Tuesday, May 3, 2011

आतंक का अंत या विद्रोह के वार


लादेन मारा गया...लादेन मारा गया...वो खूंखार आतंकवादी मारा गया। वह अपराधी मारा गया, जिसने वर्ल्ड टेÑड सेंटर को उड़ाया था। जिसने सालों साल अमेरिका की नाक में दम कर रखा था। आज अमेरिका ने लंबी लड़ाई के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया। अब कोई डर नहीं, क्योंकि आतंक का वह खौफनाक चेहरे को समुंदर में डुबों दिया गया। वाह...अमेरिकियों के लिए इससे बड़ा दिन और क्या हो सकता है, क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ उन चंद सौ लोगों की नहीं थी, जिनके लोग वहां मरे थे, बल्कि यह लड़ाई उन सभी लोगों की थी, जो आज तक पूरे विश्वभर में कहीं न कहीं आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं। अमेरिका हो या फिर हिंदुस्तान। कसाब से लेकर लादेन तक। हर चेहरे में खौफ साफ नजर आता है। साथ ही दर्द भी झलकता है कि इन्होंने हमारे अपनों के खून को लहूलुहान किया है। इनके कारण न जाने कितने घरों की खुशियां छिनी हैं। न जाने कितने परिवारों के आंसू आज तक सूख नहीं पाए हैं। कितनी मांओं की आंखें अभी भी पथराई हुई हैं। दुनिया ने आतंकवाद का सिर्फ एक रंग ही देखा है। वह है लाल रंग, जिसमें सिर्फ लहू ही बरसता है। शायद आज उन परिवारों को इंसाफ मिला है, जिसकी लंबी लड़ाई में अमेरिका सालों से जूझता आ रहा है। मगर हम कितने बेबस हैं, क्योंकि हमारी आब्रू पर जिसने हमला किया है, वह अब तक जिंदा है। हमारे वो बेचारे सिपाही, जिन्होंने अपनी जानें दे दी, वो तो शहीद हो गए, लेकिन उनके आरोपियों को हम आज भी सजा नहीं दे पाएं। कितनी विडंबना है यह, कि हमारे देश में हम अपनों के ही कातिलों को सजा नहीं दिला पाए हैं। अब सवालों के घेरे और शर्म भरे चेहरे साफ दिखाई देते हैं। सीख लेनी ही है तो अमेरिका से लो, जिसने सालों बाद दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतार दिया। सालों तक कभी जमीन के गर्भ में सो गया तो कभी पहाड़ों की गुफाओं में दफन हो गया। कभी मरने की खबर आती तो कभी दहशत का वीडियो। ये सारे देखकर हर देशवासी के दिलों में उबाल आता था, और आंखों से अंगारे झलकते थे। हां, शायद हमारी जड़ों में ही दम नहीं है, या फिर सुरक्षा और सरकार दोनों की खोखली साबित हो रही हैं। जिस तरह से पूरा खेल खेला गया है, वह हमारे देश को लाचार साबित कर रहा है। देखा जाए तो हम उनकी खातिरदारी में जुटे रहते हैं, जो हमारे जान के दुश्मन रहते हैं। माफी हमारी आदत है, लेकिन यहां माफी नहीं डर दिखाई दे रहा है। डर विपक्ष में है, डर सरकार को है। समाजसेवियों के मन में है। हर कोई इस बिल्ली के गले में घंटी नहीं बांधने का साहस नहीं कर पा रहा है। खौफ भी ऐसा है कि मानों उस राग को कोई छेड़ना ही नहीं चाहता, इन्हें इनकी कुर्सियां प्यारी हैं, इसका भय है कि कहीं कुछ हो गया तो जनता भड़क जाएगी और सरकार के नीचे से कुर्सी का टेक निकल जाएगा, उस स्थिति में हम क्या करेंगे। वाकई यह बड़ा निदंनीय और चिंता का विषय है, क्योंकि जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा है, जिस तरह से आतंकवादियों को अपना मेहमान बनाया जा रहा है, वह बहुत ही दु:ख की बात है। इन पर कौन रोक लगाएगा, कौन जनता की आवाज को देश की आवाज बनाकर इस जख्म से निजात दिलाएगा। अब तक सब खोखला साबित होता दिखाई दे रहा है। अब तक लग रहा है कि हां हम लोग बिलकुल बेफिक्र हैं, और यहां पर हर कोई बस तिजौरियां भरने में जुटा है। अब तो क्रांति का स्वर उठने दो, अब उठो...जाग जाओ, क्योंकि अभी नहीं जागे तो फिर समय नहीं मिलेगा, समय नहीं बचेगा। अब तो कुछ करना होगा, देश को बचाना होगा, क्योंकि देश में आतंकवाद कभी भीतर ही भीतर खोखला न कर दे। हमारे सामने कई तीर खड़े हैं, अगर कब हमारे दो टुकड़े करके चले जाएंगे, हम भी नहीं बता पाएंगे।

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