Tuesday, July 21, 2009

दरिया की दास्ताँ


मेरे आँचल में सारे तीरथ धाम है !

मै पापियों का भी सत्कार करती हूँ प्यासों के कंठ को तर करती हूँ

उन्हें मुक्ति भी मेरे आगोश में आकर मिलती है

मै गंगा माँ हू मुझे बहुत सम्मान दिया जाता है। मेरी पूजा भी की जाती है

मुझे देश का मान भी बताया जाता है ।

मैं ऋषियों की आस्था हूँ । वो मुझे अपनी मुक्ति का मार्ग मानते है ।

मैं आपकी सदा रक्षा करती हूँ ।

बदले में मै आपसे सिर्फ़ इतनी गुजारिश करती हूँ

की मुझे मलीन मत करो

क्योकि मुझे मलीन करोगे तो मेरे भक्तो और पुत्रो को परेशानी हो जायेगी

उनके स्वश्थ ख़राब हो जाएगा ।

बीमारिया उत्पन्न हो जाएँगी ।

लोग मुझमे स्नान नही कर पाएंगे ।

अगर एसा हो गया तो भगीरथ का वो प्रयास निरर्थक हो जाएगा जो उसने सदियों पहले मुझे इस धरती पर लेन के लिए किया था. वो सबसे पुराणी परम्परा टूट जायेगी जिस पर विश्वास कर लोग स्वर्ग स्वप्न देखते हैं । मैं अपने लिए नही बल्कि आपके पुरखो की आत्मा की शान्ति के लिए , आपके कल्याण के लिए , इस जग के हित के लिए आपसे इन्त्जा करती हू की मुझे मैली मत करो । मेरे पानी में ऐसी कोई चीज न डाले जो मेरे दामन को दागदार न करे। मै आपसे कुछ ज्यादा करने के लिए नहीं कह रही हू। बस एक आदत सुधर लो। मुझे इस गन्दगी से बच्लो । अगर ऐसा हो गया तो इस देश की शान बढ़ जायेगी.




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