़ी गलती न की होती तो इस पहाड़ पर उसने फतेह पा ही ली थी। टीम अगर यह मैच हार जाती तो वह इतिहास में दर्ज होने के साथ कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचते। जिस कातिलाना अंदाज में आज वीरू ने अपने तेवर दिखाए थे, उसने टीम को चोटी पर पहुंचा दिया, लेकिन बाद की बल्लेबाजी को देखकर यही कहा जा सकता है कि अगर टीम में युवराज न हो तो बाद में एक भी ऐसा कोई बल्लेबाज नहीं है तो आतिषी अंदाज में बल्लेबाजी कर सके। अगर युवराज होते तो निष्चय ही 414 का यह आंकड़ा साढ़े चार सौ भी पहुंच सकता था। टीम में सचिन, धोनी और वीरू के अलावा किसी भी बल्लेबाज ने अपने कद के अनुसार बल्लेबाजी नहीं की। हर कोई आया और चलते की हैसियत से बल्लेबाजी कर रहा था। न तो किसी को पता था कि क्या करना है और न ही कोई समझने की कोषिष कर रहा था। जिसकी जैसी मर्जी हो रही थी बल्ला घुमा रहा था। पड़ी तो बाउंडी मिल गई, चूका तो कैच दे बैठा। कोई बोलने वाला भी नहीं था। माहौल ही ऐसा बना दिया, कि लगा ही नहीं कि क्रिकेट मैच खेला जा रहा हो। ऐसा लग रहा था कि पास-पड़ोस का मैच चल रहा हो और पास में ही बाउंडी हो। जब तक टीम इंडिया ने बल्लेबाजी की, हमें लगा कि वाह हमारी टीम क्या खेल रही है, लेकिन जैसे ही उसी पिच पर लंका ने खेलना ष्षुरू किया तो समझ में आ गया कि हमारी वास्तविक औकाद क्या है। आखिर हममें कहां-कहां से छेद हैं। संगाकार और दिलषान ने जिस बेहतरीन अंदाज में खेला उसने यह बता दिया कि वो बाहरी पिचों पर भारतीय ष्षेरों की माद में घुसकर उन पर किस तरह से हमला कर सकते हैं। पूरी टीम ने बेहतरीन खेल खेला। भले ही लंका मैच हार गया, लेकिन उनका साहस काबिले तारीफ था, जो असंभव चढ़ाई को देखकर हारा नहीं और उस पर लगातार चढ़ने का प्रण बनाकर बैठ गया। कहीं भी ऐसी कोई गलती नहीं कि लगा हो वह उतावला हो गया हो या हिम्मत हार कर बैठ गया हो। वहीं इसके विपरीत टीम इंडिया को अगर तीन सौ का स्कोर भी मिल जाता है तो वह अपना आपा खो देती है। इस खेल ने लंका का मानसिक संतुलन बता दिया है साथ ही यह भी बता दिया है कि उसमें कितनी कूबत है। वहीं एक और चीज गंभीरता से उभर कर आ गई है। वह यह की टीम इंडिया को अगर 2011 का विष्वकप का ताज पहनना है तो निष्चय ही उसे अपनेे आपको बहुत जल्द बदलना होगा। क्योंकि अब उसके पास आत्ममंथन के लिए अधिक समय नहीं बचा है। टीम बुरी तरह हालांकि खेल रही है, लेकिन उम्मीद का दामन थामे रखना हम भारतीयों के खून में ष्षामिल है। हमें अब भी उम्मीद है कि टीम 2011 का ताज पहन लेगी। लेकिन मौजूदा दौर में टीम की गेंदबाजी और मध्यक्रम की बल्लेबाजी के हाल है उसे देखकर तो वह सपने सपने जैसी बात ही लगती है। क्योंकि विष्वकप के महाकुंभ में बड़े से बड़े दिग्गज आएंगे और जी जान लगा देंगे कि किसी भी तरह से कप उनके यहां आए। ऐसे में भारत की चुनौती कहीं भी नहीं ठहरती है। क्योंकि उनके सामने अगर इसी तरह का लचर प्रदर्षन रहा तो बुरी तरह से पराजय का सामना करना पड़ेगा। इसलिए जो गललियां हो रही हैं उन पर अभी विचार करने की आवष्कता है और उस पर फटाफट निर्णय होना चाहिए। ताकि कुछ रिजल्ट दे सकें। अन्यथा हर बार की तरह इस बार भी विष्वकप को हम अपनी आंखों के सामने किसी और को चूमता देखेंगे और सिवाय दुःख के हमारे पास कुछ भी नहीं रहेगा। जिस ष्षानदार ढंग से आॅस्टेलिया और दक्षिण अफ्रीका की टीमें विष्व क्रिकेट में अपनी दावेदारी पेष कर रही हैं, उसने इन दोनों को ताज के बहुत नजदीक खड़ा कर रखा है। ऐसे में किसी दूसरे देष का इनसे ताज छीनना ष्षेर के मंुह से मांस खींचने के समान है, इसलिए यहां गौर करने वाली यह बात है कि किसी तरह से हम कुछ देषों को मान लो परास्त कर भी दे ंतो इन्हें परास्त करने के लिए हमें अपने खेल के स्तर को इनके पास लाना होगा। इसके लिए न सिर्फ मेहनत की जरूरत है, बल्कि एक बेहतर प्लानिंग की। इसलिए यहां पर जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है कि किसी भी कीमत को प्रदर्षन के उस स्तर तक लेकर जाना है, जहां से इन टीमों को षिकस्त दी जा सके। अगर यह करने में कामयाब हो गए तो एक बार फिर भारतवासियों के हाथों में कप होगा और गर्व से सिर उूंचा हो जाएगा। तब हम वास्तविक चैंपियन कहलाएंगे।

2 comments:

  1. सही कहा आपने गल्तियां तो बहुत की थीं, पर ये तो कहो अन्तिम दो ओवर संभल गये। वर्ना सारी मेहनत पर पानी फिर जाता।

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    छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
    क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?

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