Saturday, March 26, 2011

कौन ‘शा हीद’ होगा जंग में


हां, अब एक बार फिर खून उबाल मारेगा। मैदान पर सांसें ऊपर-नीचे होंगी। एक-एक रन पर मरने-मिटने की बारी आएगी, हर खिलाड़ी अपनी जान लगा देगा, लड़ा देगा। हर चौके पर खुशी और मायूसी आएगी, हर विकेट पर तालियां और गालियां मिलेंगी। हजारों लोगों की आवाज मन में डर पैदा कर देगी। एक अच्छी चीज शाबासी तो दूसरी गाली देगी। यह क्रिकेट रहेगा, लेकिन किसी जंग से कम नहीं होगा। हर कोई इसमें बारूद उगलेगा, हर कोई अपनी गेंदों से फायर करेगा, हर कोई अपना इमान दिखाएगा, और हर कोई अपना 100 प्रतिशत देगा। धोनी के धुरंधर धधकेंगे तो शाहिद की सेना सनकेगी। हर कोई एक दूसरे को देखकर अंगार उगलेगा। हर कोई जीत के इरादे से ही नहीं, उसे मुट्ठी में करने के लिए उतरेगा। यहां क्रिकेट जरूर होगा, पर जंग की तरह। टीमें अपने-अपने अस्तित्व को बचाएंगी और दूसरों के कॅरियर को ग्रहण लगाएंगी। हर तरफ मारकाट जैसा रहेगा। नसों में खून दुगुनी रफ्तार से दौड़ेगा। आंखें सामने वाले को खाने दौड़ेंगे, गेंदों में बम भरे जाएंगे, और बल्लों से तोपे चलाई जाएगी। हर कोई क्रिकेट की इस जंग का हीरों कहलाएगा। हां कुछ शहीद भी हो जाएंगे, जिनके नाम से मिलता है, वो ही शहीद होंगे। कइयों का तो कॅरियर ही दांव पर आ गया है। हर कोई अपने तरकश के तीरों के सभी बाण यहां अजमा लेगा। कुछ तो ऐसे भी हैं, जो जीने मरने का गम छोड़कर इस महाकुंभ की जंग में अपनी सबसे तेज गेंदों का इस्तेमाल करेंगे। यहां हर वो बात होगी, जो अभी तक दूसरे मैचों में हमें देखने को नहीं मिली है। हमें मैदान पर हरी घास जरूर दिखेगी, लेकिन वह बारूदी ढेर रहेगा। यहां हाथ जरूर मिलाए जाएंगे, लेकिन वहीं पर हाथ तोड़ने के इरादे होंगे। खेल की भावना तो यहां ताक पर रख दी जाएगी। हर कोई सभ्य दिखेगा, लेकिन जोश दोगुना रहेगा। जुनून का हर लम्हा, और इसके साक्षी रहेंगे हम और आप। खिलाड़ियों से लेकर मैदानी दर्शकों का खून भी उबाल लेगा। फिर दोनों देशों की आवाम भी भला पीछे कहां रह सकती है, वह भी तो इसकी भागीदारी में अपनी आहुति देने के लिए बेकरार है। वह भी तो अंगारों की सेज पर चलकर अपना लोहा मनवाने की सोचेगी। हां, यह क्रिकेट की सबसे बड़ी जंग होगी। क्योंकि यहां भारत-पाक भिड़ेगा, या कहें कि लड़ेगा। दोनों ने जमकर तैयारियां कर ली हैं। सभी तीर कमान पर चढ़ गए हैं, बस संहर करना बाकी है, जो उस दिन पूरी शिद्दत से खेला मैच वही जीतेगा। या यह भी हो सकता है कि कोई एक खिलाड़ी इतना तेज या अपनी प्रतिभा से कई गुना आगे जाकर खेल जाए तो फिर दूसरी टीम को कोई नहीं बचा सकता है। यहां देखने वाली बात होगी कि मोहाली के इस ‘महाभारत’ में अर्जुन कौन बनता है। हां अभी तक तो सचिन तेंदुलकर ही सबसे भारी नजर आ रहा है और शाहिद के रणबाकुरों ने उनके लिए चक्रव्यूह भी तैयार कर लिया है, लेकिन अर्जुन अभिमन्यु तो नहीं है, जो इस चक्रव्यूह में फंस जाए। वह तो अपने स्टाइल से ही रहेगा और हर विरोधी को धूल चटाएगा। हमेशा की तरह। अब हाईवोल्टेज में अपनी बिजली और रफ्तार दिखाने के लिए बेताब है। सभी को बस इंतजार है तो उस दिन का, जिस दिन यह जंग होगी। हां, 6 घंटे की इस जंग में मरेगा तो कोई नहीं, लेकिन करोड़ों लोगों के दिल जरूर टूटेंगा। क्योंकि यह खेल नहीं जंग है, परंपराओं की, भावनाओं की, प्रतिद्वंद्विता की और प्रतिस्पर्धा की। यह दिखाने की जंग है कि हम बाप हैं और तुम बेटों हो, और उसी की तरह हमारा सदा आदर किया करो, जब भी ज्यादा उड़ने की कोशिश करोगे तो तुम्हारे पर कतर दिए जाएंगे। यहां हर कोई खौफजदा भी है और बेखौफ उड़ान भी भर रहा है। जगह तय हो गई है, दिन तय हो गया है, समय तय हो गया है... बस इंतजार है तो उस पल के आने का, जब यह जंग शुरू होगी। उस सिक्के का जो आसमान में उछलते ही, तीर और तलवारों से बात होने लगेगी। अब मजा आएगा...यह कहें कि क्रिकेट का असली खुमार चढ़ा है।

Wednesday, March 23, 2011

विकीलिक्स से ‘मन’ में घबराहट


जिस तरह से देश में राजनीतिक भूचाल आया हुआ है, वह हमारे नजरिए को प्रदर्शित करता है। वह यह दर्शाता है कि हम कितने कमजोर, लाचार हैं, जो शंकाओं को भी मान बैठते हैं और उस पर ही अपने निर्णय ले लेते हैं। जिस तरह से हमारे निर्णय और विश्वास के बीच एक धोखा दिखाई दे रहा है, वह हमारी सोच के आधार और बुनियाद को प्रदर्शित करता है। आज हम जिस तरह से विकीलीक्स के मामले में अपनी कार्यप्रणाली दिखा रहे हैं, वह हमें कमजोर साबित करता है। सालों पहले हम पर अंग्रेजों ने हुकूमत की, यह गुलामी की जंजीरें तोड़ने में हमें 200 साल लग गए। हमारे पास तब भी पर्याप्त साधन थे, हम चाहते तो पहली बार में ही उन्हें बाहर निकाल फेंकते, लेकिन हमने विश्वास और नजरिए के रिक्त स्थान को इतना खाली कर दिया, कि उसे भरने में 200 साल लग गए। हम बार-बार आपसी संकट में ही फंस जाते हैं। विवादों की डोर ऐसी शुरू होती है, कि वह हमें ही उलझाकर एक चक्रव्यूह में फांस लेती है। यह फांस हमें चुभती तो है, लेकिन हम यह दिखा देते हैं कि हम कर्ण की तरह सहनशील हैं, और क्षत्रिय धर्म की भांति हम इसे सह लेंगे। जीवन रफ्तार में यूं ही गाड़ी चलती रहती है। और उसे कोई भी आकर धका देता है। कोई भी हमारे बारे में कुछ कह देता है, और हम ही उसे मान लेते हैं। तब हम अपने मन की भी नहीं सुनते हैं। हम दिमाग से काफी बलिष्ठ हैं, और अगर किसी ने हमारे भीतर शंका का बीज डाल दिया तो हम उसमें ही घुलते रहते हैं। यह हमेशा से होता आया है। हम हमेशा परेशान रहें। दूसरों पर हम खुद से ज्यादा यकीन करते हैं। आखिर हम क्यों? अपने ही कूपमंडकत्व में रहते हैं। विकीलिक्स जैसी वेबसाइट की बुनियाद क्या है, और वह जो खुलासे कर रही है, आखिर उस पर कितना यकीन किया जाए, यह भी एक सवाल है। क्या हम इतने कमजोर हैं कि कोई भी बाहरी हम पर आरोप लगाकर चला जाए और हम उसे यकीन के तराजु पर तौले बिना ही उस पर अपना फैसला सुना दें। जिस तरह से देश में राजनीतिक भूचाल मचा हुआ है, वह हमारे नेताओं की दिमागी सोच पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है। वह यह भी सवाल उठाता है कि हम क्यों उस विकीलिक्स की बात पर यकीन करने में जुटे हुए हैं। हमारे देश में हालत यह आ गई है कि अगर कुछ और हो जाए तो सरकार भी गिर जाए, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आता है। मगर यह तो सही है कि न तो हमारा विपक्ष दोषमुक्त दिखाई दे रहा है और न ही पक्ष की यलगार में वो प्रचंडता बची है, जिससे यह कहा जा सके कि देश सुरक्षित दस्तानों में है। यहां तो लग रह है कि कब कौन सा विकेट गिर जाए, कहा नहीं जा सकता है। जिस तरह से यहां पर देश की बुनियाद को खोखला दिखाया जा रहा है, वह यह जताता है कि हम कितने कमजोर और मानसिक रूप से बीमार हैं। गैर हमें कुछ भी कह दें, हम उन पर यकीन कर बैठते हैं, अपनी मुहब्बत को उनके भड़काने पर जला देते हैं। बस यही चल रहा है देश में। पूरा विपक्ष विकीलिक्स के खुलासे के बाद से उबाल खा रहा है, हालत यह हो गई है कि देश के ‘मन’ को घबराहट हो रही है, और वो इस घबराहट को सफाई के रूप में पेश भी कर रहे हैं। इस संकट का कोई इलाज नहीं है, क्योंकि इसी फूट और राज की राजनीति में हम 200 साल उलझे रहे, और अब हमारे यहां जो राजनीतिक संकट या कहें कि सुनामी दिखाई दे रही है, वह विकीलिक्स की लाई हुई है। यह देश के माथे पर किसी कलंक से कम नहीं है, और हमारे नेता इस कलंक को धोने की बजाए उसका धब्बा गहरा और बड़ा करने की जीतोड़ मेहनत में जुटे हैं। अब दोषी किसे ठहराया जाए, क्योंकि यहां तो हमाम में सभी निर्वस्त्र हैं, और फिर इस स्थिति में किसी पर भी अंगुली नहीं उठाई जा सकती है, क्योंकि हाल वही हो जाएगा कि एक अंगुली उठेगी तो तीन तीन तुम्हें ही उलाहना देंगी।

Tuesday, March 22, 2011

जब भ्रष्टाचार से मुलाकात हुई


हर देश में धन का बंटाढार किया जा रहा है, हर कोई अपनी अल्हड़ता में ही जी रहा है। क्रिकेट के मैदान से लेकर ऐसी कमरों तक हर जगह पैसों का बवंडर खड़ा कर लिया गया है। जिस तरह से आज देश में धन के ये कुबेर जो देश को बर्बाद कर उसका पैसा हजम करके बैठ गए हैं, वह कहीं न कहीं देश की बुनियाद को खोखला कर रहे हैं। आज जिस तरह से हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार आ गया है, उससे डर लगने लगा। यहां हर कोई परेशान है, लेकिन वह रात मुझे याद है, यह कल ही की तो है...जिसमें किसी ने मुझसे पूछ ही लिया कि तुम क्या कर रहे हैं । हां वह स्वप्न था, लेकिन काफी खौफनाक था। इसमें यह दिखाया गया है कि भ्रष्टाचार से कैसे निपटा जाए। इस भ्रष्टाचार पर कैसे नियंत्रण करा जाए। वह हमें भूत जैसा दिखाई दिया। मैं पहले तो डर गया, लेकिन फिर सोचा चलो इससे मुकाबला करके देख लिया जाए। लेकिन वहां भी हमसे नहीं रहा गया। क्योंकि मैंने जो देखा, शायद कोई और भी देखता तो वह दंग रह जाता। हां, मैं बिलकुल सही कह रहा हूं, क्योंकि उसने जो कहा वही सही है, वह भ्रष्टाचार था, जो मुझसे मिला था। मैंने उससे काफी इंतजा कि थी कि वह मुझसे मिले, आखिर वह मुझसे मिला। वह काले कलर का था। उसके दो चेहरे नजर आ रहे थे, एक सफेद कपड़े वाला था, दूसरा काले कपड़े वाला। उसकी नाक तीखी थी, और पैरों में बड़े-बड़े जूते पहन रखे थे उसने। उसकी शक्ल और बनावट देखकर मैं घबरा गया। मैं उससे डर गया। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं... लेकिन तभी उसने मुझसे बात करना शुरू कर दी। उसने मुझे कहा कि मैं तुमसे ही मिलने आया हूं, मैं भ्रष्टाचार हूं। तो फिर मैंने पूछा कि तुम तो काफी खौफनाक हो। हां, मैं सुंदर भी हूं, लेकिन उसके लिए मुझे पलटना होगा। तब मैंने उससे पूछा कि आज आपने हमारे देश को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। हर किसी को आपने अपना गुलाम बना रखा है। हर कोई भ्रष्टाचार के कारनामे को अंजाम देने में लगा है। मैं देश का भला चाहता हूं, पर आप हमारी आंखों के सामने हमारे देश को खराब कर रहे हैं। भ्रष्टाचार थोड़ी देर तक सोचता रहा। वह बोला, आपने मुझे मारने के लिए कई दिखावे किए हैं, कभी अपने दिलों में झांक कर देखो, मैं वहां आ चुका हूं। वहां से जब तक नहीं हटाओेगे, मैं नहीं हट सकता हूं। तभी वह बोल पड़ा, क्यों मुझे मारने का प्रयास कर रहे हो, मैंने उसे कहा कि आखिर तुम चले क्यों नहीं जाते, उसने कहा कि मैं तो चला जाऊंगा, लेकिन लोग मुझे फिर से बुला लेंगे। तब मैंने उससे पूछा कि तुम हमेशा के लिए कैसे जाओगे, तो वह बोला अब बहुत देर हो चुकी है, मुझे हमेशा के लिए कोई नहीं भगा सकता है। तभी मैंने फिर सवाल दाग दिया, और उससे कहा कि तुम्हें सिंगापुर से तो निकाला गया है, हां उसने जवाब दिया। मैं वहां से आ गया, मगर यह भारत है, और यहां पर मेरे कई दोस्त हैं। जैसे लालच, विश्वासघात, झूठ यह सभी मिलकर मुझे बल प्रदान करते हैं। इनका भी राशन पानी मेरे कारण ही चलता है। इसलिए यहां से जाना संभव नहीं है। लेकिन मैंने उसे गुर्राते हुए कहा तो मैं तुम्हें यहां से कहीं दूर पहुंचा दूंगा , मैं तुम्हारा वध कर दूंगा। तो उसने जवाब दिया कि मेरे सामने आते ही तुम्हारा मन मुझसे प्रभावित हो जाएगा और तुम भी मेरे गुलाम हो जाओगे। मैंने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया और कहा कि मैं ऐसा नहीं हूं। मैंने उस पर पत्थर फेंक दिया, पत्थर उसे लगा और लोहे से लोहा टकराने जैसी आवाज आई। इस पर वह खूब हंसा और बोला कि यह कोई नई बात नहीं है। कई लोग मुझ पर पत्थर मार रहे हैं, लेकिन मैं नहीं जाऊंगा, क्योंकि पत्थर मारने वाले मुट्ठीभर भी नहीं हैं और मेरे गुलाम करोड़ों में हैं। मुझे यहां अच्छा रिस्पॉस मिला है और मैं कतई नहीं इसे भुला सकता हूं। अब तो आप चाहे जो कर लो, मैंने तो इसे ही अपना घर मान लिया है। तभी वह कहीं ओझल हो गया, और मेरी नींद भी खुल गई। दिनभर मैं उसी के बारे में सोचता रहा, फिर मुझे पता चला कि शायद हम भ्रष्टाचार से अब नहीं निपट सकते हैं, क्योंकि यह हमारे भीतर आ गया है।

Monday, March 21, 2011

जख्मी शेरों पर कसो नकेल


वही 28 साल से एक सवाल जो हमारे दिलों को हर बेचैन कर देता है। हम हर बार जीतने का ख्वाब संजोते हैं और यह चकनाचूर हो जाता है। क्या इस बार हम विश्वकप जीतेंगे। शायद दिल बोले हां, लेकिन दिमाग बोले नहीं। क्योंकि जिस तरह से आंकड़े और टीम का प्रदर्शन दिखाई दे रहा है, वह कहीं से भी यह अहसास नहीं दिला रहा है कि हम जीतेंगे। हमारे हौसले बड़े हैं, इरादों में भी जान है, लेकिन प्रदर्शन में हम उस लायक दिखाई नहीं दे रहे हैं कि कंगारूओं का गुरूर नीचा कर सकें। जिस तरह से वो दिखाई देते हैं, उन्हें देखते ही हमारे हौसले पस्त हो जाते हैं। खास बात यह है कि कंगारू इस समय जख्मी शेर हैं और इनसे बचना बड़ा मुश्किल है। हां यह अलग बात है कि हमने उन्हें प्रैक्टिस मैच में हरा दिया था, लेकिन वह प्रैक्टिस था, इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता है। इस बार तो माहौल ही कुछ अलग सा दिखाई दे रहा है। जिस तरह से टीम इंडिया का प्रदर्शन है, उससे तो उसे क्वार्टर फाइनल में आने तक के लाले पड़ गए। गेंदबाज साथ नहीं दे रहे हैं। पिछले बल्लेबाज ताश के पत्तों की तरह हो गए हैं, जब देखो ढह जाते हैं। टीम इंडिया की टेल इतनी बुरी तो कभी न थी। इस समय हमें डर भी लग रहा है, क्योंकि हमारे सामने कोई ऐसी-वैसी टीम नहीं है। खुद कंगारू हैं, और उनसे निपटना, मतलब विश्वकप जीतने जैसा है। अगर उन्हें हमने हरा दिया तो हमारे काफी चांस बढ़ जाएंगे। हां टक्कर तो हर टीम के साथ अब जोरदार होगी, और यहां पर एक भी गलती के लिए कोई माफी भी नहीं होगी। धोनी को पूरा देश माफ नहीं करेगा, अगर उन्होंने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो देश के दिलों में सुनामी भी आ सकती है, जिस दिन भारत यदि हार गया तो फिर उस दिन पूरा देश दु:ख और गुस्से से लबालब होगा और यह सैलाब जाने कहां फूटेगा। शायद इसके बाद हमें आशाा भी छोड़ देनी चाहिए, क्योंकि जिस तरह से पिछले दो साल से नंबर वन का खिताब हमने ले रखा है, वह भी हमसे छिन जाएगा। आज हौसलों को उड़ान भरने देना है। वह छह घंटे 100 ओवर हमें ऐसे खेलना है, जो हमने आज तक नहीं खेला है। पूरे तन मन से। पूरे जुनून से। अगर हम डर के खेलेंगे तो वहीं हार जाएंगे, क्योंकि इस बात को कंगारू भी बेहतरी से जानते हैं और वो किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहेंगे। उनसे जीतना बहुत मुश्किल है, हमने उम्मीद भी नहीं की थी कि उनसे भिड़ना पड़ेगा, लेकिन अब वह आखिरी विकल्प जब आ ही गया है तो फिर डरना किस बात का। खेलो जी जान से, फिर मैदान में जो अच्छा खेलेगा उसी की तो जीत होती है, यह बात पाकिस्तान ने हमें सिखा दी है। उसने आॅस्टेÑलिया को बुरी तरह से परास्त किया है, और न्यूजीलैंड से बेशर्मी से हारा भी है। हां उन्होंने गलतियों से सीखा है, हमें भी सीखना होगा। वो लोग हम पर स्पीड अटैक करेंगे, जिसे हमें पूरी शिद्दत से न सिर्फ झेलना होगा, बल्कि मुंह तोड़ जवाब भी देना होगा। हां हमने अफ्रीका के अटैक को ध्वस्त कर दिया था, यहां भी हमें कुछ ऐसा ही करना होगा। हमारे सामने ब्रेट ली, शेन टॉट और मिचेल जानसन की तिकड़ी रहेगी। हमें इनसे पार पाना होगा, क्योेंकि यही उनकी धार है। ऐसे में सचिन को अपना बेस्ट देना होगा और आज तक उन्होंने जो नहीं किया है, उसे दिखाना होगा। सहवाग और सचिन पर अतिरिक्त जिम्मेदारी बढ़ जाती है, इसके अलावा टीम का हर मेंबर अगर अपना सर्वश्रेष्ठ देगा तो निश्चय ही हम जीत की इबारत लिखने में समर्थ हो जाएंगे। और हम उनसे 2003 के विश्वकप की दो हारों का बदला भी ले लेंगे, जिसमें उन्होंने हमें धूल चटाई थी। उस हार का बदला भी ले लेंगे जो हमें 1999 में उनसे मिली थी। शायद हर हार का बदला लेने का समय आ गया है, अगर हम उन पर विजय पाते हैैं तो हम आधा रास्ता तय कर लेंगे। इसके बाद दो कठिनाइयां हमारे सामने रहेंगी। खास बात यह रहेगी कि आखिरी मैच भारत की सरजमीं पर खेलना है, हमें वहां सर्वश्रेष्ठ दिखाना है, इसलिए हर कीमत पर जीतना है,क्योंकि यह हारे तो जग हारे, यह जीते तो जग जीते।

Thursday, March 17, 2011

इडियट बॉक्स बांट रहा श्रद्धा


श्रद्धा का सैलाब उमड़ता है, और इस बंट रही श्रद्धा को पाने के लिए हर कोई बेकरार है। इडियट बॉक्स काफी सक्रिय हो गया है, इस श्रद्धा को बांटने में। वह कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ रहा है, जिसमें कहीं न कहीं से धर्म और रहस्यों का मायाजाल बुना जा रहा है। हर तरफ बेवकूफ बॉक्स छाया रहता है, इसकी ‘शिकार’ कहना चाहिए कि वहीं लोग बने हैं, जो अपना पूरा समय घर में ही बिताते हैं, हां कुछ और हैं जो मजबूरी में देख लेते हैं। आज हर चैनल खबरों की सटिकता को भूल गया है और टीआरपी के पीछे कटार लेकर दौड़ रहा है। उसके दूसरे हाथ में कटार के साथ लॉलीपाप भी है, जो लोगों को भ्रामकता से अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। यह पूरा रचा बसा मायाजाल या कहें कि किसी चक्रव्यूह से कम दिखाई नहीं दे रहा है। सभी टीवी चैनलों में भविष्य सुनाया जा रहा है। यह भविष्य सत्यता की लकीर को कितना छू लेता है और उससे कितना पीछे रह जाता है, इस बात की किसी को कोई परवाह नहीं है, हां लेकिन भविष्य तो सुनना ही है। सदियों से हमारे इस मन को लोगों ने भावुकता के नाम पर ठगा है। वह हमें आए दिन बेवकूफ बना देते हैं,मूर्खता के उस लेवल तक पहुंचा देते हैं ,जहां से हम अच्छे बुरे की पहचान को ही मिटाने की कोशिश में जुटे रहते हैं। आज तक हो या फिर कोई और चैनल। हर किसी के पास दिन में एक ऐसी स्टोरी है, जिसमें भूतों का साया कहीं न कहीं से नजर आ ही जाता है। हां, पहले कुछ सीरियल जरूर बनते थे, लेकिन उनमें पूरी तरह से काल्पनिकता रहती थी, लेकिन यहां तो कुछ और ही दिखाई दे रहा है। अब हालात बदल गए हैं, या कहा जाए तो न्यूज पर काफी भरोसा रहता है, उनसे यह अपेक्षा लोगों को रहती है कि जैसा है, यह वैसा ही दिखा रहे हैं। क्योंकि खबरपालिका बहुत विश्वसनीय रही है। मगर उसे कुंद करके उस पर लोगों को छलने वाला माल परोसा जा रहा है। दर्शक भी जाने कौन सा आनंद या फिर कौन से भविष्य के लिए इन्हें देखने में हिचक तक नहीं ले रहे हैं। आज अगर चैनलों के पास भूतों के कार्यक्रम हैं तो बाबाओं की दुकानें भी काफी चमकी हैं। जिनके पास अनुभव की बाल्टी के साथ डिग्री का तराजु है, और इन सबके अलावा अगर वो थोड़े चेहरे मोहरे में भी दिख जाते हैं तो फिर बात बन गई। जीवन की नैया पार हो गई समझ लो। उन्हें टीवी चैनल फौरन ले लेते हैं और इस तरह लोगों को भविष्य का फैसला और उनकी समस्याओं को हल करने का दावा ठोंकते हुए पूरी शिद्दत से ठगने में लग जाते हैं। आज अगर देखा जाए तो जिस तरह से राशि बताई जाती है, लोगों को समस्या निवारण यंत्र बताए जाते हैं...उसमें कितनी सच्चाई है, यह खुद वो ही जानते हैं। जनता तो हर चीज पर भरोसा कर के धोखा खा रही है, लेकिन इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि उन्हें तो टीआरपी मिल ही रही है। और फिर इसके लिए कोई गाइड लाइन या फिर सेंसर तो नहीं है, जो इन्हें रोक सकें। सदियों से हमारे देश में यह मान्यता है कि भविष्य का फैसला ज्योतिष में होता है, और हर कोई अपने भविष्य को वर्तमान में जानना चाहता है, बस यही चाहत उन्हें इस तरह से मूर्ख बनाने में कामयाब रहती है। यहां गौर और करना होगा कि इस तरह से देश की जनता को कब तक मूर्ख बनाया जाएगा। चंद बाबा सीधे-सीधे लूट रहे हैं, और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। मीडिया पूरी तरह से जनता को ठगकर अपनी दुकानदारी चला रहा है और पैसे बना रहा है। इन तरह की घटनाओं या कहें कि विपदाओं पर रोक लगानी चाहिए। इन्हें किसी न किसी तरीके से ब्रेक करना होगा। क्योंकि भविष्य की चाह में और श्रद्धा की आड़ में लोग करोड़ों रुपए कमा रहे हैं और लोग बर्बाद हो रहे हैं। इन सब पर नकेल कसना होगी, तभी स्वच्छ समाज के इन लुटेरों को नकाबपोश किया जजा सकेगा।

Tuesday, March 15, 2011

ऐ खुदा तू बता मैं क्या करूं


सचिन रमेश तेंदुलकर...यह एक ऐसा नाम है, जो आज कोई नहीं भूल सकता है। इस खिलाड़ी और समर्पण के आगे कोई दूसरा नहीं दिखाई देता है। पिछले 21 सालों से भारत की सेवा कर रहा है, हर परिस्थिति में इसने बेखौफ खेला है, टीम को जिताने की जीतोड़ कोशिश की है, लेकिन साथी खिलाड़ी इसे हमेशा धोखा दे गए। 1996 के विश्वकप में सचिन की बल्लेबाजी देखते ही बनती थी। अपनी टीम को इस जांबाज नाबाद बल्लेबाज ने सेमीफाइनल तक का सफर तय करवाया था। उस दिन उसने सेमीफाइनल भी लगभग पार करवा दिया था, लेकिन इसके आउट होने के बाद सभी ताश के पत्तों की तरह ढेर हो गए। वह पुरानी पीढ़ी थी, शायद उस समय सचिन ने सोचा होगा कि मेरी तपस्या में कोई कमी थी, इसलिए यह विश्वकप हम हार गए। बात आई 1999 की, उस समय इसे निचले क्रम पर उतार दिया गया, टीम के हित के लिए इसने अपना हित नहीं देखा और वहां भी टीम को जिताने का भरसक प्रयास किया। शायद उनके मध्यक्रम में आने के चलते ही टीम इंडिया का हाल बुरा हो गया था और सचिन भी अपनी प्रतिभा के अनुरूप बल्लेबाजी नहीं कर पाए थे। इसके बाद आया 2003 का विश्वकप। सभी ने सोचा कि इस बार कुछ करिश्मा जरूर होगा। हां हो रहा था करिश्मा, लेकिन पूरे समय सचिन ही मैदान में डटे थे। अपनी मनपसंद जगह पर खेल रहे सचिन ने सर्वाधिक रन बनाए। भारत को लीग मैचों से लेकर फाइनल तक का सफर तय करवा दिया। उस दिन गेंदबाजों ने ऐसा धोखा दिया कि बस...टीम पहले ही ओवर से हार गई। उस एक मैच में सचिन का बल्ला खामोश हो गया, या कहें कि अपने गेंदबाजों ने हार की जो इबारत लिखवा दी थी, उसे बदलने में सचिन ने अपना बलिदान दे दिया और चार रनों पर ही आउट हो गए। वक्त बदला हालात बदले और फिर आया 2007 का विश्वकप। जी हां...एक बार फिर टीम को धार और मजबूती देने के लिए उनसे कुर्बानी मांगी गई। उन्हें ओपनर की बजाय मध्यक्रम में खिलाने पर मजबूर किया गया, तब भी यह बल्लेबाज तैयार हो गया और अपनी टीम के लिए वह मध्यक्रम में खेला। हालात यह हो गए कि टीम इंडिया सुपर 8 में भी दाखिला नहीं ले पाई। वक्त की करवट ने सचिन के अंदर की कसक को जिंदा रखा। उम्र उनका साथ छोड़ रही है, लेकिन उनके हौसलों में आज भी वही दम है। और इसी दम की खातिर उन्होंने यह विश्वकप खेलने का फैसला लिया। फिर क्या था, सचिन तेंदुलकर अब 2011 के विश्वकप में खेल रहे हैं। अपनी पसंद की जगह पर। कहें तो यहां पर सबसे सुनहरा मौका है, 1996 और 2003 की तरह। सचिन पहले ही मैच से रंग में दिखे हैं। और उन्होंने फिर अपने हौसले और इरादे जता दिए हैं। टीम के युवाओं का वह कमिटमेंट नहीं है, जो सचिन रमेश तेंदुलकर का दिखाई दे रहा है। पूरी पारियों में एक भी खराब शॉर्ट नहीं खेल रहे हैं। इंग्लैंड के खिलाफ उन्होंने हमें बेहतर शुरुआत दी। आंकड़ा 300 के पार पहुंच गया, लेकिन हमारे गेले गेंदबाज वह आंकड़ा भी नहीं बचा पाए और हमें टाई के दर्द को सहना पड़ा, जबकि इतने बड़े स्कोर पर जीत तय मान ली जाती है। खैर हार नहीं मिली तो हमने उस दर्द का सह लिया। एक बार फिर बड़ा मैच...साउथ अफ्रीका के साथ। वीरू के साथ मिलकर 2011 विश्वकप की सबसे धमाकेदार शुरुआत। लग रहा था कि आज अफ्रीकी गेंदबाजों का सामना शेरों से हुआ है। एक समय 400 के पार का आंकड़ा दिखाई दे रहा था। सचिन आउट क्या हुए, पूरी टीम बह गई। सिकंदर को जिस तरह मालूम नहीं था कि खुशी आकर चली जाएगी, ठीक वही टीम के साथ हुआ, इस बार फिर कोई खिलाड़ी साथ न दे सका। कप्तान से लेकर दूसरे नए खिलाड़ियों तक में कोई भी ऐसा बल्लेबाज नहीं दिखा, जिसने सचिन के अरमान को अर्श देने की कोशिश की हो। यहां तो सब ताश के पत्तों की तरह ढेर हो गए। अफ्रीकी गेंदबाजों ने चुनचुन कर गोली मारी। फिर भी 296 का स्कोर बोर्ड पर टंगा था और अच्छी नहीं तो मध्यम गेंदबाजी से भी यह मैच जीता जा सकता था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हम मैच हार गए। एक बार फिर अधूरे ख्वाब के साथ। टीम का कोई खिलाड़ी सचिन जैसा नहीं खेल रहा है। इन्हें अगर खेलते नहीं आता है तो बाहर कर देना चाहिए। क्योंकि यह सचिन ही नहीं भारत की जनता के साथ भी छल के समान है। क्योंकि इन खिलाड़ियों को सम्मान के साथ प्यार और पैसा दोनों दिया जा रहा है, फिर इनके बल्ले और गेंदों में वह धार और जज्बा क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। और अगर नहीं खेल सकते तो सभी को सन्यास दे देना चाहिए।

Monday, March 14, 2011

स्वच्छ समाज का ‘विकलांग’ ‘विकास ’


हम कह रहे हैं कि हम निर्माण में लगे हैं, कल पूरी तस्वीर बदल जाएगी, यह इतनी सुहानी होगी कि चंद साल पहले अगर कोई यहां नहीं था तो उसे पूरा भारत ही बदला नजर आएगा। अगर वह बाहर रहता है तो यहां आकर पहचान नहीं पाएगा कि यह वही भारत है, जिसे वह छोड़कर गया था। विकास की हवा में हम स्वयं भी बहे जा रहे हैं, लेकिन यह क्या। सिक्के का जो रूप हमें दिखाया जा रहा है, वह तो नकली है, उस पर तनिक गड़ाकर निगाह डाली तो सारी परते अपने आप उधड़ती चली जा रही हैं। नकली विकास को विकलांग कर देश को खोखला करने की साजिश चारों ओर हो रही है। हर कोई इसके ताबूत में तेजाबी कील ठोंकने में लगा है। समस्या और हालात बदतर नहीं दुर्दांत हो गए हैं। बेशकीमती जमीन से लेकर आसमान में तनी अट्टालिकाएं पूरी तरह से लाशों पर बनाई गई हैं। आदमी आदमी का खून करने में कोई संकोच नहीं करता है, वह हाड़ मांस का पुतला अब व्यर्थहीन हो चला है। चमकीली रेत हमारे पैरों तले लगाई थी और उसे हम मजबूत आधार समझ कर बेफिक्री से खड़े हो गए थे, लेकिन यहां तो हालात ही बदले दिखाई दे रहे हैं। पूरा का पूरा संसार की सड़ने की कगार पर आ गया है। जिस भी कांड में देखा या तो क्राइम का स्तर बढ़ गया है, या फिर भ्रष्टाचार का तेल डालकर उसे जला दिया गया है। अब पूड़ी बनाते समय अगर भ्रष्टाचार का तेल डाला है तो उससे पेट तो खराब होगा ही। हां, कुछ लोगों के हाजमें जरूर बेहतर हो सकते हैं , लेकिन सभी इसी श्रेणी में आएं यह तो नहीं हो सकता है। हर किसी का इतना स्ट्रांग पाचनतंत्र तो नहीं होता है न। आपने भी बिलकुल ही सही सीखा है, क्योंकि यहां अरमानों को पंख लगाकर लोग आग पर चढ़ा देते हैं। चपरासी से लेकर मदरासी तक हर कोई अपने भाग्य से अधिक भ्रष्टाचार मचाए है। मगर हम आज तक समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर हमारी समस्या क्या है। हम किस मानस चिंतन में डूबे हैं। कौन सी परवाह हमें भीतर ही भीतर चबाए जा रही है। यह कैसा चक्रव्यूह है, जिसमें हमें कोई राह नजर नहीं आ रही है। इस मकड़जाल के लिए अब कौन सा स्पाइडरमैन आएगा जो हमें निजात दिलाएगा। नागराज और धु्रव जैसी शक्ति तो नहीं है हमारे पास। और तो और ये तो काल्पनिक पात्र हैं, और हकीकत में तो विश्वास और अपना धैर्य ही साथ देता है,बाकी तो सब बेवफा हो जाते हैं। जिंदगी मुश्किल हालातों से गुजर क्यों रही है। लोग दाने-दाने के लिए मोहताज क्यों हो रहे हैं। हम इतने गरीब भी तो नहीं है और हमारे यहां कई तो इतने मालामाल हो गए हैं कि वो दूसरों का भी खाना खाने में जुटे हैं। सच बताएं तो सब अस्त-व्यस्त चल रहा है। यहां सुनियोजित कुछ भी नहीं है। विकास तो हो रहा है, लेकिन विकलांग तरीके से । अब वह सीधा खड़ा हो भी नहीं सकता है, क्योंकि इसकी बुनियाद ही खोखली कर दी गई है। हर कोई अपने-अपने तरीके से जीवन की पटरी पर गाड़ियां धकेल रहा है। अब तो पटरी भी साथ छोड़ रही है, जिससे उस पर भी चलने में डर लग रहा है। जिंदगी की कोई दशा और दिशा नजर नहीं आ रही है, क्योंकि यहां सब सर्परूप में बैठकर चुपके से डस रहे हैं। बहुरूपिए हो गए हैं, इसलिए ये नजर भी तो नहीं आते हैं। महंगाई पर महाभारत करने लगते हैं, लेकिन खुद के गिलेबां में झांक कर नहीं देखते हैं कि उसमें कितने सर्प लिपटे हुए हैं। हर तरफ अंधेरगर्दी हो रही है, लेकिन ये तो सावन के अंधों की तरह बातें करते हैं, जैसे इनका घर हरा था तो दुनिया जग हरा है। हर तरह बेचैनी और बेबसी ही जान पड़ रही है और यह एक दिन जान जरूर ले लेगी। इस पर किसी का वश नहीं चलेगा। इसलिए इसकी तैयारी जल्द से जल्द कर लेना चाहिए, अगर ऐसा नहीं किया तो निश्चय ही हम परेशानी की उस खाई में चले जाएंगे, जहां से जीवनभर नहीं निकल पाएंगे। मौका है संभल जाओ भाई, नहीं तो फिर बचने का कोई मौका हाथ नहीं आएगा।

Sunday, March 13, 2011

धोनी ने डुबो दी लुटिया


हमें हमारी बल्लेबाजी पर पूरा भरोसा है, साथ में यह संशय भी रहता है कि धोनी की यह बिग्रेड ताश के पत्तों की तरह कब ढेर हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। टीम में एक से एक दिग्गज हैं, इसके बावजूद हम हार जाते हैं। हां पहले ताकत की बात कर लेते हैं तो सचिन और सहवाग की तूफानी शुरुआत देखकर दक्षिण अफ्रीका जापान के जलजले सा महसूस कर रहा था। वह सोच रहे थे कि आखिर जब स्टेन का वार और मोर्केल की रफ्तार नहीं चली तो फिर टीम इंडिया को कैसे रोका जाए। चार सौ का आंकड़ा स्मिथ की आंखों में भी तैर रहा था। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर मैच में वापस आया कैसे जाए। टीम में वीरू के आउट होने के बाद रनों की रफ्तार में अंकुश जरूर लगा, लेकिन सचिन और गंभीर ने बकायदा अपनी पारियों को बड़े स्कोर में तब्दील किया। बात यहां तक थी, जब तक सबकुछ अच्छा चल रहा था। सचिन का सैकड़ा पूरा हुआ। इसके दो ओवर बाद सचिन का विकेट चला गया। अब क्या था, टीम इंडिया लगता है कि आज चार सौ के मूड में ही नजर आ रही थी। हर किसी को सिर्फ बाउंड्री ही दिखाई दी। तो क्या था बल्ले खूब धड़ल्ले से चलाने लगे। पहले गंभीर गए, इसके बाद तो तू चल मैं आया। 27 रन पर नौ विकेट हो गए। एक समय चार सौ का आंकड़ा अब 300 भी नहीं पहुंच पाया। यहीं से शुरू हुई धोनी की गलती। यह जिम्मेदारी धोनी की भी तो बनती थी, उन्होंने तो बल्ले से जौहर दिखाना छोड़ ही दिया है और कप्तानी में ही मशगूल हो गए हैं। धोनी साहब यह मत भूलो कि सौरव दादा भी जब प्रदर्शन नहीं कर पाए थे तो उन्हें बाहर कर दिया गया था, जबकि उनका रिकॉर्ड आप से काफी बेहतर था। अब बोर्ड पर 290 का लक्ष्य। शायद यह लक्ष्य काफी बड़ा होता है, लेकिन गलती करने वाले हमारे धोनी थकेले कंधों पर बंदूक रखकर विश्वकप का सपना संजोए बैठे हैं। हां इन्हें विश्वकप मिले तो ठीक नहीं, तो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इनके घर तो धन से यूं ही भर जाएंगे, लेकिन उन सौ करोड़ लोगों का क्या है, जिन्होंने इन्हें अपने सिर का ताज बनाया है। अब महाशय धोनी का इसमें तर्क होता है कि आखिर लोग क्यों देखते हैं क्रिकेट, हम तो खेल की तरह खेलते हैं और इसमें हार जीत लगी रहती है। तो भाई धोनी आपको हमारी एक नसीहत मान लेनी चाहिए कि अगर आप का रवैया यह है और जनता के अरमानों की फिक्र नहीं है तो आप सन्यास ले लीजिए, क्योंकि जो खेल के लिए इस तरह की भावना रखते हैं, उस तरह के कप्तान की इंडिया को जरूरत नहीं है, और यह आपकी बपौती नहीं है, जो आप इसमें अपनी पसंद न पसंद जताएंगे। यह सार्वजनिक खेल है और इसमें हमारी सौ करोड़ जनता इन्वॉल्व है। अगर आप जीत नहीं सकते तो बाहर बैठिए, और भी हैं दीवाने जो यहां मिटने के लिए तैयार हैं। आप अगर विश्वकप का ताज नहीं दिला पाए तो आपको मक्खी की तरह हम खुद भी निकाल सकते हैं। वहीं गलतियों के बादशाह हमारे धोनी भूल ही जाते हैं कि वो कप्तान हैं और गेंदबाजों से उनका संपर्क नेटवर्क की तरह टूट जाता है। किसी भी गेंदबाज को गेंद थमा देते हैं, ऐसे समय में जरा ध्यान रखा कीजिए और जो हमें जिताए उसे गेंद दिया करो। भाई साहब नेहरा ने पूरे मैच में तीर नहीं मारा था और आपने उन्हें ही निशाना साधने के लिए दे दिया। ऐसे में चूक तो उनसे भी हुई और आपसे भी। आगे की कठिन लड़ाई अभी बाकी है और अब आपके पास पछताने का विकल्प और मौका नहीं रहेगा। हां अगर ऐसे में भी टीम इंडिया को आप फाइनल तक नहीं ले गए तो फिर आवाम आपको बख्शेगी नहीं। इसलिए भारत की आवाज सुन लो और कोई कड़ा निर्णय जरूर लो, क्योंकि यह नहीं किया तो फिर 28 सालों का यह सूखा कभी समाप्त नहीं होगा। हम कभी ताज नहीं जीत पाएंगे। अब आपके दस्तानों में गेंद है, उसे जिम्मेदार को ही दिया करो, क्योंकि आप जीतो या हारो आपकी फीस पूरी मिलती है और आप तो दिनभर मैच खेलते हो, इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन हम इंडियन दर्शकों का तो दिल टूट जाता है और कभी-कभी रुठ भी जाता है, इसलिए अगर जीत दिलाओगे तो बादशाह कहलाओगे, नहीं तो धोनी कोई नाम था, यह भुलाने में हमें ज्यादा दिन नहीं लगेंगे।

Wednesday, March 9, 2011

हर तरफ गुंडाराज


देश किस ओर करवट ले रहा है, लोगों में इतना खौफ कहां से आ गया है, इतना क्रोध क्यों किया जा रहा है। सुबह खुशी से निकलते हैं, लेकिन वापस घर नहीं आ पाते हैं। कभी अस्पताल नसीब हो जाता है, तो कभी श्मशान। न जिंदगी का भरोसा, न मौत का। कब, क्या, कहां, कैसे और आखिर क्यों? कुछ भी हो जाता है, लोग समझ ही नहीं पाते हैं, इससे पहले ही घटना को अंजाम दे दिया जाता है। न कानून का भय, न भगवान का भरोसा। लोग आतंकित हो गए हैं। डर यह भी सता रहा है कि आखिर जिंदगी को कैसे जिया जाए। क्योंकि यहां तो पल-पल में गोलियां चलती हैं, पल-पल में तलावरें निकल जाती हैं। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, और पुलिस की धार कुंद पड़ी हैं। पर्दे के पीछे राजनीतिज्ञों का इनसे बेजोड़ गठजोड़ हैं, जिससे यहां अपराध पल रहा है। समाज बुरी तरह पतन की ओर जा रहा है, लेकिन समझाए कौन, बहलाए कौन। जिस तरह से सामाज में नए-नए घटनाक्रम आ रहे हैं, वह काफी दर्दनाक हैं, दिल को दहला देते हैं। दिल्ली हो या नोएडा, मुंबई हो या मप्र, या फिर बिहार... हर जगह अपराध को संबल दिया जा रहा है। शांति कहीं खो सी गई है। अपराधियों का वर्चस्व है। हालत दयनीय नहीं दर्दनाक और खौफनाक हो गई है। लोगों का जीवन दुश्वार हो गया है, बापू के अंहिसा पर चलने का मन किसी का नहीं हो रहा है, क्योंकि आज तो चैन से जीने ही नहीं दिया जा रहा है। परिस्थितियां बिलकुल विपरीत हैं, न कोई बचाव का ठिया है और न ही कोई सेफ जगह। जिसे देखो गुस्से में लाल पीला नजर आ रहा है, जिसके पास पैसा और ताकत है, वह आज शहंशाह है और बाकी सब फिसड्डी। अन्य तो ऐसे जी रहे हैं, मानों जीवन ही न हो। मर-मर कर तड़प-तड़पकर सिसक-सिसककर जिंदगी घिसट रही है। न तो जान का भरोसा सुरक्षा व्यवस्था दिला रही है और न ही सरकार को इससे कोई सरोकार है। दौलत में हर कोई अंधा हो चुका है और अपराधियों का चहुंओर राज है। जिंदगी विरानी हो गई है, ऐसे में अब लोगों के दिमाग पर विपरीत असर पड़ने लगा है। अब कोई अपने घरों में डॉक्टर या इंजीनियर बनाने की नहीं सोच रहा है, बल्कि वो लोग अपने बेटों को गुंडा बना देते हैं, ताकि समाज में उन्हें जीने का हक मिल सके। हालत बदतर हो गई, और मंथन करें तो कई चीजें दु:ख देने वाली हो गई हैं । जिस तरह से महिला दिवस पर एक लड़की को सरेआम गोली मारकर अपराधी भाग गया, वह दिल्ली पुलिस के साथ पूरे देश के लिए शर्म की बात है। वहीं नोएडा में अगले ही दिन पति-पत्नी स्कूटर पर जा रहे थे,मामूली रूप से किसी से विवाद हो गया और उन्होंने गोली मार दी। आखिर क्यों इतना गुस्सा हो गया है कि बात-बात में गोलियां निकल आती हैं। चल जाती है और जान चली जाती है। दोष किसका उस मां का, जिसने उसे जन्म दिया, या उस पुलिस व्यवस्था का जो उसे रोक नहीं पा रही है। या फिर उस सरकार का जिसने उसे रोजगार नहीं दिया, या फिर उन नेताओं का जो अपने हित साधने के लिए उन्हें मोहरा बना देते हैं। दोषी सभी हैं और सभी ने अपने फर्ज को नहीं निभाया है। नतीजा सबके सामने आ जाता है, हर घर में से एक गुंडा पैदा हो जाता है। क्यों ? सवाल बहुत हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुलिस क्या कर रही है, क्यों आसानी से हथियार उपलब्ध हो जाते हैं, वहीं से रोकना शुरू कर देना चाहिए। गुंडों को यूं ही क्यों छोड़ दिया जाता है, अगर उन पर सख्वत कार्रवाई की जाए तो यह नौबत ही न आए। आज समाज में गुंडाराज फैल गया है और अगर इसे कम नहीं किया गया तो कल इसकी पौध बढ़ जाएगी। हर घर से एक गुंडा निकलेगा और फिर यहां मचेगी मार-काट। खून बहेगा, खुद का भी और दूसरों का भी। सभ्य समाज का पतन हो जाएगा और धरती पर पानी की जगह लहू बहेगा। अभी भी समय है, इन दरिंदों को हवालात में पहुंचाकर सख्त सजा दी जानी चाहिए, अगर ऐसा करने में कामयाब हो गए तो कुछ हद तक हम इस पर बांध लगा पाएंगे। वरना सैलाब आएगा और सब कुछ बहाकर ले जाएगा।

Tuesday, March 8, 2011

छू रही हैं बुलंदियां


कौन कहता है कि आसमान में सुराग नहीं होता, आज बेटियां आसमान की सैर कर रही हैं। दुनिया को दम दिखाने में लगी हैं। विश्व में महिलाएं प्रबलता से अपना वर्चस्व दिखा रही हैं। भारत में कहा जाता था कि यहां पर औरतों पर जुल्म होता है, हां होता था, लेकिन अब स्थिति बदली है। इसके पीछे कहीं न कहीं हमारी बदलती सोच का परिणाम है। आज हर तरफ बदलाव की बयार बह रही है और इसमें मानसिकता का कोई राहु-केतु फटक भी नहीं पा रहा है। जिस तरह से अरमानों को अहसास मिल रहा है, महिलाओं को संबल दिया जा रहा है, उससे वो हर क्षेत्र में जीजान से जुटी हुई हैं। यह सही है कि पुरुष के बराबर अभी नहीं आ पाई हैं, लेकिन उनसे कम भी नहीं है। कई जगहों पर हमने देखा है कि वो पुरुषों का नेतृत्व कर रही हैं, लेकिन कहीं स्थिति स्याह भी है। और यहां को देखकर एक बार फिर पुन: विचार करने का मन हो रहा है। परिणाम बदल रहे हैं, हालातों में परिवर्तन हो रहा है, अब बेटियां घर से निकलकर रास्ता बताने लगी हैं, उन्होंने विश्वास जताया है, हां समाज के कुछ नकचढ़े लोग उन्हें ऐसा करने पर बुराई देते हैं, लेकिन वह मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है। हर वो काम जो देश के विकास में सहायक है, वहां वह अपने जौहर दिखाने में जुटी है। खेल के मैदान से लेकर सरहद तक वह प्राणप्रिय बनकर देश पर कुर्बान हो रही है। हवा में तैर भी रही है और लोगों को सिखा भी रही है। जननी भी है और शक्ति भी। वाह नारी ने आदर्श की क्या मिसाल पेश की है, समाज में कुंठित लोग भी उसकी तरफ खड़े दिखाई दे रहे हैं। प्रभावहीन नारी प्रभावशील हो गई है, ओस की बूंद कहलाने वाली फौलादी इरादे वाली बन गई है, कभी समाज में उसे छेड़ते थे, आज भी वह घटना हो जाती है, लेकिन कई मौकों पर जब वह भरपूर जवाब देती है तो अच्छा लगता है। हम भी दूसरे देशों की तरह हो गए हैं, जहां महिलाएं अपना मुकाम पा रही हैं। उन्हें सम्मान मिल रहा है। उन्हें आदर की दृष्टि से देखा जा रहा है। उनकी उपस्थिति को अब नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। साथ ही बड़ी बात यह है कि वह अब फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोल रही है और लोगों को सिखा रही है। उसकी तारीफ करते हमारा मन नहीं थकता। बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड हर कोई उसके बिना कुंद दिखाई देता है। जहां वह नहीं है, वहां वीरानी दिखाई देती है। हां कुछ लोगों ने बिकाऊ जरूर बना रखा है, लेकिन उसकी हैसियत बहुत बड़ी हो गई है। आज उसे मनाने के लिए सैकड़ों लोग मिन्नतें करते हैं। बदलाव की यह बयार और प्रमुख हो सकती है, जब शिक्षा को अधिक बल दिया जाए। अगर अनपढ़ता का बादल हम शिक्षा की हवा से उड़ा दें तो बेटियां ससुराल में असहाय नहीं होंगी। उन्हें दहेज के लिए जलना नहीं होगा। उन्हें मरना नहीं होगा। शराबी और अय्याश पति के जुल्मों का शिकार नहीं होना होगा। वह उसे उसके कारनामों के लिए सबक सिखा देती है। वाह रे...महिला तुझे सलाम। आज महिलाएं देश को संभाल रही हैं। उन्होंने हर ओर अपना प्रभुत्व दिखाया है। मौका परस्त नहीं है वह, लेकिन मौके को भुनाना भी सीख चुकी है। अब उसे कोई चिंता नहीं, क्योंकि बेटी अब होशियार बन गई है, उसे बचाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह अपनी रक्षा स्वयं कर सकती है। हां, अभी भी कुछ तबका है, जहां बेटियों की हालत गंभीर है, जहां महिलाओं का अपमान किया जाता है। बस वहां सुधरने की जरूरत है, अगर वहां हमने सफलता हासिल कर ली तो हमारा देश भी गौरवान्वित हो जाएगा। हमें नाज है अपने देश की महिलाओं पर, जो दूसरों को परास्त कर देती हैं। हर तरफ वो अपना जलवा दिखा रही हैं, और विरोधी लोग जो पहले उनकी निंदा करने में जुटे रहते थे, आज वे ही खुले दिल से तारीफ कर रहे हैं। यही है हमारे बदलते भारत की तस्वीर, जो कई रंगों से सुसज्जित नजर आ रही है।

Sunday, March 6, 2011

परीक्षा का प्रेशर फट न पड़े


परीक्षाओं की गरमी मौसम में भी नजर आ रही है। धूप जिस तरह से मार्च में तपने लगी है, उससे दिन बेगाने से हो गए हैं। आलस्य ने ऐसा दामन पकड़ा है कि कुछ करने का मन ही नहीं हो रहा है। ऊपर से परीक्षा का प्रेशर हॉर्न दिमाग को संतुलित ही नहीं होने दे रहा है। पढ़ाई का डर, साल भर मेहनत की, लेकिन अभी मन बैठा जा रहा है कि कहीं वो तो न आ जाए जो हमने कहीं याद ही नहीं किया हो। कोर्स से बाहर का आ गया तब क्या होगा। रातों की नींद उड़ी हुई है, पढ़ते-पढ़ते टेबल पर गिर पड़ रहे हैं, कमबख्त तीन-तीन घंटे पढ़ाई की टेबल पर बिता देते हैं, बाद में ऐसा लगता है कि कुछ भी याद नहीं किया। न जाने क्या हो रहा है, नींद में ऐसा लग रहा है मानों हम पेपर दे रहे हैं और पेपर में कोई भी सवाल नहीं आ रहा है। गणित से लेकर इंग्लिश सभी ने डराना शुरू कर दिया है। टीचर्स का रोल खत्म हो गया है, मम्मी-पापा पढ़ने के लिए बोल रहे हैं। रातों में दोस्तों से पूछ रहे हैं कि यार तूने वह चेप्टर खत्म कर लिया है, जब वह हां कह देता है तो मन की शंकाएं और बढ़ जाती है, लगता है कि हम ही पीछे हैं, बाकी सब तो बाजी मैदान में मारने के लिए तैयार हैं। आखिर करें तो क्या करें। ऊपर से बीमारी ने हमारा दम निकाल दिया है। बार-बार सिर दु:ख रहा है, बुखार हो रहा है। पढ़ते नहीं बन रहा है, करें तो क्या करें। जीवन में उदासी छा रही है। पेपरों का यह भूत तो लगता है कि दम ही निकाल देगा। एक-एक दिन भारी पड़ रहा है, दिल कहता है कि जल्द से जल्द पेपर हो जाए, भले ही रिजल्ट जो भी हो, लेकिन इतना मन तो नहीं घबराएगा। हमारा तो जीवन ही बेकार हो गया है, पूरे साल पहले पढ़ाई करो, फिर परीक्षा के प्रेशर को हैंडल करो, दिमाग कुकर की तरह सीटी मारने लगता है, कहीं प्रेशर नहीं रिलीज हुआ तो हम फट न जाएं। सभी अखबार और टीवी वाले मानसिक रूप से प्रबल रहने की सलाह दे रहे हैं, जो देना काफी आसान है, वह भी जानते हैं कि परीक्षा में पास होना काफी कठिन है। मन में चिड़चिड़ापन हो रहा है, सब कुछ बेगाना सा हो गया है। हम तो मजबूर भी लग रहे हैं और मजदूर भी। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि भाड़ में जाए यह परीक्षा, हम तो नहीं पढ़ेंगे। पर पापा-मम्मी को देखकर लगता है कि कितनी मुश्किलों से वो हमारी फीस भरते हैं। आज तो कुछ करना ही होगा। कुछ अलग नया, ताकि जीवन बढ़िया हो जाए। वरना आज अगर परीक्षा से डर गए तो जीवन में कई बड़ी परीक्षाएं आएंगी, क्या तब भी हम ऐसे ही हमारे पैर खींच लेंगे, अपना मुंह चुरा लेंगे। आज की इस परीक्षा में पास होना ही है। हां यह सही है कि दबाव खूब है, परीक्षा का भी और आसपास का भी। क्योंकि लोग इसके परिणाम पर ही हमारा आकलन करेंगे। फिर चाहे हमने सालभर कितनी ही मेहनत क्यों न की हो, अगर इसमें असफलता हाथ लगती है तो लोग उसे इसी नजरिए से देखेंगे। उन्हें लगेगा कि हम मानसिक रूप से कमजोर हैं। और परीक्षा में पास नहीं हुए। हां तब हम उनके सामने आंख नहीं मिला पाएंगे, वह भी इसलिए कि हम परीक्षा के अंतिम क्षणों में बेहतर परिणाम नहीं दे पाए। यह यही नजारा है और यही जिंदगी है, जिसमें हम फेल हो जाते हैं। परीक्षा का दबाव हमें हैंडल करना ही होगा, साथ ही इन विपरीत परिस्थितियों में हमें ‘दबंग’ बनकर निकलना होगा, ताकि कोई यह न कह सके कि यह वहीं है जो हार गया। हार पर हंगामा होता है, लेकिन इस समय उन्हें भी ध्यान रखना होगा जो हार जाएं, क्योंकि यह हार आखिरी हार नहीं है। इसके बाद भी कई मौके आएंगे। आखिर जिंदगी को समाप्त करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए अगर पेपर बिगड़ भी जाए तो चिंता की कोई बात नहीं है। जीवन जियो, जिंदादिल तरीके से, क्योंकि यह बेहतर है। यहां आत्महत्या या कोई दूसरा कार्य करने की जरूरत नहीं है। अब बस इस परीक्षा के प्रेशर को आसानी से हैंडल करो, फिर छुट्टियों को जमकर इंजॉय करो, जिंदगी तुम्हारी है, इसे पूरा जियो।

Saturday, March 5, 2011

‘चाणक्य’ था अर्जुन


अर्जुन सिंह सालों तक...कांगे्रस के थिंक टैंक माने जाते थे। जब से उन्होंने कांग्रेस को ज्वाइन किया, उसके बाद से उस अर्जुन ने कभी पलट कर नहीं देखा। इंदिरा गांधी फिर राजीव गांधी....और अंत में सोनिया के खासम खास में रहे हैं। हालांकि आखिरी दौर में इस अर्जुन को थोड़ा नजरंदाज किया गया, लेकिन अर्जुन कांग्रेस के लिए किसी चाणक्य से कम नहीं था। किसी भी मुद्दे पर हो, वह बेबाक था, सालों कांग्रेस की वफादारी की, कभी उस पर संकट नहीं आने दिया। कांग्रेस की बड़ी-बड़ी मुश्किलों को उसने आसानी से हल कर दिया। अर्जुन की तरकश में हर समस्या का बाण था, कई बार उन्होंने सत्ता के ताबूत में कील ठोंक दी थी, विरोधी तो अर्जुन के सामने आने से कतराते थे। सही मायने में कांग्रेस का यह चाणक्य था। अपनी बुद्धि से विरोधियों के हौसले पस्त कर देता था। हां गांधी कुनबे ने उसे काफी मान दिया था और हर बार वो उसकी टीम का हिस्सा रहे थे। उनके जीवनकाल का सबसे बड़ा कलंक अगर कुछ है तो भोपाल त्रासदी, क्योंकि उसके छींटे अर्जुन सिंह की कमीज पर हमेशा नजर आए। लोगों ने उन्हें हमेशा दोषी ठहराया है। हां, उन्होंने हमेशा कोशिश की कि इससे वो पाक साफ साबित रहे हैं, लेकिन हालातों ने उन्हें छुटकारा नहीं लेने दिया। जवान अर्जुन से अधिक बुजुर्ग अर्जुन काफी खूंखार थे, उस समय इनकी बुद्धि और चातुर्यता का हर कोई कायल था। कांग्रेस में कई बड़े फैसले इन्होंने ही सुझाए, और इनके बिना कोई बड़ा निर्णय तक नहीं लिया जाता था। वारेन एंडरसन, राजीव गांधी और अर्जुन सिंह की तिकड़ी विवादों में आई थी, लेकिन उसे भी इस अर्जुन ने पार लगा ही दिया। अंतिम समय में कुनबे के मोह ने इसकी वफादारी में कुछ घोट दिखाई थी, मगर इसका भी तो दोष नहीं था, क्योंकि कांग्रेस ने भी इससे मुंह मोड़ना शुरू कर लिया था। आज अर्जुन हमारे पास नहीं हैं, कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी क्षति है, वह भी लगभग दो सालों से, क्योंकि अर्जुन सिंह से उनका नाता दो सालों से छूटा हुआ है। इतिहास भले ही अर्जुन को भोपाल कलंक के रूप में याद करे, लेकिन इन्होंने हर बार विरोधियों को धूल चटाई। जैसा नाम वैसा ही काम था। ठीक अर्जुन की तरह। हर तरकश में इतने तीर की विरोधी को हार माननी ही पड़ती थी। कई बार इनके साथ कुछ गलत जरूर हुआ, लेकिन इन्होंने हर बार उसे ठीक कर लिया। उस दौर में लोग सोचते थे आखिर एक इंसान में इतनी चाणक्यता कैसे हो सकती थी। उनके इसी बुद्धिबल के कारण उन्हें चाणक्य माना जाता था। आज वह हमारे बीच में नहीं हैं, यह एक युगपुरुष की कमी की तरह हमें खलेगा। सालों तक उनकी जगह भरना मुश्किल रहेगी, यह कमी कांग्रेस को खल भी रही है, जिस तरह मप्र में सालों राज करने वाली कांग्रेस पिछले दस सालों से यहां पर पैर नहीं जमा पा रही है। वह अर्जुन के कारण ही है। दिग्गी को जो मैदान मिला था, वह अर्जुन का तैयार किया हुआ ही था। इसलिए उन्होंने भी दस साल तक यहां राज किया। इसके बाद से जो सूपड़ा साफ हुआ, वह आज तक दम नहीं भर पाया है। जिस तरह से यहां पर कांग्रेस के हालात हैं, उसे देखकर तो यही लग रहा है कि अगले दस सालों तक कांग्रेस यहां नहीं आ सकती है। क्योंकि अब अर्जुन...नहीं रहा, और इनकी जगह कोई ले नहीं सकता। यह दुनिया का अटल सत्य है कि जो आया है वह जाएगा, और एक न एक दिन उसकी जगह भी भर जाएगी, लेकिन उसके लिए समय कितना लगता है, यह निश्चित नहीं है। इसलिए अर्जुन का जाना मप्र से कांग्रेस का गढ़ ही उखड़ जाना है, यह तो तभी हो गया था जब कांग्रेस ने उनसे बेरुखी दिखा दी थी। इसलिए उनका मन भी राजनीति में नहीं लगता था, क्योंकि उम्र के साथ हालात बदल गए थे, अब वे अर्जुन तो थे, लेकिन चाणक्य नहीं थे, और फिर लंबी पारी खेलने के लिए उनके पास समय भी नहीं था। इसलिए उन्होंने किनारा कर लिया था। उम्र और बीमारी उन पर हावी हो गई थी और अंतत: वो विलीन हो गए। लेकिन वह अर्जुन हमेशा उनके चाहने वालों के साथ विरोधियों के बीच में कायम रहेगा।

Thursday, March 3, 2011

जुबां की वल्गाएं थामों


जुबान फिसलना आम बात है, लेकिन फिसलने के बाद पश्चाताप न करना, यह बहुत ही शर्मनाक कृत्य हो जाता है। माना कि गांडिव से निकला हुआ बाण और जिह्वा से निकले हुए शब्दों को वापस नहीं लिया जा सकता है, लेकिन माफी एक वह चाबी है जो हर ताले में लग जाती है, कम से कम 50 प्रतिशत माफी की गुंजाइश तो रहती ही है। यह हमेशा से चला आ रहा है कि बड़े बदतमीज बिना तोले मोले बोल देते हैं और इसके बाद उसकी भीषण प्रतिक्रिया होेने पर उन्हें पछतावा होता है। हां कई बार कुछ लोग हरकत में आने के लिए ऐसा बोल देते हैं, लेकिन यह बहुत कम ही होता है। फिलहाल जो सबसे बड़ा सवाल है कि प्रदेश के एक बड़े मंत्री बोल रहे हैं कि जिन किसानों ने आत्महत्या की है, वो या तो नशेड़ी थे या फिर पागल। गौर कीजिए इस तरह के बयान से उस किसान परिवार पर क्या बीती होगी, जिसने अपना कमाऊ पूत खोया होगा। उस बेटे पर क्या गुजरी होगी जो अपने पिता को अपना हीरो मानता था, लेकिन प्रदेश की सरकार ने तो ऐसा बयान देकर उन्हें ही दोषी ठहरा दिया है। अनजाने ही सही, यह एक प्रकार की अवमानना की श्रेणी में आना चाहिए। और अगर आप अपनी जुबान पर काबू नहीं पा सकते हैं तो इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है। वहीं पीएम साहब जो सिर्फ एक पुतला नजर आते हैं , उन्होंने बजट पारित होने के बाद बयान दे डाला कि हर किसी को तो खुश नहीं किया जा सकता है। आपका कहना ठीक है, लेकिन सार्वजनिक रूप से इस तरह के बयान देकर आप साबित क्या करना चाहते हैं। बयानों और जुबां फिसलने की यह कोई नई घटना नहीं है। कुछ दिनों पहले जयपुर के एक ग्राम पंचायत के नेता ने प्रतिभा पाटिल के विरुद्ध कुछ कह दिया था, अंजाम उनके सामने था। पार्टी ने उनसे इस्तीफा ले लिया। सदियों से यह चला आ रहा है, कभी बड़े नेता कुछ उल-जलूल बोल जाते हैं तो कभी छोटे नेताओं की जुबान फिसल जाती है। बातों के इस बवंडर को क्रिएट करना ही लोगों की आदत सी बन गई है। फिर उन्हें यह भी परवाह नहीं रहती है कि आखिर वो कर क्या रहे हैं। किसके बारे में क्या बोल रहे हैं। संसद में पहुंचकर वहां की मर्यादा को कई बार भंग कर दिया जाता है। हां, कुछ दिनों पहले तो बहुत ही हद हो गई थी जब केएस सुदर्शन ने सोनिया को हरामी कहा था। उन्होंने न जाने कितने और बयान दे दिए थे। बूढ़े बाबा ने जो जोशिले बयान बके थे, वह कहीं से भी उनकी गरिमा को शोभित नहीं करते थे, और लोगों में इसके प्रति गुस्सा ही नजर आया था। पद की गरिमा को भूलने वाले इन वाचालों पर वॉच करना जरूरी हो गया है। साथ ही कार्रवाई का अगर डंडा नहीं चलाया गया तो इसी तरह बयानों के बीमर फेंककर दूसरों को परेशान करते रहेंगे। साथ ही देश में बयानों का जो कीचड़ हो जाएगा, उसके छींटे अपने ऊपर ही आएंगे। जरा सोचिए, एक गरिमावान नेता के मुंख से किसी के लिए गालियां निकलें तो निश्चय ही इसे पहली नजर में आप शर्मनाक ही कहेंगे। उसकी निंदा ही करेंगे, लेकिन ये नेता हैं कि मानते नहीं। इन्हें तो जैसे पब्लिक के बीच इसी के लिए रखा जाता है, दूसरों की मां बहन करने के लिए ही खड़ा किया गया हो। जल्द इस तरह के बयानों की गाइडलाइन तय की जाना चाहिए। अगर वह तय नहीं की गई तो फिर आने वाली पीढ़ी के साथ बाहरी देशों में भी हमारे यहां का गलत संदेश जाएगा। आखिर हम चर्चा भी करते हैं तो हंगामा हो जाता है, पूरे विश्व की निगाहें हम पर हैं, ऐसे में हमारे छुटभैया नेता, और बड़े नेता मिलकर बयानों का वह समुंदर तैयार करते हैं, जो देश के मुंह पर किसी कालिख से कम नहीं होता है। सिलसिला यूं ही चलता रहा तो निश्चय ही आने वाले समय में हमें बयानों के भूतों से संज्ञान्वित किया जाएगा, जो हमारे लिए किसी शर्म से कम नहीं होगा। इसलिए अभी समय है संभल जाओ, अपनी जुबां पर काबू पा लो, नहीं तो देश की पीढ़ी ही ऐसे नेताओं को जूते मारेगी, अगर विद्रोह का वह दिन आ गया तो समझ लो ऐसे लोगों को देश निकाला हो जाएगा, समाज में उन्हें विरोध की आग में झुलसना होगा।

Wednesday, March 2, 2011

दौलत या मुहब्बत


जब मुहब्बत और दौलत की जंग होती है तो कहा जाता है कि अकसर दौलत हार जाती है, लेकिन यह तभी होता है जब मुहब्बत कयामत से भी अधिक हो, भगवान से भी बढ़कर हो, लेकिन यह भी विरल सत्य है कि मुहब्बत दौलत के आगे कई बार दम तोड़ती नजर आती है। वह पराजित हो जाती है। मुहब्बत का यह मौसम कई बार बदल जाता है, लेकिन दौलत वह ढलान है, जिस पर कोई उतर नहीं सकता। कोशिश करेगा तो वह सीधे फिसल कर नीचे चला जाएगा। कई विरोधियों ने कोशिश भी की है, यह कोशिश करने वाले मुहब्बत के दीवाने ही थे, लेकिन ये पतंगों की तरह फनाह हो गए। और दौलत जीत गई। तो क्या दिल की जगह दौलत से नाता जोड़ लिया जाए, लेकिन यह दिल है कि मानता ही नहीं। जब मुहब्बत करने पर आता है तो दौलत को भुला जाता है। हां कई बार यह सफल भी हो जाता है, पर असफलता इसके भाग्य में अधिकतर आ जाती है। अब प्रसंब यह है कि माल्या और रणवीर का। जिनके बीच एक कुड़ी है, वह बेहद खूबसूरत है। उसका नाम दीपिका परी है, हां जी अब वह सिद्धार्थ के साथ दिखाई देती है। यहां रिश्तों की क्या परिभाषा होती है, इसके बारे में अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है, लेकिन पहले रणवीर के इश्क में डूबी दीपिका को कोई ऐसा हमसफर चाहिए था जो रणवीर से भी अधिक स्ट्रांग हो। हां, यह अलग बात है कि रणवीर की पॉपुलॉरिटी सिद्धार्थ से बहुत अधिक है, और इस देश में युवाओं की धड़कन हैं। सिद्धार्थ तो एक गुमनाम शब्द होता, अगर आईपीएल न होता। जो कुछ भी प्रसिद्धि मिली है वह आईपीएल की टीम, पिता विजय माल्या और दीपिका पादुकोण के साथ उनके संबंध से। मगर रणवीर के आगे सिर्फ कपूर ही लगा होना, उन्हें इस देश का सबसे चहेता बना देता है। इस मुश्किल में दीपिका ने पहले तो रणवीर से प्यार किया, मगर इस प्यार में उन्हें सफलता नहीं मिल पाई। अब पर्दे के पीछे का क्या राज है, दीपिका ने रणवीर को नजरंदाज किया या फिर रणवीर ने दीपिका को। यह कोई नहीं जानता, लेकिन दोनों के ब्रेकअप ने बॉलीवुड में उन्हें काफी चर्चा दिला दी। तभी दीपिका ने सिद्धार्थ कैंप का दामन थाम लिया, सिद्धार्थ का फिल्मी दुनिया से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन उनके पास इतना पैसा है कि वो बॉलीवुड के कई अमीरों को खरीद सकते हैं। मालामाल हैं माल्या। वहीं रणवीर की फैन फॉलोविंग बहुत अधिक है। दीपिका ने फिर से किसी बॉलीवुड के सितारे से संबंध बनाने की बजाय सिद्धार्थ का हाथ पकड़ लिया, वहीं रणवीर को भी उनकी नई महबूबा कटरीना के रूप में मिल गई। यह अलग बात है कि कटरीना सलमान से इश्क लड़ाती हैं, अब कटरीना सलमान की हैं या फिर रणवीर की। इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि उन्होंने अपने रिश्तों का रहस्य अभी बरकरार रखा है। खैर यह सोचने का विषय नहीं है, लेकिन दौलत की ओर भागी दीपिका को प्यार में कितनी ईमानदारी मिलती है या वह स्वयं भी जानती हैं। यह भी सही है कि रणवीर कोई दूध के धुले नहीं है और उनके नाम के साथ भी धोखेबाज शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सिद्धार्थ भी कुछ कम नहीं होंगे। हां, दीपिका के बारे में यह कहना कि उन्हें धोखा मिलेगा, उसकी बजाय यह भी तो कहा जा सकता है कि उन्होंने किस-किस को धोखा दिया होगा। उनके कई प्यार होंगे जो उन्हें ऐतबार करा रहा होगा, लेकिन प्रसिद्धि क्या मिली, वो तो बचपन के प्यार को भुला ही बैठी। मैडम ने नाता ही तोड़ दिया। बस यही होता है जीवन रहस्य। जो जिसे चाहता है, उसे उसकी चाहत नहीं मिलती। और जो जिसे नजरंदाज कर देता है, वही उसके पीछे प्रेम दीवानी बनकर घूमती रहती है। दीवानों की इस दुनिया का यही नियम है यही कायदा है। जहां शोहरत की आंच में उनके रिश्ते कई बार झुलस जाते हैं और वो तमाशबीन बनकर सिवाय उसे देखने के और कुछ भी नहीं कर पाते हैं। यह सदियों से चला आ रहा सत्य है, जिसने लैला और मजनू, हीर और रांझा के साथ और न जाने कितनी प्रेम कहानियों को टूटते और रगड़ते देखा है। वो इस दुनिया में तबाह हो गई, बर्बाद हो गई, फनाह हो गई। अब भी कोई हालात नहीं बदले हैं।